आत्महत्या समाधान नहीं || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)

Acharya Prashant

17 min
170 reads
आत्महत्या समाधान नहीं || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मैं आपको तीन-चार साल से सुन रही हूँ। फ़र्स्ट ऑफ़ ऑल थैंक यू ऐंड आई लव यू; ऐंड माई क्वेश्चन इज़ रिलेटेड टु वन ऑफ़ द थिंग दैट यू जस्ट डिस्कस्ड अबाउट, लाइक (सबसे पहले शुक्रिया, और आपसे काफ़ी प्रेम है। मेरा प्रश्न उस एक चीज़ से संबंधित है जिसके बारे में आपने अभी चर्चा की कि) लड़ो, लड़ो, लड़ो। मैं उसी स्टेज (पड़ाव) में अभी हूँ।

मैंने बचपन से सत्संग, सुखमनी, कथा – सब कर रही थी, जब तक मुझे लग रहा था कि वो मुझे समाधान देगा, पर वो नहीं दे पाया। देन आई फॉलोड सेट ऑफ़ प्रिंसिपल्स (फिर मैंने कुछ सिद्धांतों का पालन किया) जो टीचर्स बोलते थे, कि झूठ मत बोलो या ये चीज़ फ़ॉलो करो; मैंने वो भी फ़ॉलो करा, उसने भी काम नहीं किया।

फिर मैं बहुत सारे गुरुओं के पास जाती थी और सत्संग में बैठी। मुझे लगा शायद वो समझा रहे हों, मुझे समझ नहीं आता। मैंने बहुत कोशिश की, मुझे संतुष्टि और जुड़ाव नहीं मिल रहा था, बट फ़र्स्ट टाइम व्हेन आई हर्ड यू, आई गॉट कनेक्टेड (लेकिन पहली बार जब मैंने आपको सुना तो जुड़ाव हो गया)। मतलब आपको बहुत समय तक मैंने सुना, सुना, सुना, और मेरे बहुत सारे प्रोफ़ेशनल (पेशेवर), पर्सनल (निजी), लाइफ़ (जीवन) में बहुत अच्छा ग्रोथ (वृद्धि) भी हुआ, ऐंड आई वॉज़ एंजॉयिंग आल्सो (और मुझे आनंद भी आ रहा था)।

फिर एक ऐसा स्टेज (पड़ाव) आया जहाँ पर आई फ़ेल्ट लाइक डिस्कनेक्टेड (मुझे अलगाव-सा लगने लगा)। रिलेशनशिप इम्प्रूव्ड विद माई मम ऐंड डैड, एवरीथिंग वॉज़ गोइंग गुड, बट आई गॉट डिटैच्ड फ्रॉम एवरीथिंग (मेरे माँ-बाप के साथ रिश्ते सुधरे, सबकुछ अच्छा चल रहा था, पर मैं हर चीज़ से कट गई)। तो वो थोड़े समय तक चला, लेकिन नाउ आई फ़ील लाइक क्विटिंग (अब मुझे छोड़ने का मन कर रहा है)।

ऐंड इफ़ समबडी इज़ फ़ीलिंग लाइक क्विटिंग, ऐंड पीपल आर ट्राइंग टु कन्विन्स मी ऐंड सेइंग, ‘यू आर अ लूज़र, यू शुड कंसल्ट अ साइकिएट्रिस्ट’, ऐंड आई ऐम रेडी टु ऐक्सेप्ट इट, लाइक आई डोंट वॉन्ट टु फ़ाइट ऐनी मोर (और अगर कोई सबकुछ छोड़ना चाहता है, और लोग मुझे समझा रहे हैं कि मैं हारी हुई हूँ और मुझे मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए, और मुझे यह मंज़ूर है, मतलब मैं और नहीं लड़ना चाहती)। ऐट दैट स्टेज, व्हॉट इज़ द बेस्ट यूज़ ऑफ़ लाइफ़ (तो उस पड़ाव पर जीवन का सबसे अच्छा उपयोग क्या है), और क्या करूँ?

