प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। आज बेंगलूरु में लगभग 11 लोगों की मौत हो गई है सुबह, क्योंकि वो किसी टीम के फैन थे। और लगभग दिन में ये घटना हुई और शाम को सेलिब्रेशन होना था स्टेडियम में, तो वो सेलिब्रेशन रुका नहीं। तो मैं भी क्रिकेट फैन हूँ मुझे भी पसंद है क्रिकेट खेलना, देखना। पर मैं ये नहीं समझ पा रहा हूँ कि ये सिर्फ़ बात क्रिकेट की नहीं है, हर जगह की है। हमारा सेलिब्रेशन नहीं रुकता, सर। अपनी निजी ज़िन्दगी से लेके सब तरह की, सब तरफ़ यही देख रहा हूँ कि जब भी हमें कुछ थोड़ा भी वक़्त मिलता है हम सेलिब्रेट कर लेते हैं कुछ।
अभी आपने बताया जैसे कि — अभी जो अमीर-गरीब का कर्व है, वो के-कर्व का है। अमीर, अमीर होते जा रहे हैं। गरीब, गरीब होते जा रहे हैं। जलवायु का वही हाल है। तो कभी-कभी जब देखता हूँ तो असहाय लगता है। फिर भूल जाता हूँ।
आचार्य प्रशांत: तुम्हारा सेलिब्रेशन इसलिए लगातार चलता है क्योंकि तुम्हारा क्रंदन लगातार चलता है। तुम लगातार रो रहे हो, इसलिए तुम्हें लगातार हँसने की ज़रूरत है। तुम लगातार नर्क जैसी ज़िन्दगी जी रहे हो, इसलिए फिर तुम्हें बीच-बीच में अप्सराएँ नचानी पड़ती हैं कि तुम्हें लगे कि स्वर्ग में हो शायद। स्पोर्ट्स दो बिल्कुल अलग-अलग बातें हो सकते हैं। एक होता है अपनी सीमाओं को चुनौती देना, उत्कृष्टता की तलाश। तो इसलिए आप जा रहे हो खेलने के लिए जहाँ आप अपनी सारी शारीरिक क्षमता को झोंक रहे हो, मानसिक तनाव बर्दाश्त कर रहे हो।
और दूसरे छोर पर स्पोर्ट्स वो होता है जिसकी परंपरा रोम से चली आ रही है। रोमन्स ने खेलने के लिए बड़े-बड़े स्टेडियम बना रखे थे। असल में स्टेडियम शब्द ही वहीं से आया है। और वहाँ के राजा क्या कहते थे कि क्यों ये सब बनाए हैं? बोलते थे ताकि ये जो जनता है, ये किसी तरह का विद्रोह न करे, ये चुपचाप पड़ी रहे। तो इनको हम खूब खेल-तमाशे दिखाएँगे ताकि इनको पता ही न चले कि इनकी असली ज़िन्दगी में चल क्या रहा है। और इनकी ज़िन्दगी जितनी बर्बाद हो, उतना इनको खेल दिखाओ और इनको इकट्ठा करो। बड़े-बड़े स्टेडियम में इकट्ठा करो और इनकी मौज कराओ ताकि इन पे एक नशा छा जाए। ये रोम के ज़माने से चल रहा है।
भारत में यही है। आपकी हालत इतनी ख़राब है कि आपको ये नशा न मिले तो आप करोगे क्या? क्रिकेट को लो — तो क्रिकेट में जो असली चीज़ होती है — टेस्ट क्रिकेट। जहाँ पर आपके दमखम की परीक्षा होती है। कई बार एक फास्ट बॉलर 15 ओवर लगातार बॉलिंग कर रहा है। बड़ा मुश्किल है। असली फास्ट बॉलर है न, तो पाँच ओवर भी उसके लिए बहुत होते हैं एक ही स्पेल के। पर ऐसे ही मौके आते हैं जहाँ फास्ट बॉलर 15 ओवर निकाल रहा है। स्पिनर्स तो और लंबे-लंबे स्पेल करते हैं। और कोई बैट्समैन है, जो कि टेस्ट बचाने के लिए खेल रहा है, तो कई बार वो डेढ़-डेढ़ दिन तक पिच पर खड़ा हुआ है। वहाँ पर आपके दमखम की, गुदे की — शारीरिक और मानसिक दोनों क्षमताओं की भरपूर परीक्षा होती है।
क्या ये सारा सेलिब्रेशन टेस्ट क्रिकेट से संबंधित है? ये सारा सेलिब्रेशन वो 20 ओवर से संबंधित है, जिसमें कोई बॉलर दो-चार ओवर कर दे अधिक से अधिक, हो गया और कोई आकर के बैट्समैन 20–30 गेंदें खेल गया, इतने में भी हीरो बन जाता है, कि 20-30 गेंदें खेल दी, उसमें पाँच-सात छक्के मार दिए — बहुत बड़ी बात कर दी। और जो तुम्हारे सब हीरो हैं, ये 20-20 ओवर वाले, ये वो हैं जो टेस्ट क्रिकेट से भागे हुए लोग हैं। अभी जो टेस्ट क्रिकेट का सबसे बड़ा इम्तिहान होता है, वो होने जा रहा है इंग्लैंड में। उससे भागकर तुम्हारे सब आदर्श और हीरो क्रिकेटर आई.पी.एल. में जलवा दिखा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में पिट कर आए।
ये दो-तीन जगह होती हैं, जहाँ पर किसी भी खिलाड़ी के क्रिकेट में दमखम की असली परीक्षा होती है।आई.पी.एल. में थोड़ी होती है। इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, न्यूज़ीलैंड — यहाँ पर होती है। अभी ऑस्ट्रेलिया में पिट कर गया है, अब इंग्लैंड जाना है, तो उससे पहले नदारद। और फैंस कोई दिखाई नहीं दे रहा।
जान दे दी 11 लोगों ने। तुम्हें समझ में ही नहीं आ रहा कि हर चीज़ बस यूँ ही नहीं हो रही है। सब कुछ तुम्हें मूर्ख बनाने के लिए हो रहा है।
तुम ऐसे सोचते हो — देखो, तुम्हारा जो मेंटल मॉडल है न, उसको समझना। तुम सोचते हो ए टीम है और ए के फैंस हैं, तो ए और ए-एफ। और दूसरी तरफ बी टीम है, उसके बी के फैंस हैं, तो बी और बी-एफ। तुम्हारे जो दिमाग में नमूना मॉडल है, वो ये है कि ए और ए-एफ एक तरफ़ हैं और बी और बी-एफ एक तरफ़ हैं। तो ए और बी में जब आपको दिखाई देता है मैच हो रहा है, तो ए-एफ और बी-एफ वाले….., वो ए-एफ, बी-एफ — दो अलग-अलग क्लब्स की भी टीम हो सकती हैं, फ्रैंचाइज़ी हो सकती हैं या दो देश हो सकते हैं, कुछ भी हो सकता है। तो आपका मॉडल ये है कि, ए-एफ और ए एक साथ हैं, और बी-एफ और बी एक साथ हैं। असलियत ये नहीं है — समझो! ए-एफ और बी-एफ एक साथ हैं, और ए और बी एक साथ हैं। और ए और बी मिलकर ए-एफ और बी-एफ का शोषण कर रहे हैं। ये बात टीम्स पर भी लागू होती है और राष्ट्रों पर भी लागू होती है।
