अतीत कड़वा है, तो वर्तमान मीठा कैसे हो?

Acharya Prashant

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अतीत कड़वा है, तो वर्तमान मीठा कैसे हो?

प्रश्नकर्ता: सर जी, कृपया बताएँ कि अतीत के कड़वे अनुभवों के साथ वर्तमान को मिठास से कैसे जिया जाए?

आचार्य प्रशांत: बाबा, अतीत के कड़वे अनुभव होते ही इसीलिए हैं ताकि तुम वर्तमान को मिठास से जी सको। देखो तुम्हारे प्रश्न में एक मान्यता, एक अज़म्पशन है। वो अज़म्पशन ये है कि अतीत के कड़वे अनुभव नहीं होते, तो वर्तमान बड़ा मीठा होता। तो इसलिए इस मान्यता पर चलकर तुम कह रहे हो, “मुझे तो अतीत में कड़वे अनुभव हो गए हैं न, अब वर्तमान में मिठास कहाँ से लाऊँ?" जैसे कि न हुए होते कड़वे अनुभव, तो वर्तमान में मिठास होती। नहीं, तुम जीवन के बारे में कुछ मूल बातें शायद समझ नहीं रहे हो। समझना।

वर्तमान, जैसा हमको प्रकृति ने बनाया है उसके चलते, कड़वा होना तय है। ये जो बच्चा पैदा होता है न, ये इस तरीके से निर्मित नहीं होता कि इसको मुफ्त में ही मीठा वर्तमान मिल जाए। ये अगर ज्ञान ना पाए, जीवन से या ग्रंथो से, गुरुओं से सीखे नहीं, तो इसके वर्तमान का एक-एक पल कड़वा ही होगा। ये निश्चित ही है, क्यों निश्चित है? इसलिए निश्चित है क्योंकि तुम्हारी जो चेतना है न वो तुम्हारी ज़िन्दगी से कभी संतुष्ट नहीं हो सकती।

इंसान बनाया ही ऐसा गया है। इंसान इस मामले में बिलकुल अनूठा है। प्रकृति में जितने भी बाकी जीव-जंतु देख रहे हो, ये संतुष्ट रहते हैं जैसा इनका शारीरिक जीवन है उसी भर से। गाय को देखो, वो घास चरेगी, इसके बाद इधर-उधर रहेगी, कहीं जाकर बैठ जाएगी। भैंस को देखो, जाकर पानी में खड़ी हो गई। तुम इनके चेहरे पर आमतौर पर गहरी निराशा, उदासी या अवसाद नहीं देखोगे—दिखाई भी देगा तो कम। मनुष्य के चहरे पर जितना शोक, जितनी चिंता, जितनी पीड़ा रहती है, इसकी तुलना में तो किसी भी पशु के चेहरे पर और आँखों में तुम्हें पीड़ा इत्यादि बहुत कम ही दिखाई देंगें।

हाँ, मैं उन पशुओं की नहीं कहता जो इंसान के ज़ुल्म का शिकार हैं। मैं उन पशुओं की बात नहीं कर रहा हूँ जिनको इंसान ने कैद कर रखा है, उन पर तरह-तरह के अत्याचार करता है, और फिर उनको मारकर खा जाता है। उन पशुओं की आँखों में ज़रूर तुमको दुःख दिखाई देगा। अन्यथा, प्रकृति ने जैसा बनाया है पशुओं को, पंछियों को, जीव-जंतुओं को, वो अपने सरल शारीरिक जीवन में संतुष्ट रहते हैं। इंसान लेकिन ऐसा नहीं है।

इंसान की चेतना—चेतना माने तुम्हारे मन की हालत—इंसान की चेतना उसके शारीरिक जीवन भर से संतुष्ट नहीं होती; वो लगातार आगे का कुछ माँगती रहती है, लगातार! तो माने हर पल हमारी हालत कैसी रहती है? हर पल हमारी हालत ये रहती है कि अभी जो कुछ चल रहा है वो ठीक नहीं है; हमें कुछ और चाहिए। कहीं कुछ-न-कुछ खोट है, कही कोई बात है जो हमें समझ में नहीं आ रही। लगातार मन को खटका लगा रहता है। हम कभी-भी भीतर से अपने-आपको पूरा नहीं महसूस करते। कुछ और पाने की इच्छा रहती है, कुछ खो देने का दु:ख भी रहता है, निराशा भी रहती है, आगे कुछ और न खो दें इसकी आशंका रहती है। तो ये सब हमारे साथ हर पल चलता रहता है, और हर पल का नाम ही वर्तमान है न।

तो माने हमें कैसा रचा गया है? हमें ऐसा रचा गया है कि वर्तमान, माने हर पल, हम मुँह में स्वाद कड़वा ही रखते हैं, मिठास कहाँ से आ गई, भाई? हमें जैसा प्राकृतिक तौर पर रचा गया है, हमारा वर्तमान कड़वा ही रहता है।

अब तुम कह रहे हो, "अतीत में कड़वे अनुभव हुए", तो इसमें चौकने की कोई बात ही नहीं क्योंकि तुम्हारी रचना ही ऐसी हुई है। तभी तो महात्मा बुद्ध को बोलना पड़ा था कि जीवन दु:ख है। 'जीवन दुःख है' माने क्या? वर्तमान कड़वा है। क्योंकि जीवन कहाँ है? इसी वर्तमान में तो है न। अभी तुम जी रहे हो इसी को तो जीवन बोलते हो। जीवन दुःख है माने वर्तमान कड़वा है। इसीलिए अतीत तुम्हारा कड़वा था।