आप कह रहे हैं कि लड़ो। मैं कन्फ्यूज़्ड (अस्पष्ट) हूँ।

आचार्य प्रशांत: क्विट व्हॉट? (क्या छोड़ना है?)

प्र: इफ़ समबडी वांट्स टु क्विट फ्रॉम एवरीथिंग, (अगर किसी को सबकुछ छोड़ना हो) मायने नहीं रखता हो कि कुछ भी चल रहा हो उसके जीवन में।

आचार्य: बट दैट पर्सन डज़ नॉट वॉन्ट टु क्विट दैट ‘वॉन्ट’ टु क्विट? (पर वो व्यक्ति छोड़ने की ‘चाह’ को नहीं छोड़ना चाहता?)

प्र: दैट पर्सन वॉन्ट्स टु क्विट (वो छोड़ना चाहता है)।

आचार्य: सबकुछ थोड़े ही क्विट कर रहे हो! वो इच्छा है न, कि क्विट कर दूँ, क्विट कर दूँ?

क्विट करने की इच्छा इसीलिए होती है कि पीछे से कुछ बेहतर मिल जाएगा या कम-से-कम शांति मिल जाएगी। तो पहली बात तो ये नहीं है कि सबकुछ ही क्विट करना चाहते हो।

प्र: बट देयर इज़ अ पेऽन (लेकिन एक दर्द है), जो पूरे समय महसूस होता है, जो ख़त्म नहीं हो रहा। एक दर्द जो बचपन से है, जो ख़त्म नहीं हो रहा है। आई एम गोइंग एवरीव्हेयर, आई ट्राइड बैड थिंग्स टू, बट नथिंग इज़ वर्किंग ऐंड फ़ील लाइक (मैं हर जगह जा रही हूँ, ग़लत चीज़ें भी प्रयास कर लीं, पर कुछ काम नहीं आ रहा और ऐसा लग रहा है कि) जो भी है ख़त्म करो, क्विट करो।

आचार्य: क्विट माने क्या, नौकरी छोड़ोगे? घर छोड़ोगे?

प्र: नहीं, नहीं, मैं नौकरी कर रही हूँ। आई डोंट नो, आई नीड फ़्रीडम फ्रॉम एवरीथिंग (मुझे नहीं पता, मुझे सभी चीज़ों से छुटकारा चाहिए)।

आचार्य: वो तो बहुत अच्छी बात है, सबको वो चीज़ माँगनी चाहिए – फ़्रीडम फ्रॉम एवरीथिंग । पर उसको लेकर के इतनी परेशानी की क्या बात है? वो तो बहुत सुंदर इच्छा है – फ़्रीडम फ्रॉम एवरीथिंग

प्र: पर वो दर्द नहीं जा रहा है जो अंदर हमेशा चलता रहता है, कि लड़ना है, या जो भी करना है, किसी चीज़ का भी दर्द हो।

आचार्य: उसी पीड़ा को तो ऊर्जा बनाते हैं न? वो दर्द नहीं होगा तो फिर मुक्ति चाहिए ही क्यों होगी?

अगर जैसी हम ज़िंदगी जीते हैं आमतौर पर – सभी लोग, आपकी ही नहीं बात है – अगर उस ज़िंदगी में दर्द नहीं होगा तो फिर मुक्ति की ज़रूरत भी क्या है?

प्र: इफ़ आई से आई क्विट फ्रॉम फ़्रीडम टू, विल दैट रिलीज़ मी फ्रॉम माई पेऽन देन? (अगर मैं कहूँ कि मैं मुक्ति के विचार से भी मुक्त होना चाहती हूँ, तो क्या वो मुझे मेरे दर्द से मुक्त करेगा?)

आचार्य: ये तो शाब्दिक बात हो गई – ‘ क्विट फ्रॉम फ़्रीडम ’। आप उससे चाह तो रिलीज़ फ्रॉम पेऽन ही रहे हो न? आपने रिलीज़ शब्द इस्तेमाल कर लिया बस फ़्रीडम की जगह; आप फ़्रीडम फ्रॉम पेन ही चाह रहे हो, अंततः तो सबको वही चाहिए।

देखो, हममें से कोई भी मूलतः दूसरे से अलग नहीं होता। आप जो चाह रहे हो, वही सब चाह रहे हैं। ठीक है? तो ये कोई विशेष स्थिति नहीं है। कुछ अनहोनी या कुछ अलग चीज़ नहीं हो रही है आपके साथ। और जो हो रहा है, वो कोई अशुभ भी नहीं है, वो अच्छी बात है; बस उसको बहुत बड़ा, बहुत अलग, बहुत ख़ास या बहुत अझेल मानकर आप कोई उल्टा-पुल्टा निर्णय मत कर लेना।

ठीक है, बल्कि बहुत लोगों से बहुत बेहतर स्थिति है ये जिसमें कम-से-कम एक दर्द का अनुभव तो होता है। दुनिया में इतने लोग हैं जिनकी शायद जो तकलीफ़ है वो ये है कि वो असंवेदनशील हो चुके हैं, उनको तो अब दर्द और तकलीफ़ भी नहीं पता चलते, आपको पता चल रहे हैं। मैं बिलकुल समझ रहा हूँ कि दर्द का पता चलने का मतलब होता है कि आदमी दर्द में है, लेकिन ये अपनेआप में कम ख़राब बात है बजाय उस स्थिति के जहाँ आपको ये भी न पता लग रहा हो। बहुत सारे लोग होते हैं जो बिलकुल भीतर से सुन्न पड़ जाते हैं, जैसे नंब हो गए हों।

तो ठीक है, ऐसा कुछ नहीं हो गया। जो ऊर्जा है, जो दर्द के ही रूप में अनुभव भी होती है, उस ऊर्जा को सही दिशा दीजिए।

प्र: सॉरी टु से, बट इफ़ आई से दैट आई डोंट वांट टु गिव डायरेक्शन, ऐंड आई ऐम नॉट इन्ट्रस्टेड टु गिव डायरेक्शन ऐट दिस स्टेज? (कहने के लिए खेद है, लेकिन अगर मैं कहूँ कि मैं कोई दिशा देना नहीं चाहती, और मुझे कोई रुचि नहीं है इस पड़ाव पर दिशा देने में?)

आचार्य: देन यू आर इंट्रेस्टेड इन डिराइविंग प्लेज़र फ्रॉम द पेन। दैट हैस टु बी अंडरस्टुड। (फिर आप दुख से मज़ा पाने में रुचि रखते हो। यह समझना होगा।) हम ये कर सकते हैं। बहुत सारे लोग इसको एक डिफ़ेंस मेकैनिज़्म (सुरक्षा प्रणाली) की तरह इस्तेमाल करते हैं, कि दर्द की स्थिति से उबरने के लिए जो ऊर्जा चाहिए वो नहीं लगाएँगे, जो कदम उठाने हैं वो नहीं उठाएँगे। क्यों? क्योंकि उन्होंने दर्द में ही एक प्रकार का सुख पाना शुरू कर दिया होता है।

इंसान के पास न ये एक बड़ी विचित्र-सी शक्ति होती है – वो जिस हालत से उबर नहीं सकता, वो उस हालत के साथ एक्लिमेटाइज़्ड (समायोजित) हो जाता है। नहीं तो आप बताइए, जेल में क़ैदी बीस-बीस साल, चालीस-चालीस साल कैसे रह जाते होंगे? आप अपनी जगह से कल्पना करेंगे, आप कल्पना ही नहीं कर पाएँगे। आप कहेंगे, ‘इन्हें जेल में डाल दिया तो इन्हें दीवारों से सर पटककर जान दे देनी चाहिए, नहीं तो उम्रक़ैद कैसे झेले कोई?’ पर वो वहाँ पर भी अपने बंधनों में ही कुछ सुख खोज लेते हैं।

द ऑनली ऑनेस्ट वे इज़ द कांस्टेंट ऐंडेवर टु लिबरेट वनसेल्फ़ (एकमात्र ईमानदार तरीक़ा है स्वयं को मुक्त करने का निरंतर प्रयास)।

प्र: व्हाई शुड आई डू व्हेन आई एम इन पेऽन? (जब मैं दर्द में हूँ तो मुझे क्यों करना चाहिए?)

आचार्य: बिकॉज़ यू आर इन पेऽन (क्योंकि आप दर्द में हैं)।

प्र: व्हेन आई विल डू, देन आई फ़ील आई विल बी रिलीज़्ड (जब मैं करूँगी, तब मुझे लगता है कि मैं मुक्त हो जाऊँगी)।

आचार्य: व्हाट विल यू डू? (क्या करोगे?)

प्र: ऐनीथिंग विच विल हेल्प टु फ़िनिश माई पेन (कुछ भी जो मेरे दर्द को ख़त्म करने में मदद करेगा)।

आचार्य: उसी को तो लिबरेशन (मुक्ति) कहते हैं न!

आप किस चीज़ की बात कर रहे हैं, क्या करना चाहते हो दर्द को ख़त्म करने के लिए?

प्र: ऐनीथिंग विच इज़ हेल्पफ़ुल (कुछ भी जो मददगार हो)।

आचार्य: ऐनीथिंग (कुछ भी)नहीं होता, कुछ तो मन में होगा!

(विराम)

क्या सोच रहे हो?

प्र: फ़िनिशिंग एवरीथिंग (सबकुछ ख़त्म करना)।

आचार्य: माने क्या?

प्र: एवरीथिंग (सबकुछ)।

आचार्य: माने क्या?

प्र: विच इज़ गिविंग पेन (जो दर्द दे रहा है)।

आचार्य: माने क्या?

(विराम)

बताना नहीं चाहते हो तो फिर बात कैसे होगी?

प्र: लाइफ़। (जीवन)

आचार्य: अच्छा, दर्द बुरा क्यों लगता है?

प्र: पूरे समय एक असंतुष्टि और अशांति।

आचार्य: वो बुरी क्यों लगती है?

प्र: क्योंकि घुटन होती है।

आचार्य: अच्छा। (चाय के कप का ढक्कन उठाते हुए) इसको मैंने यहाँ से उठाकर यहाँ रख दिया, इसको बुरा लगता है?

प्र: इसमें जान नहीं है।

आचार्य: जान माने क्या?

प्र: चेतना, या जिसको समझ कहते हैं।

आचार्य: ठीक है। अगर इसमें (कप का ढक्कन) जान भी हो, पर ये सोया पड़ा हो, बेहोश हो, मैं इसे यहाँ (एक जगह) से उठाकर यहाँ (दूसरी जगह) रख दूँ, इसे बुरा लगेगा?

प्र: नहीं।

आचार्य: इसे (कप का ढक्कन) कुछ भी बुरा कब लगता है? इसे दर्द कब होता है?

प्र: जब इसमें जान होती है।

आचार्य: जान होती है; वो बुरा क्यों मानती है? जो चेतना है वो बुरा क्यों मानती है?

प्र: ईगो हर्ट (अहम् को चोट) होता है।

आचार्य: बुरा क्यों माने? मान लो ये (कप का ढक्कन) चैतन्य है, इसको उठाकर यहाँ (एक जगह) रख दूँ, फिर यहाँ (दूसरी जगह), फिर यहाँ (तीसरी जगह) रख दूँ; ये बुरा क्यों माने?

