अकेलापन, भावुकता, प्रेम और धर्म परिवर्तन — एक लड़की, कितने धोखे!

Acharya Prashant

34 min
845 reads
अकेलापन, भावुकता, प्रेम और धर्म परिवर्तन — एक लड़की, कितने धोखे!
भीतर से लड़की सिकुड़ जाती है। उसकी जैसे पूरी चेतना ही संकीर्ण हो गई हो। डर आ जाता है उसके भीतर। छुटपन आ जाता है बहुत तरीके का। वो बड़ी बातें अब सोचने में लगभग असमर्थ हो जाती है। भई जिसको अभी अपने घर का ही नहीं पता वो और कौन सी बड़ी बात सोचे? जिसको अभी यही नहीं पता कि इतनी बड़ी चीज भविष्य में मेरे साथ होनी क्या है कि मैं कहाँ जाकर पढ़ने वाली हूँ। वो और कौन सी बड़ी बात सोचेगी? उसके लिए तो यही बहुत बड़ा मुद्दा है जो खाए जाता है। कि आसपास के लोग इनकी उपेक्षा इनके व्यवहार का 'इनडिफरेंस' और जिसके यहाँ जाना है। वो होगा कौन? यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा नाम प्रिया है। मेरा क्वेश्चन पर्सनल लाइफ़ से रिलेटेड है इसलिए मैंने मास्क लगाया हुआ है। निजि प्रश्न है मेरा। जी, मैं जिस गाँव से आती हूँ वहाँ पर लड़कियों की एजुकेशन पे ध्यान नहीं दिया जाता है और मुझे भी रोका जाता था बाउंड किया जाता था, कि पढ़ाई मत करो क्योंकि तुम्हें तो सिर्फ घर के काम देखने हैं। और तुम पढ़ाई करके क्या करोगी तो मैंने किसी तरीके से अपनी एजुकेशन ली और उसके बाद अब मैं चार साल से मुंबई में आईटी कंपनी में काम कर रही हूँ। मेरे जो पुराने रिश्तेदार थे उनसे बात होना कम हो गई। जो दोस्त यार थे वो भी छूट गए। मतलब उनसे बात कम होने लगी तो कुछ अकेलापन सा महसूस होने लगा।

मेरी दोस्त रियाज नाम के बंदे से हुई। वो मेरा ऑफिस कलीग ही है जिसके साथ अब काफी क्लोज़ रिलेशनशिप है मेरा, और मतलब बंदा अच्छा है। उससे मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। कुछ दिनों से ऐसा है कि, मुझे लग रहा है कि वो मेरी केयर की जगह काफी ज्यादा पज़ेसिव हो रहा है। उसका मानना है कि, वो केयर कर रहा है बट मुझे लगता हैजि कि वो केयर नहीं पज़ेसिवनेस है। तो काफी सारी अच्छाइयाँ है। मेरी केयर करता है और जब भी मैं अकेली होती हूँ, तो साथ देता है मेरा। तो अब जैसे ऑफिस में कुछ लेट हो जाना या दूसरे कलीग से बात करना। तो उसको लगता है कि मुझे नहीं करना चाहिए। या उसका फोन चेक करना वो मुझे उसका शक करने जैसा लगता है।

लेकिन इसके साथ ही अभी जो मेरा प्रश्न है वो मेरी रिलेशनशिप को लेकर ही है। क्योंकि हम दोनों की उम्र कुछ ऐसी है अभी मैं 27 साल की हो गई हूँ। कहीं ना कहीं अकेलापन महसूस होता है। हम दोनों ने फैसला किया शादी करने का। अभी मैंने अपने घर वालों को तो नहीं बताया है। लेकिन रियाज़ ने अपने घर वालों को बताया है। और रियाज़ चाहता है कि मैं अपना धर्म परिवर्तन कर लूँ शादी से पहले। ताकि जो फैमिली बॉन्डिंग होती है, उसकी फैमिली मुझे जानती है और उनके धर्म को उनके कल्चर को मैं, घुल मिल पाऊँगी। तो इसमें मेरे को समझ नहीं आ रहा था कि, मुझे क्या करना चाहिए? क्योंकि काफी बड़ा फैसला है मेरे लिए। इसलिए मैं आपसे बात करना चाह रही थी।

आचार्य प्रशांत: तीन बातें मैं सुन पाया। पहली और तीनों एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक ऑर्डर में है। एक क्रम में है। पहली लोनलीनेस, अकेलापन। एक आपने क्या कहा? कहाँ से आती हैं आप? शहर का नाम नहीं बताना चाहे तो भी छोटे शहर से आती हैं। गाँव बोला था?

प्रश्नकर्ता: मैं एक छोटे से गाँव से हूँ।

आचार्य प्रशांत: ठीक-ठीक। गाँव की संस्कृति वहाँ लड़की और मुश्किल से उसकी लिखाई पढ़ाई हुई है। खैर किसी तरह वो पढ़ गई। अब वो जाकर मुंबई में नौकरी कर रही है। ये *लोनलीनेस*। देखो, ये चीज़ ना सबके साथ हो सकती है। ये खतरा रहता है जब आप एक घर बनाते हो। उसमें एक परिवार रहता है। पर वो परिवार किसी कारण से अपने लोगों को कहीं अच्छा साफ प्रेम नहीं दे पाता। कई बार तो कारण यही रहता है, कि लड़की है। पराए घर जाना है। इसके साथ बहुत दिली रिश्ता बनाकर होगा भी क्या? और गाँव की लड़की है तो 16, 18, 20 साल में ही उसकी विदाई हो जानी है। उसको हम बहुत अपना क्या माने? और भीतर ही भीतर ये बात जब आपको पता होती है कि लड़की है, इसकी विदाई हो जानी है। इसको अपना क्या माने।

वो चीज लड़की को भी दिखाई देने लग जाती है कि ये मुझे अपना मानते हैं नहीं। घर के महत्वपूर्ण फैसले होते हैं। उसमें भाई लोग बैठ जाते हैं। मुझे नहीं बैठाया जाता। मैं खुद ही आकर वहाँ खड़ी हो जाऊँ तो बात अलग है। पर कोई नहीं कहता कि, आओ बैठो। एक जरूरी बैठक है। इसमें तुम्हारा भी होना आवश्यक है। ऐसा नहीं होता। घर में दिखने लग जाता है। बबा-बात में उसकी शादी की चिंता करना। उसको पराया धन बोलना। उसको दूसरे की अमानत बोलना ये लोनलीनेस है। वो किससे बात करें?

