Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
‘अनहद’ में जीने का अर्थ || आचार्य प्रशांत, गुरु कबीर पर (2019)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
6 min
262 reads

प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर, मेरा नाम मोहित भाटी है। सर, कबीर दास जी का एक दोहा है :

कबीर कमल प्रकासिया, उगा निर्मला सूर। रैन अंधेरी मिट गयी, बाजे अनहद तूर।। ~ कबीर साहब

सर, इसका अर्थ क्या है? और अगर कोई व्यक्ति इस स्थिति में है तो मुक्ति उसने पा ली? या वो मुक्ति से कितना दूर है ?

आचार्य प्रशांत: जो इस स्थिति में होगा वो ये सवाल नहीं पूछेगा। उसे मुक्ति नहीं पानी है, उसे अपने भ्रम हटाने हैं पहले तो।

कबीर साहब कह रहे हैं, ‘अंधेरा हट गया है, बोध का सूर्य उदित हो गया है, भीतर अब अनहद बज रहा है।'

ये कबीरों की बातें हैं। ये उनकी बातें हैं जो वहाँ पहुँच गए और अब वहाँ से संदेश भेज रहे हैं। ये तुम्हें बताया गया है इसलिए, ताकि तुम आकर्षित हो, ताकि तुममें कुछ प्रेरणा उठे, ताकि तुममें तुम्हारी वर्तमान परिस्थितियों के प्रति आक्रोश उठे।

पर हम बहुत गज़ब के लोग हैं। हमारी हालत ऐसी है कि हम अंधेरे में जी रहे हों, हमारे पास एक मरियल दीया हो बस और कोई सूरज के देश से हमको पैगाम भेजे कि क्या ख़ूब रोशनी है! और वो सूरज का ख़ूब वर्णन, वृत्तांत दे, तो हम उसी वृत्तांत को दीये के ऊपर आरोपित कर देंगे। हम कहेंगे, ‘यही तो है सूरज! मिल गया सूरज! ये जो बात कही गयी है, वो मेरे लिए ही तो कही गई है।'

बताने वाले ने तुमको वो संदेश इसलिए भेजा था, ताकि तुममें अंधेरे के विरुद्ध आक्रोश उठे, ताकि तुम भी सूर्य के प्रति लालायित हो जाओ। और तुमने किया क्या? तुमने उस संदेश को अंधेरे में ही बने रहने का कारण और बहाना बना लिया। तुमने कहा, ‘ये मेरी ही तो बात हो रही है। अब तो मुझे कुछ ओर करने की बिलकुल ज़रूरत ही नहीं है, ये मेरी ही तो स्थिति है।'

कितने सज्जन मिले हैं मुझे — एक तो अनहद शब्द का इतना ज़बरदस्त दुरुपयोग हुआ है और आजकल ख़ासतौर पर हो रहा है। एक मिले वो बोले कि — कहीं जाते हैं किन्हीं गुरुजी के पास — बिलकुल झींगुरों की मंद-मंद ध्वनि सुनाते हैं और कहते हैं, ‘यही तो नाद है।' कितने हैं जिनका दावा है कि उन्होंने अनहद सुना है। अनहद कोई सुनने की बात है, कोई ध्वनि है क्या?

आहत ध्वनियाँ सुन सकते हो तुम। और आहत ध्वनियाँ ही सुनी जा सकती हैं। क्योंकि तुम जिसे सुनना कहते हो, उसकी प्रक्रिया में आहत होना शामिल है। ध्वनि-तरंग आकर के तुम्हारे कान के परदे पर पड़ती है, तो वो होता है आहत, उस पर पड़ती है चोट — चोट माने आहत होना।

तो आहत ध्वनि तुम सुन सकते हो। जो सुनी जा सके वो ध्वनि ही आहत ध्वनि है। क्योंकि वो तुम्हें आहत करके ही तुम्हारी इंद्रिय का विषय बनती है। अनाहत ध्वनि कैसे सुन लोगे? अनाहत ध्वनि बताओ कैसे सुन लोगे? कान से वो सुनी नहीं जा सकती क्योंकि कान तो सिर्फ़ उसको ही सुनेगा जो कान के परदे को आहत करे। मन से तुम सुन नहीं सकते क्योंकि मन में तो सिर्फ़ संचय है पुरानी सारी आहत ध्वनियों का। अनाहत ध्वनि का तो मन का कोई पूर्व अनुभव है नहीं। तो तुमने सुन कैसे ली?