प्र: क्योंकि मैं इसे परेशान कर रही हूँ।

आचार्य: यानी ये (कप का ढक्कन) कुछ और चाहता है। ठीक? भले ही उसे आज तक मिला न हो। और जो ये दूसरी चीज़ है, जिसको ये चाहता है, ये जानता है कि वो चीज़ इस तरह की ग़ुलामी से बेहतर है; है न? भले ही वो चीज़ इसे कभी मिली नहीं है, पर फिर भी इसको पता है कि एक बँधे हुए जीवन से या एक दर्द भरे जीवन से बेहतर कुछ हो सकता है; तभी तो ये बुरा मानता है न? इंसान की जो हालत है, अगर इंसान को पता हो कि इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता, तो क्या उसे बुरा लगेगा? तो दर्द का अनुभव ही हमें क्या बता रहा है? कि कुछ कहीं बेहतर संभव है।

आप जान दे दीजिए तो जो बेहतर चीज़ संभव थी उसका क्या होगा अब? उसका क्या होगा?

प्र: अगर वो बेहतरी पाने में कोई रुचि न हो तो?

आचार्य: तो फिर दर्द भी नहीं हो रहा होता! दर्द इस बात का सबूत है कि आपको वो बेहतर चीज़ चाहिए। जिस दिन आपको कुछ नहीं चाहिए होगा जीवन में, उस दिन जीवन में दर्द भी नहीं रहेगा। अगर दर्द, तड़प, घुटन – कुछ भी मौजूद है, इसका मतलब कि अभी एक तरह का प्रेम मौजूद है जो कह रहा है कि कोई बेहतर चीज़ है जो मुझे चाहिए। आप जान दे देंगी, फिर उस संभावना का क्या होगा?

दर्द आया था आपको ये बताने के लिए कि जियो और जो बेहतर स्थिति हो सकती है उसको पाओ। पर दर्द के संदेश को आपने समझा नहीं, दर्द बढ़ गया, आपने जान दे दी। तो ये तो उल्टा-पुल्टा कर दिया न सब, कि नहीं कर दिया?

प्र: अगर कोई रहेगा ही नहीं, तो न दर्द रहेगा न मैं, न बेहतरी की इच्छा रहेगी।

आचार्य: अगर इस बात में आप यकीन करती होतीं तो आपको दर्द अभी ही नहीं रहता! आप ख़ुद इस बात में यकीन नहीं करतीं हैं।

दर्द क्या समझा रहा है ये समझिए तो सही! दर्द बता रहा है कि तुम जिस स्थिति में हो, इससे कहीं बेहतर कुछ संभव है, जाओ उसको हासिल करो। दर्द आपको प्रेरणा देने आया है एक बेहतर जीवन जीने की, दर्द आपसे ये थोड़े ही बोलने आया है कि आत्महत्या कर लो! दर्द सबक दे रहा है। दर्द की बात सुनिए, ज़िन्दगी को बेहतर बनाइए।

कोई बंधन, कोई मजबूरी इतनी ख़तरनाक नहीं होती कि आपको जान ही देनी पड़ जाए!

और अगर बहुत लग रहा हो कि जान देनी है, तो इंटरनेट पर ज़रा उनके बारे में देख लीजिए – करोड़ों ऐसे लोग हैं जो वास्तव में नारकीय ज़िंदगियाँ जी रहे हैं – उनका एक बार दुख देख लीजिएगा, फिर आपको समझ में आएगा आपका अपना दुख कितना छोटा है। और फिर अपनेआप से पूछिएगा कि आपको हक भी है क्या इस छोटे दुख को इतना बड़ा मानने का कि जान ही दे दें।

यहाँ लोग हैं दुनिया में जिनके दोनों हाथ कटे हैं, दोनों पाँव कटे हुए हैं और शरीर में कई तरह के रोग हैं, फिर भी वो सार्थक जीवन जी रहे हैं; अपनेआप को भी आगे बढ़ा रहे हैं और दूसरों को भी रोशनी दे रहे हैं।