और अगर छोटे शहर या गाँव का माहौल है। तो दूसरे से बात करने की सुविधा या इजाजत तो वैसे भी नहीं होते। घर वाले उसे पूरी तरह अपना मानते नहीं। मैं कुछ बातें ऐसी बोलूँगा जो आप के कॉन्टेक्स्ट से बाहर कि हैं। क्योंकि जो मैं जवाब दे रहा हूँ ना, वो मैं नहीं चाहता कि वो बस आपके लिए हो। उसका एक व्यापक अर्थ होना चाहिए। ज्यादा लोगों के लिए वो जवाब रेलेवेंट होना चाहिए। ठीक है। तो आप उसी हिसाब से सुनिएगा। तो बाहर वालों से उसको बहुत बात करने की इज़ाजत नहीं है।

भाई भी गया है, स्कूल या कॉलेज और वो वहाँ से 2:00 बजे कॉलेज छूट जाता है और भाई वहाँ से 5 - 6:00 बजे भी आ रहा है तो कोई पूछने वाला नहीं है। पर लड़की है, और 2:00 बजे का कॉलेज है और 2:30 की जगह 3:00 बज गए तो अफ़रा-तफ़री का माहौल है। अभी तक घर क्यों नहीं पहूँची? ऐसे जैसे कि कितना प्यार हो उससे कि अभी तक तू घर नहीं पहूँची। तेरे दर्शन के लिए हम व्याकुल हो रहे थे। हाँ, जब वो घर पहूँच जाए तो उसको पूछना नहीं है। अपना वो आकर पड़ी है। उसको पूछना भी है तो बस यही कि, हाँ आजा अब काम में हाथ बटा दे। ये कर दे, वो कर दे। भाई के अंक खराब हो जाए तो बात होगी, अरे! पढ़ाई ठीक से करन। क्या करना है? क्या नहीं करना है?

लड़की बहुत अच्छी हो पढ़ने में तो भी कोई बड़ी बात नहीं है और बहुत खराब हो पढ़ने में तो भी कोई बड़ी बात नहीं है। हम लोनलीनेस समझना चाहते हैं। भारत के साधारण छोटे शहरों और गाँवों से आने वाली लड़कियों के संदर्भ में हम ये जो लोनलीनेस अकेलेपन की बात है उसको समझना चाहते हैं और हम देखना चाहते हैं कि वही लोनलीनेस आगे चलकर के फिर क्या बन जाती है। समझ रहे हो बात को? अब ये जॉब करती हैं तो इन्होंने ग्रेजुएशन तो करी ही होगी। पर ग्रेजुएशन वही ग्रेजुएशन जब भाई को कराई दी जाती है। तो 1500 किलोमीटर दूर भी अगर कोई अच्छा कॉलेज मिल रहा होगा, तो उसको भेजा जाएगा। और 1500 किलोमीटर दूर उस कॉलेज में भेजने के लिए अगर मोटी डोनेशन भी देनी पड़े, तो दी जाएगी। जरूरी नहीं है, कि भाई बहुत काबिल है और मेरिट पर ही दाखिला पा गया है। और आप हो सकता है, आप यूपी बिहार के किसी छोटे शहर गाँव से हो और बैंगलोर में किसी कॉलेज में अच्छा कोई रकम देकर के मिल रहा हो *एडमिशन*। तो भाई के लिए वो रकम खर्च कर दी जाएगी।

और ऐसा नहीं कि ग्रेजुएशन लड़की को नहीं कराई गई पर उसको बोला जाएगा यहाँ पास में ही कस्बा है । गर्ल्स डिग्री कॉलेज वहाँ पर जाकर तू बीए कर ले। तो कहने को तो दोनों ग्रेजुएट हैं पर दोनों की ग्रेजुएशन में बहुत अंतर है। बहुत अंतर है। भाई की पढ़ाई के लिए बाप कर्जा उठाने को भी तैयार हो जाएगा। ये आप लोगों के लिए अच्छी कम्युनिटी एक्टिविटी है। भारत में जो एजुकेशन लोन लिए जाते हैं, पता करिए कि उसमें लड़कों के लिए कितने लड़कियों के लिए कितने हैं। होश उड़ जाएँगे आपके। और उसमें फिर देखिए कि उत्तर भारत में और दक्षिण भारत में क्या अनुपात है? और मजा आएगा आपको। वो कोई पागल तो नहीं पैदा हो गई है ना? उसको भी दिखाई देता है।

वो भी समझ जाती है कि ये मुझे तो सचमुच ही पराया मानते हैं। और पराई तो वो है, क्योंकि यही व्यवस्था है कि उसको उठा के बाहर कहीं भेज दो कि जा अपने घर जा। ये अपना घर जा, समझ में नहीं आता। मुझे ये बचपन से ही नहीं ये बात समझ में आई। मैं हूँ, मेरी बहन है। और बड़ी जबरदस्त है वो। किसी भी बात पे मैं उससे लड़ लूँ। सब रहता है। मामला बराबरी का रहता है। दो मैं उसको लगाता हूँ। दो मुझको वो लगाती है। किसी तरीके से मैं भी उसके खिलाफ़ कुछ साज़िश करता था स्कूली दिनों में, वो भी करती थी ज्यादा वही जीत जाती थी। तो ये सब मैं उसके साथ कर सकता हूँ। बेईमानियाँ भी करता था। मैं उसके साथ कुछ वो भी करती थी, ये भी हो सकता है।