पर ख़ूब चल रहा है ये। कोई कह रहा है कि मैं मौन की आवाज़ सुनाऊँगा। कहीं झींगुरों की आवाज़ है, कहीं झरने की आवाज़ है — सबका नाम अनहद! सब अनहद है। कोई कह रहा है, ‘सब बिलकुल कान-वान बंद कर लीजिए एकदम। जब कहीं कोई आवाज़ न हो, फिर भी भीतर एक आवाज़ सुनाई देती रहती है न, वही तो है!'

सही जीवन जीना पड़ता है; साधना करनी पड़ती है; बड़ा श्रम करना पड़ता है, तब जाकर तुम उस स्थिति में पहुँचते हो जहाँ एक हाथ की ताली सुनाई पड़ती है। दो हाथ की ध्वनि, दो हाथ की ताली, आहत ध्वनि का अर्थ होता है – द्वैत में जीना (ताली बजाते हुए)। यहाँ कितने हैं? (दोनों हथेलियों से ताली जैसा दर्शाते हुए)

श्रोतागण: दो।

आचार्य: दो। जो कुछ भी तुम्हें अनुभव हो रहे हैं वो तब हो रहे हैं जब दो हैं। दो माने एक तुम (दायाँ हाथ दिखाते हुए) और एक संसार (बायाँ हाथ दिखाते हुए) — ये है आहत भाव में जीना। तुम हो, ये संसार है और ये संसार हमेशा तुमको आहत करता रहता है (बायें हाथ से दायें हाथ पर बजाते हुए) — ये है आहत भाव में जीना।

अनाहत भाव में जीने का क्या मतलब होता है? ये (दोनों हाथ जोड़कर दिखाते हुए)। जो ऐसे जीना शुरु कर दे, वो अब आनाहत में जी रहा है। जो अनाहत में जी रहा है, वो अनहद में जी रहा है। ऐसे जीने लगे तुम? तुम्हारा आपा मिट गया?

ये है आपा, मैं, मैं भाव (दायाँ हाथ दिखाते हुए), ये है संसार (बायाँ हाथ दिखाते हुए)। तुम्हारा आपा मिट गया? संसार तुम्हारे लिए हट गया? अहम् से पूरी तरह से मुक्त हो गए हो? अहम् से मुक्ति का ही दूसरा नाम है अनाहत भाव में जीना।

तो अनहद कोई ध्वनि इत्यादि नहीं होता। वो निर‌हंकारिता के चरम का नाम है। जब तुम्हारी साधना चरम पर पहुँच जाती है; अहम्, ब्रह्म ही हो जाता है, तब तुम कहते हो कि हमें अब साधारण आवाज़ें नहीं सुनाई पड़तीं, हमें आवाज़ों के पीछे का मौन सुनाई पड़ता है। आवाज़ों के पीछे के मौन का नाम है – अनहद।

वो मौन तो मौजूद है ही! तुम्हें तब मिलेगा जब तुम अपने आपे से मुक्त हो जाओ। तो अनहद को लेकर बहुत जिज्ञासा मत करो। स्वयं को लेकर जिज्ञासा करो — ‘क्या मैं अहंकार से मुक्त हो गया?’ ‘मैं' अहंकार से अगर मुक्त हो गया, तो मुझे फिर जो सुनाई दे रहा है उसका नाम है – अनहद। और अगर मैं ही अभी अहंकार से मुक्त नहीं हुआ, तो अनहद मुझे कहाँ से सुनाई पड़ जाएगा भाई!

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles