ना संसार से डरो, ना सरकार से डरो, ना डरो दुनिया के तानों से, ना डरो अधूरे अरमानों से, डरो तो बस ज़िंदगी के बर्बाद चले जाने से। घड़ी की टिक-टिक को अपना दोस्त बना लो, हर घण्टे-दो- घण्टे पूछा करो अपने-आप से, “अपने समय का जो मैं ऊँचे-से-ऊँचा, बढ़िया-से-बढ़िया इस्तेमाल कर सकता हूँ, वह मैंने अभी किया क्या?” और अगर नहीं किया तो पूछो, “क्यों नहीं किया?” क्या वजह, क्या मजबूरी इतनी बड़ी हो गई कि उसके लिए समय, माने ज़िंदगी को ही बर्बाद जाने दिया, कौन सी वजह?
कोई वजह इतनी बड़ी नहीं होती, बस समय के बर्बाद जाने से डरो, फिर कभी किसी और से बिलकुल डरना नहीं पड़ेगा।