पर एक दिन मैं उसको बोल हूँ ये घर ही तेरा नहीं है। ये तो मेरे मुँह से नहीं निकलेगा कभी, क्योंकि ये बात सच्ची है ही नहीं। ये कैसे कहा जा सकता है उससे नहीं कहा जा सकता। कुछ भी और कह दो गैंडी बोल दो। ऐसे मोटी बचपन। कुछ भी बोलते थे, सब करते थे, मस्त मारपीट भी होती थी पर ये थोड़ी बोल पाओगे कि ये तेरा घर नहीं है। ये कैसे बोल सकते हो? आ रही है बात समझ में? एक बार आपने उसके भीतर ये बात डाल दी कि ये तेरा घर नहीं है। तेरा घर कोई और है। समाज की इस आधी आबादी के भीतर एक बड़े गहरे अलगाव का, अकेलेपन का, सूनेपन का, परित्यक्त होने के भाव का जन्म होता है। पुरुषों के लिए समझना थोड़ा मुश्किल होगा। पर प्रयास करिए।

आप बचपन से ही ऐसे माहौल में हो जहाँ आप सुनते आ रहे हो रोज़ कि तुझे यहाँ से निकलना है, निकलना है, निकलना है। और घर वाले भी और अड़ोसि-पड़ोसी भी और रिश्तेदार भी इसी जुगत में लगे हैं कि कब होगा? कब होगा? कब होगा? लड़की जवान हुई जा रही है। क्या करना है? आप सोचिए कि उसके भीतर आप क्या पनपा रहे हो। एक तरह का न्यूरोसिस है ये। वो ये देख रही है कि, यहीं पे भाई पैदा हुए। उनको कोई नहीं बोल रहा कि तुम्हें घर छोड़ना है। और घर छोड़ना इस मारे नहीं कि घर छोड़ के तुमको, कोई बहुत ऊँचाइयाँ मिलने वाली है। करियर की या कॉन्शियसनेस की कुछ नहीं है। घर छोड़ना है क्योंकि बस लोकधर्म है घर छोड़ो, निकलो यहाँ से। जैसे जड़ ना हो, जैसे एक टूटा हुआ हवा में तैरता हुआ पत्ता हो जिसको पता ही नहीं वो कहाँ जाकर गिरेगा। वो अपने आसपास देख भी रही है घर को तो कह रही है ये तो मेरा है नहीं। और जिसको ये मेरा घर बता रहे हैं उसको मैं जानती नहीं। तो फिर मेरा घर कहाँ है? मैं हूँ कौन?

भीतर से लड़की सिकुड़ जाती है। उसकी जैसे पूरी चेतना ही संकीर्ण हो गई हो। डर आ जाता है उसके भीतर। छुटपन आ जाता है बहुत तरीके का। वो बड़ी बातें अब सोचने में लगभग असमर्थ हो जाती है। भई जिसको अभी अपने घर का ही नहीं पता वो और कौन सी बड़ी बात सोचे? जिसको अभी यही नहीं पता कि इतनी बड़ी चीज भविष्य में मेरे साथ होनी क्या है कि मैं कहाँ जाकर पढ़ने वाली हूँ। वो और कौन सी बड़ी बात सोचेगी? उसके लिए तो यही बहुत बड़ा मुद्दा है जो खाए जाता है। कि आसपास के लोग इनकी उपेक्षा इनके व्यवहार का इनडिफरेंस और जिसके यहाँ जाना है। वो होगा कौन? और गाँव में तो ये सब भी बहुत चलता है। मारपीट, और जहाँ जाऊँगी कहीं मारने पीटने तो नहीं लगेगा। उन्होंने घर में भी देखा है अपनी भाबियों को पिटते हुए। माँ को पिटते देखा है। बड़ी बहन जहाँ गई है वहाँ बड़ी बहनों से सुनती है कि पिट रही हैं। पर नहीं भी पिट रही है। कोई जरूरी नहीं है कि थप्पड़ चेहरे पर ही मारा जाए। नहीं भी पिट रही है तो, शरणार्थी होना समझते हो, रिफ्यूजी होना समझते हो?

हम जहाँ के थे वहाँ से उठा के हमें कहीं और डाल दिया गया है। *अपरूटेड*। जड़ से उखाड़ दिया गया है। जड़ से मुझे उखाड़ दिया गया है और ना जाने कहाँ मुझे ले जाकर डाल दिया जाएगा। और कहा जाएगा कि अब तुम इनको अपना मानो। इस हद तक अपना मानो कि तुम्हारे माँ-बाप भी जैसे बदल गए। इनको बोलो पापा-मम्मी। कैसे पापा-मम्मी किसी और को बोल दे? और वो बोलती है। आ रही है बात समझ में? एक खौफनाक तरह का सूनापन है उसकी जिंदगी में, वो घर से निकली है।

अब आपके मुद्दे पर आ जाते हैं। आप घर से निकली हैं आप बंबई पहूँच गई आमतौर पे वैसे आप जिस परिवेश से आ रही हैं ना, उस माहौल की लड़कियों को जॉब भी मिलती नहीं है। आपको कैसे मिल गई यही चमत्कार है। क्योंकि उनकी पढ़ाई इस लायक नहीं होती है कि उनको नौकरी मिल जाए। पर कई बार तो खुद भी नौकरी करना चाहती नहीं है क्योंकि उन्होंने अपनी किस्मत के आगे घुटने टेक दिए होते हैं। वो बोलती हैं नौकरी करके क्या करेंगे? जाके बर्तन माँजने हैं और बच्चे पालने हैं। ये नौकरी का मैं स्वांग करुँ ही क्यों? करना ही नहीं है। और मिल भी जो नौकरी रही 8-10 हज़ार की नौकरी कहीं मिल रही है। उतनी की भी नहीं मिल रही है तो मुझे नौकरी करनी ही नहीं है। पर आपकी अच्छी बात आपको मिल गई। आप कर रही हो नौकरी।