इतिहास गवाह रहा है कि जब राष्ट्रों में संघर्ष हुआ है, देशों में, तो दोनों देशों की जनता पिसी है और दोनों देशों के जो हाकिम-मालिक रहे हैं, दोनों ने मौज मनाई है। वो आपस में दोस्त होते हैं।
तुम सोच रहे हो ए एफ का दोस्त है? नहीं! ए, बी का दोस्त है। ये ऐसे है मामला। तुमने विभाजन ऐसे करा है न — ए और ए-एफ इधर, और बी और बी-एफ उधर। विभाजन ऐसे नहीं है। विभाजन जो है, वो वर्टिकल नहीं है कि ए और ए-एफ एक तरफ़, बी और बी-एफ एक तरफ़। विभाजन ऐसे है: नीचे तुम सब आते हो — ग़रीबों। ए-एफ, बी-एफ, सी-एफ, डी-एफ — ये सब नीचे आते हैं। इनकी नियति ही यही है बस कि नारे लगाएँगे, झूमेंगे, और फिर जैसे आज हुआ, बेचारे कभी मारे भी जाएँगे। ये हैं नीचे वाले।
और ए, बी, सी, डी — ये सब ऊपर हैं। वो इकट्ठे हैं, वो एक साथ हैं। वो तुम्हें दिखाते हैं कि वो आपस में लड़ रहे हैं। पर्दे के पीछे वो सब आपस में एक हैं। वो सब एक हैं। और वो ए, बी, सी मिलकर के जो पूरा प्रपंच कर रहे हैं, कर ही इसीलिए रहे हैं — ताकि ए-एफ, बी-एफ, सी-एफ, डी-एफ — इन सबको एक साथ मूर्ख बनाया जा सके। और तुम मूर्ख बनते भी हो — बनो! और तुम कहते हो, "ये तो मेरी लॉयल्टी है — लॉयल्टी। आई एम सो लॉयल टू दिस, दैट..." कितनी चीज़ों को।
ज़िन्दगी के जो ऊँचे आदर्श हैं — उनके प्रति तो कोई लॉयल्टी है नहीं तुम में। लॉयल्टी किसके प्रति है? किसी खिलाड़ी के प्रति, किसी क्लब के प्रति — धिक्कार है ऐसी लॉयल्टी पर। जो कुछ भी हो रहा है न, वो सिर्फ़ आम आदमी को बेवकूफ़ बनाने के लिए हो रहा है। आम आदमियों — तुम्हें ये बात समझ में क्यों नहीं आती?
वो प्लेयर्स नहीं हैं, वो परफ़ॉर्मर्स हैं। चाहे वो अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो रहा हो, चाहे देशों की लड़ाई चल रही हो — कहीं भी; दुनिया में इस वक़्त बहुत लड़ाइयाँ चल रही हैं। चाहे वो ये मैचबाज़ी हो, चाहे चुनाव में पॉलिटिकल पार्टीज़ आपस में लड़ रही हों — वो सब परफॉर्मेंस है। कुल मिलाकर हर चीज़ का उद्देश्य है — आम आदमी को बेवकूफ़ बनाना। और आम आदमी बेवकूफ़ बनने को तैयार है। आम आदमी कभी पॉलिटिकल पार्टी को लॉयल है, कभी अपने क्लब को लॉयल है, कभी इसको लॉयल है, कभी उसको लॉयल है — और उस लॉयल्टी के पीछे जान भी देने को तैयार है। जिसके लिए तुम जान देने को तैयार हो, क्या वो तुम्हारे लिए जान देने को तैयार है?
तुमने जिन खिलाड़ियों के लिए जान दे दी — 11 लोगों की जानें गई हैं, और टीम में भी 11 ही लोग होते हैं। टीम के 11 लोग जान देने को तैयार होंगे?