प्र: आचार्य जी, वो स्ट्रॉन्ग (मज़बूत) होंगे, पर मैं नहीं हूँ।

आचार्य: आप फिर झूठ बोल रहीं हैं। अगर आप स्ट्रॉन्ग न हो सकतीं तो आपको दर्द भी अनुभव नहीं होता। दर्द हमेशा तुलनात्मक होता है, वो इशारा कर रहा होता है कि तुम क्या हो सकते हो लेकिन हो नहीं। कमज़ोरी का दर्द भी इसीलिए होता है क्योंकि कमज़ोर रहना आपकी नियति नहीं है। ये तो बहाने की बात है कि वो स्ट्रॉन्ग होंगे। कोई नहीं...

प्र: आचार्य जी, बहाना नहीं है, लिटरली (वास्तव में) बहुत सालों से ये हो रहा है, नहीं तो मैं...

आचार्य: आप यहाँ सामने खड़ी हुईं हैं, आप शरीर से ठीक-ठाक लग रहीं हैं, मुझे नहीं लग रहा है आपको कोई बड़ी बीमारी है; आप पढ़ी-लिखी हैं, आप शायद कहीं काम करतीं हैं, आपके पास रुपया-पैसा भी है; आप समझ रहीं हैं कि आप कितने सौभाग्यशाली लोगों में से एक हैं? और अगर आप इस जगह पर आ पायीं हैं, तो कम-से-कम आय के मामले में आप देश के शीर्ष पाँच प्रतिशत लोगों में से हैं। उम्र से भी आप न अभी बच्ची हैं, कि बेसहारा-बेसमझ, न आप बूढ़ी हो गईं हैं; आप युवा हैं, आपके पास ऊर्जा भी होगी।

आप आय से ठीक हैं, आप दिमाग से ठीक हैं, आप शिक्षा से ठीक हैं, आप उम्र से ठीक हैं; आपको अधिकार क्या है अपनेआप को इतना दुखी बोलने का कि आप आत्महत्या कर लें? और ये आप कहकर के उनके साथ अन्याय नहीं कर रहीं हैं क्या जो वास्तव में आपसे हज़ार गुना ज़्यादा कष्ट में हैं लेकिन फिर भी मुस्कुरा रहे हैं?

मुझे सरदर्द हो रहा हो, आपको कैंसर है, और मैं छाती पीट-पीटकर रोऊँ, तो मैं अपने साथ जो कर रहा हूँ सो कर रहा हूँ, मैं आपके साथ भी अन्याय नहीं कर रहा हूँ क्या? बोलिए!

प्र: मे बी आई एम सेल्फ़िश ऐंड दैट्स व्हाई आई ऐम थिंकिंग अबाउट माइसेल्फ़ (शायद मैं स्वार्थी हूँ इसलिए मैं अपने बारे में सोच रही हूँ)।

आचार्य: एवरीबडी इज़ सेल्फ़िश, ऐंड दैट्स व्हाई एवरीबडी शुड एऽम टु अपलिफ़्ट द सेल्फ़ (हर कोई स्वार्थी होता है, इसलिए सब को ‘स्वयं’ को ऊँचाई देनी चाहिए)।

एक काम करिए, दो-चार महीने बाद फिर बात करिएगा; दो-चार महीने ज़िंदा रह लीजिए और जो सही में दुखी लोग हैं दुनिया के, एक बार उनका सर्वे (निरीक्षण) कर लीजिए।

ठीक है? इतना कर सकते हैं?

प्र: आचार्य जी, मैं गई हूँ बहुत लोगों के पास।

आचार्य: जिनसे मिल सकते हैं हम, वो लोग मुठ्ठीभर होते हैं। इंटरनेट का इस्तेमाल करिए, उन लोगों के बारे में थोड़ा जानिए-पढ़िए जो वास्तव में दुखी हैं। फिर अपना दुख इतना (अँगूठे और तर्जनी को मिलाकर बताते हुए), राई-बराबर पता चलेगा।

(एक स्वयंसेवक प्रश्नकर्ता के हाथ से माइक लेने के लिए आगे बढ़ते हैं) क्या हो गया? मैं बात कर रहा हूँ, तुम माइक लेकर भाग रहे हो।

(पुनः प्रश्नकर्ता को संबोधित करते हुए) देखिए, आप अगर नहीं रहेंगी, तो ये सब ठीक कौन करेगा? दुनिया में कितने-कितने तरीके के लोग हैं, उनको ठीक करना है कि नहीं?