अब ये व्यक्ति कौन है जो उस नौकरी में गया है? जिसका अपना अब कोई भी नहीं है। क्योंकि एक बार वो नौकरी में चली गई तो घर वालों के लिए वैसे भी एक अबूझ चीज़ हो जाती है। उन्होंने ये भविष्य उसके लिए सोचा नहीं होता है। मैं सब घरों की बात नहीं कर रहा हूँ। पढ़े लिखे घरों में हालत बदल चुकी है। जहाँ शिक्षा है, और जहाँ थोड़ी अग्रणी और आधुनिक और खुली सोच है, वहाँ ऐसा व्यवहार अब कम हो गया है। पर गाँव गमई की कोई लड़की है वो जाकर जॉब कर रही है। ये तो उस पूरे गाँव में कभी हुआ ही नहीं। तो अब घर वालों, गाँव वालों के लिए वो कैसी हो गई है? अबूझ। अबूझ माने अब हमें समझ में ही नहीं आती। वो जान ही नहीं पाते। अब इससे बात क्या करें? माँ भी अभ्यस्त है बहनों से इसी लड़की की बहनों से ये बात करने में कि और अगला बच्चा कब आ रहा है। और तेरी सास ने आज तुझे मारा कि नहीं। और अगला व्रत त्यौहार है, तूने पालन किया कि नहीं। माँ को भी ये सब बातें तो करनी आती हैं। इनसे क्या बात करें माँ? तूने कोड से ही लिखा कि नहीं? तेरा सैलरी इंक्रीमेंट कब होगा? तू इस कंपनी को छोड़ के अगली कंपनी में कब जा रही है? तुझे ओवरसीज़ एक्सपोज़र देने वाले हैं क्या?

माँ ये सब बातें करना जानती ही नहीं है। लोनलीनेस समझ रहे हैं? *लोनलीनेस*। तो माँ का फोन भी आता है तो क्या बात करें? माँ बस एक बात पूछ सकती है। ये सब तो ठीक है। शादी बता! शादी बता! शादी बता! वो हो सकता है, बहुत जबरदस्त मीटिंग करके लौटी हो। वो हो सकता है, किसी फॉरेन क्लाइंट से बात करके अभी फुर्सत मिली हो। और फोन आ रहा है माँ का माँ सूटते ही शादी? सामने क्लाइंट बैठा है जो पूछ रहा है डिलीवरी कब शुरू होनी है माँ एक ही डिलीवरी जानती है। क्लाइंट पूछ रहा है बताइए? ये हमारी टर्म्स थी, इस दिन तक मामला डिप्लॉय हो जाना चाहिए उसके बाद हम आपका पेमेंट रिलीज करेंगे। वहाँ अलग बात हो रही है और इधर माँ, भाभी, बुआ आप लोनलीनेस देख पा रहे हैं? एक छितराया हुआ मन एक पौधा जिसको जड़ों से उखाड़ा गया।

और वो अब जहाँ जाकर के फिर से जड़े फैलाना चाहता है वहाँ भी उसे जड़े लेने नहीं दिया जा रहा। ये हालत कर दी है भारत में हमने अपनी लड़कियों की, बेटियों, बहनों की। ये बैकग्राउंड समझ में आ रहा है? अब कोई मिल जाता है ऑफिस में जो ये देख लेता है कि इसके भीतर बड़ा अकेलापन है, सूनापन है। ये किसी की नहीं है। इसकी आँखों में उदासी है। और ये कुछ जानती नहीं है। क्योंकि इसका बैकग्राउंड ऐसा है कि ना इसको नाच सिखाया गया, ना संगीत सिखाया गया, ना कोई खेल सिखाया गया। ना इसने कभी अच्छी किताबें पढ़ी हैं, अपने घर गाँव में। तो इसके पास ऐसा भी नहीं है कि ऑफिस से फुर्सत होगी। तो यहाँ से चली गई है। और 2 घंटे जमकर बैडमिंटन खेला और उसमें इतना थक गई कि सो गई। ये ऐसी भी नहीं है। ये कुछ नहीं जानती। ये बड़े शहरों के रंग-ढंग भी नहीं जानती। ये भी नहीं कर पाएगी कि किसी जाकर के अच्छे कैफे में बैठ जाए। इसको ये सब भी नहीं पता। ये कुछ नहीं जानती।

बस ये है कि किसी कदर किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में इंजीनियरिंग कॉलेज बहुतेरे हैं मिडिओकर। कहीं से इसने इंजीनियरिंग कर ली। किसी तरह इसकी जॉब लग गई। बाकी जानती है कुछ नहीं है। और उस जॉब में भी इतना पैसा इसको अभी मिलता नहीं है कि ये जाकर के खुल के यही कर ले कि मैं जा रही हूँ और 4 घंटे शॉपिंग करूंगी। इतना भी पैसा नहीं है कि इतनी शॉपिंग करे। तो ये क्या करती है? इसके पास एक छोटा सा कमरा होगा या पीजी में रहती होगी। और ये वहाँ चली जाएगी और घुस जाएगी। और वहाँ क्या है? अब साएं-साएं सूनापन और वो नापन, वो खालीपन इसके चेहरे में इसकी आँखों में दिखाई देता है। मुझे माफ करना, अगर इसमें से कुछ बातें तुम पर लागू नहीं होती हो तो। ठीक है। मैं एक ज्यादा बड़ी ऑडियंस के लिए बोल रहा हूँ। अब ये सबको दिखाई देता है। चुप रहती है। अपने में रहती है या कि जबरदस्ती दूसरे ग्रुप्स में घुसने की कोशिश करती है। जस्ट टू फील दैट आई बिलोंग।

