अपनी औक़ात पहचानो

Acharya Prashant

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अपनी औक़ात पहचानो

तुम्हारा बस काम क्या है? तुम बस कह दो कि, “तू मुझे अधिक-से-अधिक यह दिखा सकता है न हो कि मैं कितना गिरा हुआ हूँ, कितना गिरा हुआ हूँ, कितना गिरा हुआ हूँ मैं मान लूँगा। पर मैं काम करता रहूँगा, मैं जितना भी गिरा हुआ हूँ वहाँ से मैं ऊपर उड़ता रहूँगा। जितनी भी गति संभव है, जितनी भी मेरे पास ताक़त है, मैं यथासंभव, यथाशक्ति बस ऊपर उठता रहूँगा। ऊपर उठने से तो कोई नहीं रोक सकता न मुझे। तुम मुझे अधिक-से-अधिक यही बता सकते हो कि मैं और ज़्यादा और ज़्यादा गिरी हुई हूँ, मान लिया; हो सकता है बिलकुल! उतना गिरा हुआ होना मेरा चुनाव नहीं था बिलकुल। वह परिस्थितियों की बात है कि हम वैसे हैं, हम क्या करें?” हमारे चुनाव की बात क्या है? कि हम उठ रहे हैं कि नहीं उठ रहे हैं। ठीक है? तुम प्रदर्शित करते चलो कि हम गिरे हुए हैं! हम प्रदर्शित करते हुए चलेंगे कि हम कितने भी गिरे हुए हैं, हम उठ तो रहे हैं।

वो तुम्हें हरा कर नहीं जीतते, वो तुम्हारा हौसला तोड़ कर जीतते हैं। हार हो जाए कोई बात नहीं हौसला नहीं टूटना चाहिए!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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