उनसे कहा जाए कि, “साहब, 1 लाख फैन बच जाएँगे अगर आप में से एक खिलाड़ी जान दे दे,” — वह तब भी न तैयार हो जान देने को। तुमको ये दुनिया समझ में नहीं आ रही है। यहाँ तुम्हें जो दिखाया, सुनाया जा रहा है — पर्दे के पीछे उससे बिल्कुल विपरीत चल रहा है। जिसकी जो भी छवि तुम्हारे सामने आ रही है, वो एक ऑर्केस्ट्रेटेड छवि है। वो एक बनावटी छवि है, वो चीज़ वैसी है ही नहीं। और तुम उसी को असली समझ रहे हो। तुम परफॉर्मेंस को ट्रुथ समझ रहे हो।
कोई भी पब्लिक फिगर है — वो तुम्हें अपनी जो भी इमेज दिखा रहा है, वो एक नकली इमेज है। और वो तुम्हें इसलिए दिखाई जा रही है, ताकि तुम्हें बेवकूफ़ बनाया जा सके। ताकि तुम अपनी ही जगह पर — दबी-कुचली, सड़ी-गली हालत में पड़े रहो। बस, तुम्हारा शोषण होता रहे।
ग्लैडिएटर्स लड़वा दिए जाते थे, और राजा बहुत खुश होते थे। बोलते थे, वो जो ग्लैडिएटर लड़वा दिए, वो मरे और जुनून छा गया जनता पर, क्योंकि आपकी आँखों के सामने-सामने खून बह रहा है किसी जवान आदमी का। वो आपके सामने तड़प-तड़प के मरेगा, बीच एरीना में। बोले, “अच्छा है, अब ज़िन्दगी के असली मुद्दों की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाएगा। ये लड़का भूल जाएगा कि ये बेरोज़गार है। पूरा परिवार भूल जाएगा कि कोई तरक़्क़ी नहीं हो रही, शिक्षा नहीं हो रही, खाने को नहीं है। सब भूल जाएँगे।”
स्पोर्ट्स बहुत बेहतरीन चीज़ होती है। पर जो तुम्हें परोसा जा रहा है, वो स्पोर्ट्स थोड़ी है। बाउंड्री छोटी कर दी गई है। बैट ऐसे बना दिए गए हैं कि मिस-हिट्स भी छक्के तक जाती हैं। ये जो तुम्हें परोसा जा रहा है, ये तो तमाशा है। और जो असली क्रिकेट है — टेस्ट क्रिकेट — देखो न, कि तुम्हारे ये फेवरेट क्रिकेटर्स टेस्ट क्रिकेट से कैसे बुज़दिलों की तरह भागते हैं। और जब नहीं भागते हैं, तो इनकी दुर्दशा क्या होती है टेस्ट क्रिकेट में, वो भी देख लो। इनके रिकॉर्ड्स उठाकर के देख लो कि इनकी टेस्ट क्रिकेट में हालत क्या है।
हर गेंद पे आपको एड्रेनालिन चाहिए, बिल्कुल। दिमाग में हॉर्मोन का रश चाहिए। आप टेनिस का मैच देखने जाते हो। सिंगल्स अभी चल रहा है। मेरे ख़्याल से आज या कल में, जो जोकोविच का ज़्वेरेव के साथ क्वार्टर फाइनल है, शायद हो सकता है तीन घंटे, पाँच घंटे चले — लगभग उतना ही जितना कि एक आईपीएल मैच चलता है जिसमें 22 जने घुसे होते हैं। यहाँ ये दो लोग हैं, जो लगातार जान देंगे। वहाँ 22 लोग घुसे होते हैं। और यहाँ हर गेंद पे आपको रोमांच नहीं मिलेगा। यहाँ कैरेक्टर की परीक्षा हो रही है। पाँच सेट तक मामला खिंच सकता है और दो लोग हैं। हो सकता है पाँच घंटे तक खिंच जाए मामला। और आप ये नहीं कर पाओगे कि हर गेंद पे आप ताली बजा रहे हो, कुछ कर रहे हो, या कि वो चियर गर्ल्स नाच रही हैं। कुछ नहीं कर पाओगे ऐसा।