एक आदमी तो बहुत अकेला हो ना। वो फिर कई बार अपनी इज्ज़त को भी ताक पर रखकर दूसरे ग्रुप्स में घुसने की कोशिश करता है और कई बार तो उसको ऐसे कोहनी मार दी जाती है कि तुम बाहर रहो तुम क्यों घुस रहे हो? ये आ गई है स्मॉल टाउन और ये हम मुंबई वालों के बीच में घुसने की कोशिश कर रही है। क्यों आप हो अगर आप तो स्मॉल टाउन भी नहीं, आप तो विलेज़ बोल रही हो। आप हो स्मॉल टाउन तो वो कल्चरल बैगेज़ रहता है। आप इतनी आसानी से वहाँ पर एडजस्ट नहीं हो पाओगे। नहीं कर पाओगे तो फिर से वही लोनलीनेस अब ये देखा किसी ने कि ऐसी है वो आपके अगर ऑफिस में साथ है तो दिन भर आपको देख रहा है आपके व्यवहार से पता चल रहा है कि आप तन्हा हो। और जो आपको देख रहा है उसके भी अपने स्वार्थ है वो कौन सा आत्मज्ञानी बैठा हुआ है। आ गया आपके पास और आप फिर उससे ऐसे चिपकोगी जैसे वृक्ष जैसे लता क्योंकि लता कमजोर है।

लता कमजोर है। उसको रीढ़ कभी विकसित करने दी नहीं गई तो उसे जो भी पेड़ मिलता है वो उसी से ऐसे लिपट जाती है।

और अगर वृक्ष का स्वार्थ हो तो फिर तो वो जानबूझ करके लता की तरफ एक शाख भेज देता है। हाथ बढ़ा देता है। और वो लिपट जाएगी। तुरंत लिपट जाएगी। बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ती। तुरंत एक गलत रिश्ता बन जाता है। गलत इस अर्थ में नहीं कि, धर्म अलग है या कोई और बात। गलत इस अर्थ में कि रिश्ते की बुनियाद ही लोनलीनेस है। ऐसा कुछ नहीं है कि बहुत समझदारी है। ऐसा कुछ नहीं कि सामने वाला व्यक्ति बहुत जबरदस्त है। बस हम ऐसे अकेले थे, ऐसे लोनली थे कि जो मिला लिपट गए। लिपट गए। आ रही है बात?

अब यहाँ से शुरुआत होती है पज़ेस्ड होने की। पज़ेसिवनेस देखो सब में होती है बेटा। मैं हमेशा पूछा करता हूँ पज़ेसिव वो होगा। पज़ेसिव माने ये चीज़ मेरी है। मेरा अधिकार है। इसका इस्तेमाल सिर्फ मैं करुँगा। पज़ेसिव तो हर कोई होता है क्योंकि स्वार्थी सभी हैं। तुम पज़ेस्ड क्यों हो गए? पर तुम पज़ेस्ड हो जाओगे क्योंकि तुम बहुत डरे हुए हो। तुम कहते हो बड़ी मुश्किल से जिंदगी में कोई आया है। बाप, माँ, बहन, भाई, दोस्त कोई है नहीं।

दोस्त मैं बोलना भूल गया। ये जो हमारा परिवेश होता है ना इसमें दोस्त नहीं होते लड़कियों के। लड़कियों के दोस्त नहीं होते। मैं नहीं कह रहा कि लड़के उनके दोस्त हो। लड़कियाँ भी लड़कियों की दोस्त नहीं होती हैं। क्योंकि सब लड़कियों को पता है कि दूसरी लड़की से दोस्ती करके क्या करेंगे? मेरा परिवार तो दूसरा है। लड़के लड़कों की दोस्तियाँ बड़ी लंबी-लंबी भी होती हैं। 20-20, 40-40 साल पुरानी। लड़कियों की ऐसी नहीं होती। ये बड़ी अजीब बात है। भारत में अभी भी आप पाओगे कि घूमने फिरने के लिए लड़के पाँच सात का झुंड बना के घूम रहे हैं। गर्ल्स गैंग्स हमें नहीं देखने को मिलते कि कुछ नहीं है। पहाड़ पे ही छुट्टी में चले गए हैं और पाँच लड़कियाँ इकट्ठे घूम रही हैं। उनमें कभी वो बॉन्डिंग होने ही नहीं पाती है। लड़की अकेली ही है। कोई नहीं उसका। अब वो एक मिल गया है तो शी अलाउस हरसेल्फ टू बी पज़ेस्ड।

और खासकर अगर जीवन में समझदारी ना हो विज़डम लिटरेचर ना पढ़ा हो। तो समझ में भी नहीं आता कि सामने वाला जो कर रहा है वो प्रेम है या पोज़ेशन है। ये अंतर स्पष्ट भी नहीं होता। बल्कि ऐसा ही लगता है कि आज तक किसी ने मुझसे जो सवाल नहीं पूछे वो ये पूछता है ना घर में तो मुझसे कोई नहीं पूछता था कि जानू तुमने खाया कि नहीं खाया। खा ले तो ठीक है, ना खा ले तो ठीक है। ये पूछा करता है। ये बढ़िया बात हुई है। एक नई अनुभूति आती है। पहली बार कोई मिला है जिसे मेरी फिक्र है। समझ रहे हो बात को? पहली बार कोई मिला है जो बार-बार पूछ रहा है कि अरे! तुमने अपने फलाने टेस्ट्स करा लिए। मेरे ख्याल से चश्मे का ना ये फ्रेम तुम्हें सूट नहीं करता। मेरे साथ चलो, दूसरा फ्रेम। इस जहाँ की नहीं है तुम्हारी आँखें इतनी प्यारी आँखें। आज तक तो उसे किसी ने बोला ही नहीं था। भई घर में तो यही था कि आँखें फूट गई है क्या? कर्मजली दही गिरा दी। कोई मिला है जो कह रहा है इस जहाँ की नहीं है तुम्हारी आँखें। और उसके पास कोई नहीं है जिससे जाके वो ये सब बातें कर सके घर, परिवार, भाई, बहन भी नहीं, दोस्त भी नहीं, कोई नहीं है। वो लता की तरह लिपट जाएगी। आ रही है बात समझ में?

