एटम बम, दीवाली वाला || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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एटम बम, दीवाली वाला || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। मेरा प्रश्न ये है कि – जब हम ‘मुक्ति’ या ‘सत्य’ की बात करते हैं, तो क्या इसके बारे में हमारा कोई दृष्टिकोण होता है? मेरे अनुभव में ये आया है कि जब मुक्ति को पकड़ने की कोशिश करता हूँ, या कोई ‘लेबल' लगाने की कोशिश करता हूँ, तो मैं और व्यथित हो जाता हूँ। इसके बारे में कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: इसमें मेरे बताने को क्या है? तुमने इतनी सूरमाई बात कही है कि मैं अवाक हूँ। तुम ‘मुक्ति’ और ‘सत्य’ को कैप्चर (पकड़) करके, उसका डेटा (आँकड़ा) गिनते हो। अभी तो मैं बस यही पूछ सकता हूँ – “आपके चरण कहाँ हैं प्रभु?”

अध्यात्म में व्यस्क पुरुषों की ज़रूरत होती है, मर्दों की। अनाड़ी लड़कों की नहीं। ये लड़कपन के काम हैं कि – मुक्ति को लेकर कल्पना कर रहे हैं। और फिर पकड़े गए, तो हँस रहे हैं। कल्पनाओं में जीने की इतनी आदत हो गई है कि मुक्ति की भी कल्पना करते हो।

‘मुक्ति’ समझते हो क्या है? कल्पना से मुक्ति। और तुमने मुक्ति की भी कल्पना कर ली। कल्पनाएँ, कल्पनाएँ, जैसे हर चीज़ को लेकर कल्पनाएँ हैं- दुनिया को लेकर कल्पना, सुख-सुविधा को लेकर कल्पना, भविष्य को लेकर कल्पना, लड़कियों को लेकर कल्पना, वैसे ही मुक्ति को लेकर भी कल्पना कर डाली। “ऐसी होती होगी मुक्ति”, और उसको नाप भी लिया। जैसे कल्पना में हर चीज़ को लेकर नापते हो, वैसे ही मुक्ति को भी नाप रहे हो।

जानने वाले सौ बार समझा गए – अकथ्य है, अचिंत्य है, अतुल्य है, असंख्य है। अनंत है। और तुम उसे नाप रहे हो।

एक होता है हाइड्रोजन बम, और एक आता है लड़कों के लिए दिवाली पर हाइड्रोजन बम। वो उसी में खुश हो जाते हैं। असली चीज़ चाहिए, या पाँच-सौ वाली लड़ी से काम चला लोगे? अभी इस दिवाली पर देख लेना, बहुत सारे आएँगे बम, पटाखे, लड़ियाँ, फुलझड़ियाँ। किसी का नाम होगा ‘मिराज’, किसी का नाम होगा ‘जगुआर’, किसी का ‘रफ़ाएल’। और लड़के उसी को लेकर घूम रहे होंगे – “मिल गया!” रॉकेट आ रहे होंगे दिवाली पर। उसका नाम होगा – ‘एस. ४००., ब्रह्मोस, अग्नि, पृथ्वी, सूर्या, त्रिशूल’ (ये सब मिसाइलों के नाम हैं)। लड़कों के खेल!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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