कुछ बहुत ऊँचा हो रहा है आपके सामने। वो भी स्पोर्ट्स होता है। पर वैसा स्पोर्ट्स हमें चाहिए भी नहीं। हमें पता भी नहीं। हमारे यहाँ फिर एथलीट इसीलिए पैदा भी नहीं होते हैं। क्या चाहिए? एक-एक गेंद पर मिर्च, मसाला, विज्ञापन, गुटखे का विज्ञापन, जुए का विज्ञापन। हर गेंद पे आतिशबाज़ियाँ। ये नशा है भाई, ये खेल नहीं है। बहुत गंदी लत लगा दी गई इस देश को। जहाँ तुम्हें हर मिनट में हॉर्मोनल शॉट चाहिए — वहाँ इस देश से बताओ, मैराथन धावक कहाँ से निकल आएगा? उसमें कुछ ऐसा होता है कि हर मिनट ताली बजाओ? हॉकी के मैच में भी ऐसा कुछ होता है कि हर मिनट ताली बजाओ? कहीं कुछ नहीं।
पर तुम्हारी ज़िन्दगी इतनी बर्बाद है कि तुमको हर मिनट नशा चाहिए। जल्दी हो, जल्दी-जल्दी, कुछ और हो। तो बहुत सारे खिलाड़ी हैं जिन्होंने बस एक ही महारत हासिल कर ली है — परफॉर्मेंस की। कहीं कुछ हो रहा होगा, वो कुछ ऐसा करेंगे कि कैमरा उनके ऊपर आ जाए। वहाँ खेलते नहीं हैं, वो वहाँ नौटंकी करते हैं मैदान में। और इसी वजह से वह बिल्कुल और पॉपुलर हो जाते हैं। और आपको वही नौटंकी चाहिए। आपको खेल थोड़ी चाहिए। खेल का तो कहा जाता है — “स्पोर्ट्स डोंट बिल्ड कैरेक्टर, दे रिवील इट।” स्पोर्ट्स का तो 'कैरेक्टर' से बड़ा गहरा संबंध होता है। माने आप जो हो भीतर से।
स्पोर्ट्स तो बड़ी खरी चीज़ होती है। दमदार लोगों की चीज़ होती है।
आपको स्पोर्ट्स के नाम पर नौटंकी और नौटंकी बात चाहिए। फिर आपको समझ में नहीं आता कि ओलंपिक्स में मेडल क्यों नहीं आ रहे। क्योंकि वहाँ नौटंकी नहीं चलेगी, भाई। वहाँ आतिशबाज़ी करने से, चियर गर्ल्स से, और ये और वो, और सौ तरह का ग्लैमर फैलाने से मेडल थोड़ी आ जाएगा। फिर आपको समझ में नहीं आता कि वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप क्रिकेट में भारत जीत क्यों नहीं पाता। क्योंकि वहाँ 20 ओवर में वारा-न्यारा नहीं करना होता, भाई, कि बस बल्ला भांज दिया, हो गया। वो असली क्रिकेट है।
इससे दुखद कोई बात हो सकती है? ग्यारह जवान लोगों ने आज जान दे दी। और ये जिनके स्वागत के लिए गए थे, वो आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़हर बेच रहे हैं। सिर्फ़ ये आपको बेटिंग एप्स और गुटखा वग़ैरह ही नहीं बेच रहे। ये आपको बाबा जी भी बेच रहे हैं। ये इनका लास्टिंग कॉन्ट्रिब्यूशन है। इन्होंने घर-घर सिर्फ़ गुटखा वग़ैरह नहीं पहुँचाया, घर-घर बाबा जी भी पहुँचा दिए। ये हैं आपके आदर्श। और ग्यारह लोग गए हैं, या बीस लोग गए हैं, जैसा तुमने कहा, सेलिब्रेशन नहीं रुकना चाहिए, क्योंकि हालत हमारी भीतर से इतनी ख़राब कर ली गई है कि लगातार नशे की ज़रूरत है। दम नहीं, ग्लैमर बस किसी तरह से सेंसुअल एक्साइटमेंट मिल जाए जल्दी से जल्दी।
ताकत भीतरी नहीं विकसित करनी है, बस उत्तेजित होना है जल्दी से। ये एक कमजोर होते राष्ट्र की निशानी होती है।
दुनिया के पास, आपके पड़ोसी चीन के पास, ओलंपिक्स में झोला भर के 'गोल्ड मेडल' होते हैं। और आपके पास क्या होता है? यही शोरशराबा, एक-एक छक्के पर ताली बजाना, यही होता है आपके पास। जिससे कुछ मिलना नहीं है, और जिसकी दुनिया कोई परवाह भी नहीं करती।