इस तरह से कभी किसी अच्छे रिश्ते का जन्म नहीं होता। कभी नहीं। और रिश्ता कैसा है वो इसी से समझ में आ जाता है कि उसने तुम्हें किस नियत से पज़ेस करा है। आप कह रही हो। वो कह रहा है, कि धर्म परिवर्तन कर लो ताकि तुम मेरी फैमिली के साथ अच्छे से एडजस्ट कर पाओ। ये कौन सा प्रेम है? जिसमें धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है भाई। ये कौन सा प्रेम है? और फैमिली के साथ ही एडजस्ट होना है तो तुम ये भी तो कह सकती हो कि भई तुम्हें भी मेरी फैमिली के साथ एडजस्ट होना चाहिए। तो ऐसा करते हैं कि धर्म परिवर्तन तुम कर लो। दोनों ही बातें मूर्खता की होंगी। और मूर्खता ही नहीं है। इसमें हिंसा है। इसमें साज़िश है। इसमें कहा जा रहा है कि मैं, मेरी मान्यताएँ, मेरा विश्वास, मेरा पंथ, मेरा मजहब ऊपर आता है। मेरी पारिवारिक संस्कृति ऊपर आती है और तुम अगर मेरे साथ आ रही हो तो तुम्हें बदलना पड़ेगा और वो बदलने को तैयार भी हो जाएगी। वो इतनी अकेली है, वो इतनी सूनी है, वो इतनी पर निर्भर है, वो इतनी डरी हुई है। वो सब बदलने को तैयार हो जाएगी। वो अपना धर्म परिवर्तन भी कराने को तैयार हो जाएगी। बाद में पछताना पड़े वो अलग बात है।

प्रेम नकली है। इसका एक बड़े से बड़ा प्रमाण ये होता है कि कोई आपको बोले कि अपने बारे में ये चीजें बदल लो अगर तुम्हें मेरी फैमिली में आना है तो। और खासकर अगर कोई बोले कि अपना धर्म बदल लो। तो ये तो बिल्कुल लाउडस्पीकर से उसने बोल दिया कि मैं फर्जी आदमी हूँ। ये प्यार करा जा रहा है या धर्म परिवर्तन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है? ये कैसा प्यार है? या फिर ये आदमी खुद भी बहुत डरपोक है। जो अपने ही परिवार के सामने जाकर नहीं बोल सकता। सच्चाई क्या है? तो वो चाहता है अपने परिवार के सामने जाकर के बोले कि मैं जिस लड़की को ला रहा हूँ ना, वो कन्वर्जन के लिए तैयार है। और अगर ये आदमी इतना डरपोक है मान लो तो भी तुम इसके साथ क्यों हो? क्यों हो? शुरुआत उसी लोनलीनेस से होती है। ये लो नेस कहाँ-कहाँ नहीं ले जाकर पटक देती इसका कोई अंत नहीं है। यह पूरी जिंदगी ही खराब कर देती है। समझ में आ रही है बात? ये तुमने कभी पूछा नहीं कि ये धर्म बदलने की बात कैसी भाई? बोलो।

प्रश्नकर्ता: जी जब उसने मुझे कहा धर्म परिवर्तन के लिए तो मुझे भी वही लगा कि इसमें कोई बुराई नहीं है। धर्म परिवर्तन करने में क्योंकि वैसे ही मैं सब देख रही थी कि कोई तो साथ ही नहीं है मेरे। तो ना से तो कोई तो साथ था।

आचार्य प्रशांत: बेटा साथी ऐसे भी नहीं मिलेगा। साथी तो ऐसे भी नहीं मिलेगा। अच्छा एक बात बताना सवाल पूछ रहा हूँ। ये जो अकेलापन है ये किसको महसूस होता है? तुम्हारे बालों को

प्रश्नकर्ता: नहीं।

आचार्य प्रशांत: नहीं। तुम्हारे माथे को?

प्रश्नकर्ता: नहीं।

आचार्य प्रशांत: नाक को?

प्रश्नकर्ता: नहीं।

आचार्य प्रशांत: हाथ-पाँव को?

प्रश्नकर्ता: नहीं।

आचार्य प्रशांत: नहीं। ये अकेलेपन की शिकायत कौन करता है? जब सो जाती हो उस वक्त भी सो गई हो एकदम नींद में गहरे उस वक्त भी याद रहता है कि अकेली हूँ? याद रहता है?

प्रश्नकर्ता: नहीं-नहीं।

आचार्य प्रशांत: नहीं याद रहता है। तो माने शरीर अकेला तो नहीं है। क्योंकि शरीर तो सोते समय भी है पर सोते समय तो शरीर तो सोते समय तो ये याद नहीं रहता कि अकेले हैं। अगर शरीर अकेला होता तो अकेलापन 24 घंटे सताता ना क्योंकि शरीर तो 24 घंटे है।

प्रश्नकर्ता: जी।

आचार्य प्रशांत: जब सो जाते हो तो कौन सो जाता है? जब सो जाते हो तो शरीर तो अपना काम कर रहा है। शरीर नहीं सो गया। धड़कन चल रही है, दिल चल रहा है, शरीर तो है, खाना भी पच रहा है। ठीक? जब सो जाते हो तो अकेलापन हट जाता है। तो सोते समय कौन सो गया था? जिसका अकेलापन हट गया। वो मन है।

प्रश्नकर्ता: मन।

आचार्य प्रशांत: मन है, है ना। समझाने के लिए कह रहा हूँ। अभी और ईगो वगैरह बोलूँगा तो समझ में नहीं। तो मन है जो मन है। मन अकेला है। मन अकेला है ना। तो किसी का तन पाकर के मन का अकेलापन दूर कैसे हो जाएगा? अगर तन अकेला होता तो दूसरे तन से अकेलापन दूर हो जाता। तन तो अकेला है नहीं। नाखून ने कभी बोला मैं अकेला हूँ? नाक बेचारी अकेली, ये सब वो तो जलन होती होगी दो आँख, दो कान । ये और ये (नाक और मुँह की ओर इंगित करते हुए) मिलके आपस में बिचिंग करते होंगे जीभ भी बोल रही है मैं भी अकेली हूँ। 32 ये बैठे हुए हैं मैं अकेली, नाक भी बोल रही है मैं भी अकेली। ऐसा है? ये अकेले हैं? ये अकेले नहीं है। है ना।

मन अकेला है। मन का अकेलापन कोई तनधारी कैसे मिटा देगा? किसी की बॉडी भर से मन का सूनापन कैसे हट जाएगा? आप एक बॉडी ले आते हो। अपनी ही उम्र के एक पुरुष की बॉडी ले आते हो या एक स्त्री की बॉडी अपनी जिंदगी में ले आते हो। उससे मन का सूनापन कैसे हट जाएगा? कैसे हट जाएगा? बोलो? जब बॉडी की समस्या थी ही नहीं लोनलीनेस तो जिंदगी में एक बॉडी ले आ लेने से लोनलीनेस कैसे हट जाएगी?