प्र: आई एम सेल्फ़िश।

आचार्य: एवरीबडी इज़ (सभी हैं)। वो (माइक ले जाने वाले स्वयंसेवक) भी तो वही था, मैं भी वही हूँ, सब वही हैं।

प्र: आप सेल्फ़िश नहीं हैं। आप सबके लिए कर रहे हो, हम अपने लिए।

आचार्य: मैं भी सेल्फ़िश हूँ बराबर का, अपने लिए भी कर रहा हूँ। आपको बता रहा हूँ कि कोई मुझे सुनता हो या न सुनता हो, मैं तो सुन लेता हूँ। ये मुझे बहुत पहले समझ में आ गया था कि आई एम माई फ़र्स्ट लिस्नर (मैं अपना पहला श्रोता हूँ)। ये इतना जो पचास उपनिषद्, बीस गीता, दुनियाभर के ग्रंथ सबको पढ़ाए हैं, किसी और ने बाद में सीखे होंगे, सबसे पहले तो पढ़ाने के मारे मुझे सीखने पड़े न? तो हो गया फ़ायदा कि नहीं हो गया?

प्र: हो गया।

आचार्य: बस यही है।

समझ में आ रही है बात?

दो-चार महीने दुनिया क्या है, थोड़ा उसको जानिए-समझिए; मरना कैंसिल (रद्द करिए)।

(श्रोतागण हँसते हैं)

प्र: दैट्स व्हाई आई वॉज़ नॉट ब्रिंगिंग दिस क्वेश्चन हियर, एवरीबडी इज़ लाफ़िंग, ऐंड इट्स हर्टिंग मी (इसलिए मैं यह प्रश्न यहाँ नहीं लाना चाहती थी, सब हँस रहे हैं, और इससे मुझे तकलीफ़ हो रही है)।

आचार्य: दे आर लाफ़िंग बिकॉज़ यू वुड बी इन अ बेटर स्टेट ऑफ़ माइंड, दे आर नॉट लाफ़िंग ऐट यू (वे हँस रहे हैं क्योंकि आप अच्छी मनोस्थिति में रहेंगी, वे आप पर नहीं हँस रहे)।

प्र: नोबडी अंडरस्टैंड्स (कोई नहीं समझता)।

आचार्य: आप ज़बरदस्ती उन बेचारों पर इल्ज़ाम लगा रहे हो। वर दे लाफ़िंग व्हेन यू वर एक्सप्रेसिंग योर पेऽन? दे वर नॉट (क्या वो तब हँस रहे थे जब आप अपना दर्द बयान कर रही थीं? वो नहीं हँस रहे थे)।

प्र: इट्स फ़ाइन, इट्स नॉट इमपैक्टिंग मी (ठीक है, उससे मुझे कुछ फ़र्क नहीं पड़ रहा)।

आचार्य: नहीं-नहीं, ऐसे नहीं करते। दे आर हैप्पी बिकॉज़ दे सी दैट यू माइट गेट रिड ऑफ़ योर पेऽन ऐंड फ़ियर इन दिस कन्वर्सेशन (वे खुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि शायद आप अपने दर्द से मुक्त हो जाएँगी इस बातचीत के माध्यम से)।

(श्रोतागण तालियाँ बजाते हैं)

देखिए इतने लोग चाहते हैं कि आप कैंसिल (रद्द) करो प्लान (योजना)।

प्र: शुक्रिया आचार्य जी।

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
View All Articles