Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles

अर्जुन गीता ज्ञान भूल क्यों गए? || (2019)

Author Acharya Prashant

Acharya Prashant

4 min
315 reads
अर्जुन गीता ज्ञान भूल क्यों गए? || (2019)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। हाल ही में उत्तर गीता के बारे में ज्ञात हुआ। अभी तक श्रीमद्भगवद्गीता के कृष्ण-अर्जुन संवाद को सुना था। अब कुरूक्षेत्र के युद्ध पाश्चात्य हुए इस संवाद को सुन कर अचरज हुआ। इस संवाद की ज़रूरत क्या थी? राजपाठ मिल जाने के बाद अर्जुन दोबारा कृष्ण को गीता सार समझाने की प्राथना क्यों करते हैं?

मैंने थोड़ा जाँच-पड़ताल करी तो देखा कि आज तक इस ग्रंथ पर ज़्यादा कुछ बोला भी नहीं गया है। अगले महीने आप उत्तर गीता पर कोर्स लेने जा रहे हैं, कृपया श्री कृष्ण अर्जुन के इस संवाद के बारे में कुछ कहें।

आचार्य प्रशांत: कई बातें हैं जो पता चलती हैं उत्तर गीता के अस्तित्व मात्र से। पहली बात ये कि अभ्यास और निरंतरता बहुत ज़रूरी है। भले ही गुरु के रूप में स्वयं श्री कृष्ण हों, और भले ही उपदेश के रूप में स्वयं श्रीमद्भगवद्गीता हों, और भले ही शिष्य के रूप में अर्जुन जैसा सुयोग्य और प्रेमी श्रोता हो , फिर भी भूल तो जाते ही हैं।

उत्तर गीता की शुरुआत ही इससे होती है कि युद्ध पूरा हो चुका है, कुछ समय बीत चुका है। श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण कर रहे हैं और अर्जुन कहते हैं, "आपने मुझे तब गीता में जो कुछ बताया था वो भूलने लगा हूँ।"

कृष्ण थोड़ा क्रोधित भी होते हैं। कहते हैं, "कैसे आदमी हो तुम? तुम गीता भूल गए?" और फिर श्रीमद्भगवद्गीता का ही सार संक्षेप उत्तर गीता में निहित है। दोबारा एक तरीके से गीता का ज्ञान दिया जाता है अर्जुन को।

पर देखिए, समझिए, समझाने वाले पहले भी कौन थे? और उपदेश में कोई कमी थी? और जो सुनने वाला था वो भी शिष्यों में उच्चतम कोटि का था, लेकिन फिर भी भूल गया। लेकिन श्रेय देना पड़ेगा अर्जुन को कि वो पूछता है दोबारा। और दोबारा सुनता है।

हालाँकि गीता के अट्ठारह अध्यायों में अर्जुन अनेक बार कहते हैं कि, "केशव सब समझ में आ गया, कोहरा पूरा छट गया, एक-एक बात खुल गई, आँखों के सब जाले कट गए।" बार-बार अर्जुन कहते हैं, "सब समझ में आ गया, सब समझ में आ गया", लेकिन उसके बाद भी।

इसी बात को श्री कृष्ण अगर कहेंगे तो ऐसे कहेंगे कि अर्जुन जब तक तुम्हारा शरीर है तब तक माया भी है। और अगर संत जन कहेंगे तो कहेंगे कि कितनी भी तुम तपस्या कर लो, कितनी भी साधना कर लो माया को कभी मुर्दा मत जान लेना। वो घट सकती है, घट सकती है, घट सकती है, तुम्हारे लिए घट सकती है, एकदम न्यून हो सकती है, शून्यवत हो सकती है, शून्य नहीं होगी। इतनी सी बची रह जाती है। बिलकुल एक ज़रा-सा बीज बचा रह जाता है। तो इसीलिए लगातार सावधानी की ज़रूरत पड़ती है।

कोई समय ऐसा नहीं आ सकता कि जब तुम कहो कि, "मैं तो मुक्त हो गया।" जब तक ये कहने वाला शेष है कि मैं तो मुक्त हो गया तब तक मुक्ति पूर्ण नहीं है। जब तक वो मन और वो मुँह शेष हैं जो कहेंगे, "मैं मुक्त हो गया" अभी मुक्ति ज़रा सी बची हुई है। आंशिक, अधूरी है।

गीता तो यूँ भी मनोविज्ञान का उच्चतम ग्रंथ है, और उत्तर गीता की उपस्थिति उसी मनोविज्ञान का एक अध्याय और है। पहली बात तो सार संक्षेप में वो श्रीमद्भगवद्गीता के ही समान है, और दूसरी बात उसको जिन परिस्थितियों में कहा गया है वो परिस्तिथियाँ विशेष हैं। उचित ही होगा कि श्रीमद्भगवद्गीता को और उत्तर गीता को साथ ही पढ़ा जाए। उनमें एक निरंतरता है। वो दोनों जुड़ी हुई हैं।

YouTube Link: https://youtu.be/HmmE3f53ojo

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
View All Articles