समझाने वालों ने कहा है कि वो जो लोनलीनेस है ना, वो हटती है लोनलीनेस को ही समझने से।

ये अकेलापन चीज क्या है? मेरे भीतर कौन बैठा है जो अकेला है? इसको समझ जाओ तो अकेलापन कम होने लगता है। हाँ, अकेलेपन को समझे नहीं और इधर-उधर जाकर रिश्ते बना रहे हो या कुछ और कर रहे हो या शॉपिंग कर रहे हो या पैसे कमा रहे हो, कुछ भी कर रहे हो जिंदगी में उससे अकेलापन नहीं हटेगा। और एक बात और बोलता हूँ, सुनो। ऐसे इलाज़ नहीं कर लेने चाहिए जो बीमारी से भी ज्यादा घातक हो।

महिलाओं के साथ प्रकृति ने एक चीज जोड़ दी है प्रजनन। पुरुष तो एक बार को शादी करने का, संबंध बनाने का रिश्ता थोड़ी लापरवाही में कर ले। उसको छोटी सजा मिलती है। पर महिला को बहुत बड़ी सजा मिल जाती है। क्योंकि बच्चा जो है ना वो माँ के शरीर से जुड़ा होता है। वहाँ मामला इरिवर्सिबल हो जाता है। फिर ये नहीं कर पाओगे कि इस राह पर थोड़ी दूर जाकर के वापस लौट आए। वापस कभी नहीं लौट पाओगे।

ये अकेलेपन वगैरह की समस्या का समाधान अगर एक उल्टी-पुल्टी शादी से कर रहे हो तो ये समाधान समस्या से ज्यादा घातक हो जाएगा।

और जिस तरीके की ये बात है। कि मेरी फैमिली ये जो दकियासी रवैया है इस दानूसी रवय में ये भी हो सकता है कि बहुत जल्दी प्रेग्नेंट हो जाओ। जहाँ इस तरह की बिल्कुल पुरानी बातें हैं। अली बाबा के जमाने की। कि तुम्हें मेरी फैमिली से एडजस्ट होना चाहिए वगैरह-वगैरह। तो वहाँ ये पुरानी बात भी चलेगी कि अब आई हो तो अब साल भर के भीतर अम्मा भी बन जाओ। ये बात भी चलेगी। और उसके बाद ये नहीं कह पाओगी कि, अरे! धोखे से मिस्टेक हो गया। चलो अनडू कर देते हैं। सब कुछ कंट्रोल ऑल्ट डिलीट दबा देते हैं। कर पाओगे? कुछ नहीं है वो आ गया अब हाथ में। और कई बार तो भूल हो गई है। समझते समझते एक नहीं दो तीन आ जाते हैं। क्या करोगे अब? क्या करोगे?

अभी कोई ऐसी वृद्धा नहीं हुई जा रही हो। 27 की हो ना। दुनिया देखी? भारत ही देखा ठीक से? जब तक अपने गाँव में थी तब तक तो ज्यादा एक्सपोज़र मिला भी नहीं होगा। बाहर अब निकल आई हो मुंबई में मुंबई आने के बाद से ही दुनिया कितनी देखी तुमने। बोलो? या बस आशिकी लड़ाई है। ये 4 साल थे स्वतंत्र हो सैलरी आती है। इसका इस्तेमाल किसी सार्थक काम के लिए करा या बस आशिकी। क्यों नहीं देखती जाकर के कि दूसरे लोग कैसे जीते हैं, दूसरे कल्चरर्स कैसे होते हैं, दूसरे देशों में महिलाएँ कैसी होती हैं, जिंदगियाँ कैसी होती हैं, जाकर देखती क्यों नहीं हो? पढ़ते क्यों नहीं हो? रीडिंग क्यों नहीं करते? ऑनलाइन इतनी सारी चीजें हैं तुम्हारे प्रोफेशनल फील्ड से ही संबंधित होंगी। उनको क्यों नहीं सीखते? किसी भी स्पोर्ट्स में कुछ महारत है? कुछ भी खेलना आता है अच्छे से? तो जब बुढ़िया हो जाओगी, लाठी टेक तब स्विमिंग पूल में कूदोगी? दो तुम्हारे पीछे कूदे फिर बाहर निकालने के लिए। अभी जवान हो, टांगों में जान है जाकर हिमालय पर काहे नहीं चढ़ती हो?

अकेलापन कितना प्यारा हो सकता है किसी पहाड़ की चोटी से पूछना। अब अभी देख रहा हूँ हो सकता है फ्रेम में ना पता चल रहा हो। पर शोल्डर्स ब्रॉड नहीं है। ये मुझे बताता है कि रैकेट कभी उठाया नहीं है। कोई रैकेट स्पोर्ट नहीं खेला है ना स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करी है। क्यों भई? ना खुद को जानते, ना दुनिया को जानते। ये भी कैसे जानोगे? कि कौन सा व्यक्ति तुम्हारे लिए सही है? कुछ आ रही है बात समझ में या बस बुरी लग रही है मेरी बात।

प्रश्नकर्ता: आ रही है समझ में।

आचार्य प्रशांत: बच्चों को सही परवरिश दीजिए। खासकर लड़कियों को। उनको बेगाना बनाकर रखोगे तो वो बेगानी हो भी जाएँगी। प्यार कोई चीज होती है कि नहीं? किसी को प्यार से इतना वंचित रखोगे तो फिर वो कहीं भी भटकेगा प्यार तलाशने के लिए। और प्यार ऐसे मिलता नहीं है तो प्यार के नाम पर ना जाने क्या उठा लाएगा वो। और क्या उसके परिणाम होंगे गीता सत्रों में कितने समय से हो?