अब प्रश्न ये उठता है कि ये जो कड़वाहट है जीवन की, क्या इससे मुक्ति पाने का कोई रास्ता नहीं है? है रास्ता! रास्ता है सीखना, लर्निंग , जानो, समझो। वो कैसे जानोगे? अरे, कड़वे अनुभवों से गुज़रकर ही तो जानोगे। तो माने ये जो कड़वाहट मिल रही है, इसी में प्रवेश करके, इसी को जानकर, इसी के रहस्यों को सुलझा करके तुम मिठास को उपलब्ध होते हो। नहीं तो मिठास पाने का और कोई तरीका नहीं है।

अगर तुम कड़वाहट से दूर-दूर ही भागोगे, अगर तुम यही सोचोगे कि कड़वाहट तो दुश्मन है तुम्हारी, बहुत बुरा हो गया कि तुमको अतीत में कड़वे अनुभव हो गए, तो फिर तुम वर्तमान में किसी मिठास को उपलब्ध नहीं हो सकते।

तो कड़वाहट मिलनी पक्की है। ज़िन्दगी तुमको न जाने कैसे-कैसे कड़वे, कसैले स्वाद चखाएगी। उन्हीं कड़वे, कसैले अनुभवों का उपयोग करके तुमको मिठास का अनुसंधान करना है, और कहीं से नहीं मिलेगी मिठास। आसमान से नहीं टपकने वाला शहद। ना आसमान से टपकने वाला है, ना प्रकृति ने तुम्हारे लिए व्यवस्था करी है कि जीवन तुम्हारा मधुर मीठा रहे। ऐसा नहीं होने वाला।

तो चोट खाकर के ही सीखना पड़ता है कि आगे चोट कैसे ना मिले; धोखा खाकर ही सीखना पड़ता है कि विश्वासपात्र कौन है; नीचे गिरकर ही सीखना पड़ता है कि कैसे संभल-संभलकर, कदम जमा-जमाकर ऊपर चढ़ना है। इनके अलावा कोई रास्ता नहीं।

इनके अलावा कोई रास्ता नहीं, लेकिन देखो तुम सवाल कैसा कर रहे हो। तुम कह रहे हो, "अतीत में कड़वे अनुभव हो गए, अब बताइए वर्तमान में मिठास से कैसे जिएँ?"

अरे, अतीत मैं कड़वे अनुभव हुए, सौभाग्य की बात है न। उन्हीं अनुभवों को आधार बनाओ। पूछो, "ये अनुभव कैसे हुए थे? क्या गलती कर रहा था मैं? मेरे जीने में, मेरे सोचने में कहाँ खोट है जो मुझे इन कड़वे अनुभवों से गुज़रना पड़ा?"

जैसे-जैसे तुम उन खोटों को पकड़ते जाओगे, वैसे-वैसे वर्तमान मिठास से भरता जाएगा। और अगर नहीं पकड़ोगे, यही शिकायत करते रहोगे, "अतीत में तो मेरे साथ बुरा हो गया, कड़वा हो गया, हाय-हाय", तो अतीत तो कड़वा था ही, वर्तमान भी कड़वा बना रहेगा। चुनाव तुमको करना है। बात समझ में आ रही है?

कोई भी ये ना सोचे कि मिठास मुफ़्त मिल जाती है। मैं दोहरा रहा हूँ, हमको ऐसा रचा नहीं गया, हमको ऐसा पैदा नहीं किया गया कि आपको मिठास मुफ़्त मिल जाए।

हाँ, हमने इस तरह की शायरी खूब कर ली है। हम सोचते यही हैं कि "वो तो हमको ज़माने ने बिगाड़ दिया, नहीं तो हमारी ज़िंदगी बड़ी सुकून भरी होती, शांतिप्रद होती और मीठी होती।"

नहीं, ऐसा नहीं है। बात ज़माने की नहीं है, बात ज़िन्दगी की नहीं है, बात आपकी मूल संरचना की है। बात ये है सीधे-सीधे कि माँ के गर्भ से जो शिशु पैदा होता है उसका नक्शा ही कुछ ऐसा है, उसकी अभिकल्पना ही कुछ ऐसी है, वो बनाया ही कुछ ऐसा गया है कि रोयेगा। पैदा होते ही रोयेगा और उसके बाद जीवन भर रोयेगा।

पैदा जब होता है, तो उसमें ज़रा मासूमियत होती है, तो नंगा है, खुल्ला रो देता है। लेकिन उसके बाद जीवन भर छुप-छुपकर रोता है। समाज के सामने बत्तीसी दिखता है और भीतर-ही-भीतर आँसू बहाता है।

तो हम पैदा ही ऐसे हुए हैं कि कड़वाहट तो रहेगी। कड़वाहट रहेगी, मिठास मुफ़्त नहीं मिलती। क्या दाम चुकाना पड़ता है मिठास पाने के लिए? कड़वाहट के साथ प्रयोग करो। कड़वाहट से डरो नहीं, कड़वाहट के करीब जाओ; कड़वाहट में प्रवेश कर जाओ; कड़वाहट के रेशे-रेशे को जानो, पहचानो; कड़वाहट के केंद्र में क्या बैठा है, उसका परिचय लो।

ये कीमत चुकानी पड़ती है मिठास पाने के लिए। जो कड़वाहट से डरेगा नहीं, जो ज़िन्दगी के सब खट्टे, कड़वे, कसैले अनुभवों के निकट जाएगा, उनका यथार्थ जानने की कोशिश करेगा ईमानदारी से, उसको फिर परिणाम ये मिलता है, पुरुस्कार ये मिलता है कि उसके जीवन में मिठास का प्रादुर्भाव होता है। वो फिर कह सकता है कि, "अब कुछ मधुर आया ज़िन्दगी में!"

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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