मैं जितने भी कपटी लोगों से मिलता हूँ, उनकी धूर्तता की कोई सीमा नहीं। उनका दिमाग चल रहा है। वो महत्वकांक्षी हैं। वो कुछ भी कर दिखाने को तैयार हैं। उनमें ऊर्जा पूरी है, वो दुनिया पर छा जाने के लिए हौसला रख रहे हैं। उनका आत्मविश्वास देखो!
और मैं जितने भी तथाकथित सच्चे लोगों से मिल रहा हूँ वो ऐसे हैं कि, “हूँअअ! हम तो जी राम जी के भक्त हैं। हम तो कुछ नहीं करते। डर जाते हैं। आचार्य जी क्या करें? आचार्य जी गोद में बैठा लो!”
यह क्या चल रहा है?
ऐसे काम चलेगा? और आज के समय में तुम गोलू बन कर बैठ जाओगे, भोंदू बन कर बैठ जाओगे तो फिर तो अधर्म ने मैदान मार ही रखा है। वो लोग तो जीते ही हुए हैं। सारी सत्ता उनके पास, ताक़त उनके पास, पैसा उनके पास। वो तो छाए ही हुए हैं। संगठित वो हैं।
उन को कैसे हरा पाएँगे फिर हम?