प्रश्नकर्ता: एक साल।

आचार्य प्रशांत: सुने कितने हैं? आधे भी नहीं सुने हैं ना?

प्रश्नकर्ता: मिस हो जाता है।

आचार्य प्रशांत: मिस हो जाता है। सत्र के समय क्या कर रही होती हो? ये सत्र मिस हो जाता है। मैं तो रात में रखता हूँ कि अपना सब काम धंधा खत्म करके निवृत्त होकर बैठो आराम से। परीक्षाएँ कितनी दी? गीता परीक्षाएँ हो रही है हमारी। हर चौथे दिन होती है। कितनी दी? उस भाई को भी बोलो। वो भी गीता परीक्षा दे। उसके ही नंबर देख के पता चल जाएगा कितने पानी में है।

ये अच्छा तरीका है। साल भर से गीता में हैं। ना सत्र सुनना है, ना अवलोकन लिखना है, ना परीक्षाएँ देनी है। ठीक जब सेशन चल रहे होते हैं तब कहीं और अपना हिसाब और उसके बाद जब मुसीबत में आ जाओ तो। आचार्य जी! आचार्य जी! आचार्य जी! अब मैं क्या कर लूँ? सबसे पहले तो नियम बना लो। एक भी सत्र छोड़ना नहीं है। ठीक है? कल वहाँ गया था। उनको बोलकर आया। “न हि ज्ञानेन सदृश्यम पवित्रम विद्यते।” जितना यहाँ (मस्तिष्क की ओर इंगित करते हुए) का कचरा है उसको जलाने वाली आग है ज्ञान। भगवद् गीता।और गीता से दूर रहोगी तो कचरे में ही जाकर गिरोगी। ये बात उन सबके लिए कम्युनिटी के लोगों के लिए जो सत्रों के समय किसी दूसरी चीज़ को ज्यादा जरूरी मानते हैं। गीता से दूर जा रहे हो ना तो कचरे में ही जाकर गिर रहे होगे। मुंबई में भी तो कई बुक स्टॉल लगते हैं। आप भी जाइए और अपने मित्र को भी ले जाइए कि चलो दोनों यहाँ खड़े होते हैं। इतने लोग आएँगे सूनापन कम होगा।

मेरे ये सब कहने के बावजूद जिस दिशा जा रहे हो आप उसी दिशा चले जाओगे अगर समझने की कोशिश नहीं करोगे। कि क्यों उस दिशा जा रही हो? ये हो सकता है कि एक व्यक्ति को छोड़ के किसी दूसरे व्यक्ति की तरफ चले जाओ और गड़बड़ वहाँ भी करोगे। समझो कि अभी क्या स्थिति है और एक बार समझ में आ जाता है ना तो आदमी बहुत सारे अच्छे सही काम शुरू कर देता है। ये अपने आप को बनाने की उम्र है। खेलो, कूदो, बहुत घूमो, बहुत लोगों से बात करो, मिलो जुलो तमाम तरह के ग्रुप्स का हिस्सा बनो। ये नहीं कि वहाँ जाकर जुड़ ही गए हैं पर जाने के लिए समझने के लिए कि यहाँ होता क्या है? क्या चीज है? और कहीं भी रहो कहीं भी घूम रहे हो गीता को मत छोड़ना वो कवच है। ठीक है?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, तो जैसे इन्होंने बताया कि इन्होंने पढ़ाई की और शहर में आई। तो वहाँ पे मेरे चाचा है और उनकी एक लड़की है तो वो अभी भी बारवी में पास हुई है। तो उनका ये था कि उनको पढ़ाना है तो डॉक्टरेट करवाना है जैसे नर्सिंग में। तो हम लोगों ने बात किया था तो उन्होंने बोला कि इसमें होता क्या है कि लड़की नर्सिंग कर रही है, तो मेडिकल में जा रही है फिर वहाँ पे किसी को जाँच कर रही है। तो उसमें शादियों में प्रॉब्लम होती है कि शादी करना है। तो वहाँ पे लोग क्या देखते हैं, क्या नहीं देखते इस पे कुछ मतलब जटिलता ही आती है। जिसको लेकर वो अपना डिसीजन चेंज कर लेते हैं कि हमें इससे क्या करवाना है

आचार्य प्रशांत: बट प्रायोरिटी की बात है ना। तुम मेरी नौकरी को देख के अपना डिसीजन चेंज करोगे। तो मैं अपनी नौकरी को लिए लड़का चेंज कर दूँगी। तुम मेरी नौकरी बदलना चाहते हो तो मैं लड़का ही बदल दूँगी। तो प्रायोरिटी की बात है कि किसको किससे ऊपर रखना है। ये घुस गई है बात आपके, कि एक को नौकरी देखनी होती है और एक को घर देखना होता है। ऐसा तक होता है, कि लड़की ज्यादा कमा रही हो, लड़का कम कमा रहा हो तो भी नौकरी लड़की ही छोड़ेगी।

इतने ही मामले हैं। दोनों एक ही शहर में हैं। काम करते हैं और लड़की की तनख्वाह लड़के से ड्योढ़ी दूनी है। लड़के का ट्रांसफर हो गया दूसरे शहर में। तो लड़की ने भी अपनी नौकरी छोड़ दी और दूसरे शहर में बेरोजगार बन के बैठ गई। भई नौकरी अगर छोड़नी है तो तू छोड़ेगा ना। क्योंकि तू कम कमाता है। ये तो बस भीतर घुसी हुई बातें हैं। और कहाँ से आ रही हैं वो? जटिलताएँ और ये सब ना ये भारी-भारी शब्द इस्तेमाल करके हमें एक बहुत सीधी चीज से मुँह चुराना चाहते हैं। और सीधी चीज यह है कि हमारे खोपड़े में कचरा मान्यताएँ बैठी हुई हैं। जिनका कोई वास्तविक वजूद नहीं। बस मान्यता।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories