Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
आप आचार्य हैं तो आपको कोरोना क्यों हुआ? (देसी और अंग्रेज़ी टोने-टोटके) || आचार्य प्रशांत (2021)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
14 मिनट
37 बार पढ़ा गया

आचार्य प्रशांत: कह रहे हैं, मेरा एक दोस्त है, वो प्राणिक हीलिंग करता है। और उसने मुझे अपनी कम्युनिटी (संघ) के बहुत-से लोगों को मिलवाया है, और उधर सभी लोग स्प्रिचुअल प्रैक्टिसेस (आध्यात्मिक क्रियाएँ) करते हैं। स्प्रिचुअल प्रैक्टिसेस के नाम बताता हूँ जो लिखे हैं इन्होंने — तंत्रा, टैरो, पास्ट लाइफ़ रिग्रेशन, वास्तु कंसल्टेन्सी, न्यूम्बरोलॉजी, थीटा हीलिंग, एंजिल थैरेपी, क्रिस्टल एनर्जी, साउण्ड हीलिंग, पामिस्ट्री और चक्रा थैरेपी ; तो ये चल रहा है धन्धा।

ये स्प्रिचुअल प्रैक्टिसेस चलती हैं, और इसमें प्राणिक हीलिंग इनके मित्र करते हैं। तो बोल रहे हैं कि पहले तो ये सब मुझे बड़ा आकर्षक लगा और हमने बहुत बातें की। वो सब लोग ख़ासतौर पर एनर्जेटिक और पॉजीटिव (ऊर्जावान और सकारात्मक) थे, एनर्जेटिक थे, और पॉजीटिव थे। थीटा हीलिंग, एंजिल थैरेपी, तंत्रा, पामिस्ट्री, न्यूम्बरोलॉजी।

जब आपको कोरोना हुआ तो मैंने अपने प्राणिक हीलिंग वाले दोस्त को बताया, वो बोला, 'तू उस आचार्य की बातें सुनना छोड़ दे, जब वो ख़ुद अपनी बॉडी (शरीर) की एनर्जी (ऊर्जा) बढ़ाकर ठीक नहीं हो पाया, तो दूसरों को कैसे एडवाइज़ (सलाह) दे सकता है?' आचार्य जी, मेरे पास इस तर्क़ का कोई जबाव नहीं था। इसके बाद इन्होंने ऐसे बनाया (हाथ से उल्टा स्माइली का इशारा करते हुए) दो ऐसे डॉट और सी। समझ रहे हो, क्या? उल्टा स्माइली।

आचार्य जी, मेरे पास इस ज़बरदस्त तर्क़ का कोई जबाव ही नहीं था कि तुम्हारे आचार्य को कुछ आता जाता होता, तो अपनी एनर्जी बढ़ाकर के ख़ुद ही अपना निमोनिया नहीं ठीक कर लेता? ग़जब! तो आचार्य जी, आप अपना कोरोना ख़ुद क्यों नहीं ठीक कर पाये? ये सवाल आया है।

कह रहे हैं, ‘ये तो ग़जब हो गया कि आचार्य जी कोरोना नहीं ठीक कर पाये अपना, ये सब किया होता तो उनको न कोरोना होता, न निमोनिया होता, ठीक कर कर लेते।’ क्या-क्या? प्राणिक हीलिंग , तंत्रा , पास्ट लाइफ रिग्रेशन , वास्तु कंसलटेंसी , न्यूम्बरोलॉजी , थीटा हीलिंग , एंजिल थैरेपी , क्रिस्टल एनर्जी , साउण्ड हीलिंग , पामिस्ट्री , चक्रा थैरेपी ; ये सब रहता तो आपकी एनर्जी क्लीन (साफ़) रहती, पॉजीटिव रहती, बढ़िया धमाकेदार वाइब्रेशन रहते।

पहले तो ये बताओ कि ये तुम मुझे सुनते हो एक ओर तो; दूसरी ओर तुमने ये दोस्त ऐसा पाल कैसे रखा है? एक तरफ़ तो मुझे बोल रहे हो, 'आचार्य जी', आचार्य का मतलब समझते हो? जो जीवन में तुमको आचरण करना सिखाए, जो तुम्हें ज़िन्दगी जीना सिखाए। आचार्य — ‘चर्या’, ‘चर्या’ माने जानते हो? कैसे चलना है, कैसे जीना है। तो ये सिखाया है मैंने तुम्हें?

दुनिया में इतने तरह के जानवर हैं, उनमें से बहुत सारे बेचारे बड़ी बुरी हालत में हैं, उनकी संगति क्यों नहीं करते? इस क़िस्म के ज़ानवर क्यों पकड़े तुमने? बात यहाँ सीधी ये नहीं कि मेरा कोरोना, या मेरा निमोनिया, बात यहाँ ये है कि तुम्हारा-मेरा कुछ सम्बन्ध है या नहीं है? क्योंकि अगर होता तो ऐसे लोग तुम्हारे इर्द-गिर्द नज़र ही नहीं आते। और ये तो छोड़ दो कि तुम्हारे इर्द-गिर्द नज़र आये हैं, तुम तो इनकी पूरी कम्यूनिटी में अन्दर घुसे हुए हो।

पहली बार सुना, एंजिल थैरेपी। ग़जब हो गया! आप सभी को बिलकुल साफ़ बताये देता हूँ, जो भी इंसान इस तरह के बोड़म कामों में लगा हुआ होगा, एक चीज़ उसके बारे में निश्चित है कि वो अध्यात्म का धुर विरोधी होगा, कि सच उससे बर्दाश्त नहीं होगा। ये लोग जानते हो कौन हैं? आमतौर पर दो तरह के लोग होते हैं, मैं दोनों की इज़्ज़त करता हूँ।

एक वो जो बुद्धि पर चलते हैं, उनका विज्ञान की तरफ़ झुकाव होता है, उनका तथ्यों की तरफ़ झुकाव होता है। दूसरे वो जो थोड़ा अन्तर्गामी होते हैं, उनका ख़ुद को जानने में ज़्यादा यकीन है, वो विज्ञान की किताबों की ज़गह आध्यात्मिक ग्रन्थ पढ़ते है। वो संसार के तरफ़ जिज्ञासा करने की जगह आत्मजिज्ञासा करते हैं।

तो ये दो लोग कौन हुए? एक मोटे तौर पर कह सकते हो वैज्ञानिक रूझान के, और दूसरे आध्यात्मिक रुझान के; इन दोनों ही तरह के लोगों की मैं कद्र करता हूँ। और एक तीसरी तरह के भी लोग होते हैं, जो न तो इस लायक़ होते हैं कि उन्हें विज्ञान समझ में आए, न उनमें इतनी बुद्धि है कि उन्हें विज्ञान समझ में आए, और न उनमें इतनी ईमानदारी है कि अध्यात्म समझ में आए। तो ऐसे लोग कुछ ऐसा करते हैं जो अनसाइन्सटिफिक (अवैज्ञानिक) भी होता है, और अनस्प्रिचुअल (ग़ैर आध्यात्मिक) भी होता है; अवैज्ञानिक भी, और अनाध्यात्मिक भी।

ये जो तीसरी कोटि है, वो यह होती है— चक्रा, तंत्रा , पास्ट लाइफ़ रिग्रेशन , थीटा थैरेपी , एंजिल थैरेपी , ये सब, एनर्जी हीलिंग , वाइब्रेशन ; वो ये सब होते हैं। ये जितनी चीज़ें यहाँ पढ़ रहे हो न, न तो ये विज्ञान सम्मत हैं, न तो विज्ञान इनको एप्रूव (सत्यापित) करता है, मान्यता देता है, न ही अध्यात्म सम्मत हैं, न ही अध्यात्म इनको मान्यता देता है। ये बस उनके लिए हैं जिनको अपने निजी झूठों में जीना है।

वो अगर वैज्ञानिक के पास चले जाएँ तो भी वो कहेगा कि ये क्या कर रहे हो फ़िजूल। वो डॉक्टर के पास चले जाएँ, वो भी यही कहेगा, 'ये क्या कर रहे हो फ़िजूल?' वो अगर किसी विचारक, दार्शनिक के पास चले जाएँ, वो भी यही कहेगा, 'ये क्या कर रहे हो फ़िजूल?' और अगर वो किसी ऋषि के पास चले जाएँ तो ऋषि भी कहेगा, 'ये क्या कर रहे हो फ़िजूल?'

जो भी लोग दुनिया में किसी भी हैसियत, किसी भी श्रेणी, किसी भी ग़हराई के हैं, वो सब कहेंगे, 'ये क्या कर रहे हो फ़िजूल?' और ये क्यों कर रहे हो फ़िजूल? क्योंकि ये करने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती, न तो अपनी वृत्तियाँ त्यागनी पड़ती हैं, न ज्ञान पाना पड़ता है।

न कुछ छोड़ना होता है, न कुछ पाना होता है, इसमें फिर करना क्या होता है? बस यूँही ‘आबरा का डाबरा’, ‘मम्बो-ज़म्बो’, ‘आइला का गाइला’, ‘छूमन्तर, मारा तन्तर’। क्योंकि बुद्धि की यहाँ ज़रुरत ही नहीं है, कुछ भी किसी को बोलना है, ठीक है, अब उसमें बुद्धि लगाओगे कह देंगे — ‘इसमें बुद्धि नहीं लगानी होती, बुद्धि नहीं लगानी होती, ऐसे ही है।’

पर ऐसे लोगों का व्यवसाय चलता ख़ूब है। क्यों चलता है? बात समझना, ख़तरनाक है, क्योंकि दुनिया में एक बहुत बड़ा वर्ग है जो झूठ में जीता है और झूठ में ही जीना चाहता है। वैसे लोग अगर वैज्ञानिक के पास गये तो वैज्ञानिक भी उनका झूठ तोड़ेगा, कहेगा,'झूठ है'। और अगर दार्शनिक आदमी के पास या आध्यात्मिक आदमी के पास गये तो वो भी कह देगा कि तुम्हारे भीतर झूठ बहुत है, तो उनके झूठ को ठिकाना, सहारा कहाँ मिलेगा? यहाँ मिलेगा। (झूठे कर्मकांड कराने वाली जगहों पर) यहाँ मिलेगा।

आमतौर पर जो लोग इस तरह का काम करते हैं, वो साथ-ही-साथ मैरिज कंसल्टेन्सी (वैवाहिक सलाह) भी देते हैं, मनी मैटर काउन्सलिंग (पैसे से जुड़े मामलों में सलाह) भी करते हैं, ज्योतिष में भी लगे रहते हैं, और वेट लॉस प्रोग्राम (वज़न कम करने का कार्यक्रम) भी चलाते हैं।

महिलाएँ बहुत जाती हैं न इन चीज़ों में? पुरुष भी जाते हैं, महिलाओं को थोड़ा ज़्यादा रुझान होता है कि अच्छा ठीक है। वो गयी हैं वहाँ पर उसने उनकी एंजिल थैरेपी करी, और बोली साथ-ही-साथ ये भी बता दो अभी है न मुझे मैरिटल प्रॉब्लम भी चल रही है उसका भी, तो उसने वहाँ पर उसका कोई नुस्ख़ा बता दिया कि पति जब सो रहा हो तो उसके कान में बोल आना, 'फुस्फुसा रे, ठुसठुसा।'

बोले, 'फुस्फुसा और ठुसठुसा बोलते ही पहले दिन फुस्फुसा होगा और दूसरे दिन काम हो गया ठुसठुसा।’

बोले, 'ग़जब हो गया! ग़जब हो गया! बहुत बढ़िया! तो साथ-ही-साथ ये भी बता दीजिएगा, बस थोड़ा-सा मुश्किल नहीं पचास-साठ किलो ओवरवेट (अधिक वज़न) हूँ, तो कोई समाधान बता दीजिए।’

बोले, 'कोई समाधान की ज़रूरत ही नहीं, ये एक वन्डर फूड (चमत्कारिक भोजन) आता है न्यूजीलैण्ड से इम्पोर्ट (आयात) होता है, अठारह-सौ रूपये किलो है; ये आप लिया करिए, इससे वज़न कम हो जाएगा।'

बोलीं— बिलकुल मैं लूँगी, ख़ूब लूँगी। बोले— ये आप दिन में तीन बार लीजिए। बोलीं— ठीक है, ये मैं दिन में तीन बार लूँगी, पहली बार ब्रेकफास्ट (नाश्ता) करने के बाद लूँगी, दूसरी बार लंच (दोपहर का भोजन) करने के बाद लूँगी, फिर डिनर (रात का भोजन) करने के बाद लूँगी। और ये सब करने के बाद ठुसठुसा भी लेना है। (सभी सत्र प्रतिभागी हँसते हैं) हँस लिया हो तो आगे बोलूँ? (आचार्य जी हँसते हुए पूछते हैं)

नाम तुमने बताया नहीं, नहीं तो नाम लेकर बोलता; ये किन चक्करों में फँसे हुए हो? ये कर क्या रहे हो? बताइए, आप लोगों के क्या सवाल हैं? (सत्र प्रतिभागियों से पूछते हैं) भाई, मेरे पास ऐसा कोई जादू, मन्त्र, विद्या नहीं है, जिससे कोरोना नहीं होगा। कोरोना नहीं हो, उसका एक ही तरीक़ा है— वायरस (विषाणु) से दूर रहो। किसी शास्त्र में, बिलकुल साफ़-साफ़ बोल रहा हूँ डंके की चोट पर, किसी भी शास्त्र में कोई ऐसा मन्त्र नहीं है, जो तुम्हें कोरोना से बचा ले।

एक ही तरीक़ा है—जहाँ वायरस है, वहाँ से दूर रहो, संक्रमित व्यक्ति के पास मत रहो, इसके अलावा कोई तरीक़ा नहीं है, बाबा! और अगर तुम्हें संक्रमण लग गया है, और थोड़ा बहुत ही लगा है, तो ठीक है, सामान्य खानपान में थोड़ा फेरबदल से ठीक हो सकता है, लाभ मिल सकता है। लेकिन अगर तुम्हारी स्थिति ऐसी हो गयी है कि मामला फेफड़ों तक पहुँच गया है, तो चुपचाप डॉक्टर के पास जाओ। ये झाड़-फूँक और अपने निजी नुस्ख़े मत आजमाने लग जाना।

पता चला कि यहाँ पर आधा फेफड़ा संक्रमित हो चुका है, और तुम एंजिल हीलिंग कर रहे हो, क्रिस्टल गेज़िंग! रही बात मेरी, मैं साधारण आदमी हूँ भाई, हर वो चीज़ जो साधारण आदमी के साथ घटती है वो मेरे साथ भी घटती है। जैसी ज़िन्दगी तुमने जी है, वैसी ही मैंने भी जी है। तुमने ग़लतियाँ करी हैं, मैंने भी ग़लतियाँ कोई कम करी हैं क्या? बस ये चाहता हूँ कि जो मैंने करी हैं, वो दूसरे लोग ज़रा कम दोहराएँ।

ये कहाँ से आ गया कोई, ‘अगर ये आचार्य होता तो इसको निमोनिया क्यों होता?’ कल कह देना, ‘अगर आचार्य होता तो मर क्यों गया? नहाता क्यों हैं? टट्टी क्यों जाता है? आत्मा तो निर्मल होती है न? तो इसमें मल कहाँ से आ गया? आत्मस्थ होता तो इसको ज़रूरत ही नहीं पड़ती शौच वगैरह जाने की। खाना क्यों खाता है? साँस क्यों लेता है?’

मैं सिर्फ़ सुनाता ही नहीं हूँ, मैं बहुत ग़ौर से सुनता भी हूँ। जब मेरे सामने एक विशेषज्ञ होता है न, मैं मुँह बन्द करके चुपचाप सुनता भी हूँ। चाहे मैं किताब पढ़ रहा हूँ किसी विशेषज्ञ की, उसको पूरे आदर-सम्मान के साथ समझूँगा, और चाहे एक विशेषज्ञ डॉक्टर मेरे सामने बैठा हो, चूँ नहीं करता। वो जो बोलता है, सुनता हूँ, समझता हूँ, और जो बात उसने बोली है, उसका पालन करता हूँ।

वहाँ मैं नहीं बताऊँगा कि मैं तो आचार्य हूँ, तो कोरोना पर भी तो मैं ही तो स्पेस्लिस्ट (विशेषज्ञ) हो गया न! वो फूहड़ता होगी, मूर्खता होगी। वो बोल रहा है, 'सीटी स्कैन कराओ', मैं क्रिस्टल स्कैनिंग कर रहा हूँ; बेवकूफ़ ही होऊँगा करूँ ऐसा तो!

शरीर पार्थिव है, मटेरियल (पदार्थ) है, वर्ल्डली है, और वर्ल्डली मैटर्स में जो जिस चीज़ का विशेषज्ञ हो; उसकी सुनो। कैमिकल्स (रसायनों) के बारे में कैमिस्ट (रसायनशास्त्री) ही बताएगा, गुरूदेव या पंडित नहीं बताएँगे तुमको कि गुरूजी से पूछने गये हो कि ज़रा मुझे बताइएगा अमोनियम क्लोराइड के बारे में? कह रहे हो कि यह तो आँख बन्द करते हैं इनको सारा ज्ञान हो जाना चाहिए न?

आँख बन्द करने से सारा ज्ञान हो जाता तो ये इतनी सारी यूनिवर्सिटीज (विश्वविधालय) किसलिए हैं? ये इतनी किताबें किसलिए हैं? फिर क्यों तुम किसीको गणित पढ़ा रहे हो? जितने बच्चे आयें उनको बैठा दो; बोलो, 'सब आँख बन्द करो’, और आँख बन्द करके आँख खोलो और पाइथागोरस थ्यॉरम (प्रमेय) लिख दो नीचे। लिख देंगे?

जब आँख बन्द करने से पाइथागोरस थ्यॉरम तक नहीं पता चल सकता तो आँख बन्द करने से कोरोना की बीमारी कहाँ से आ जाएगी? पर लगे हुए हो, कहते हो भारत आध्यात्मिक देश है, यहाँ कोरोना का इलाज़ भी सब गुरू लोग कर देंगे। कहाँ से कर देंगे? बाबाओं के पास जा रहे हो, न जाने कितनी मौतें तो इसी अन्धविश्वास में हो गईं!

एक वायरस की जीनोम मैपिंग करना तो फिर भी बहुत जटिल मामला होता है, मैं कह रहा हूँ तुम्हारे बाबा लोग आँख बन्द करके बस यूलर सिक्वेशन बता दें? इतना बता दें, वो भी बहुत आगे की बात हो गई, छठी में पाइथागोरस थ्यॉरम पढ़ाया जाता है, आँख बन्द करके बाबाओं को बोलना बता दो, बस। बता दो।

बोलो ऐसे एक खम्भा है (हाँथ को सीधा खड़ा करके कहते हैं), खम्भा, दस मीटर का खम्भा है। आठ मीटर का, आठ मीटर का खम्भा है , खम्भे पर कौआ बैठा है। क्या बैठा है? कौआ। और खम्भे से छह मीटर दूर पर रोटी पड़ी हुई है। आठ मीटर खम्भा और छह मीटर दूर रोटी तो बाबा, बताना कि कौआ अगर सीधे जाएगा रोटी की ओर, तो कितनी दूर है रोटी?

और बता दें बाबाजी आँख बन्द करके— ’अन्डर रूट सिक्स स्कावर प्लस एट स्कावर इज इक्यूटल टू टेन।’ देखते हैं आँख बन्द करके कैसे पता चलता है।

आँख बन्द करके जो होता है, वो बिलकुल किसी दूसरे आयाम की बात है। मैं उसका पूरा-पूरा सम्मान करता हूँ, लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि किसी वायरस का इलाज़ ध्यान से नहीं हो जाने वाला। तुम्हारे फेफड़ों में प्रोग्रेसिव निमोनिया है, इसका इलाज़ मन्त्रों से नहीं हो जाने वाला। और इन सब चीज़ों से तो एकदम ही नहीं हो जाने वाला जो तुमने यहाँ लिख दी हैं ये नमूने— पास्ट लाइफ़ रिग्रेशन, न्यूम्बरोलॉजी और क्या-क्या, जो भी लिखा है तुमने। समझ रहे हो बात को?

लेकिन चल रहा है। आध्यात्मिक — कहते है, ’मिस्टीकल है, मिस्टिकल है’। और इधर उधर की दुनियाभर की हर चीज़ की बातें कर रहे हैं। कह रहे हैं, ‘वहाँ पर कहीं कोई वैज्ञानिक प्रयोग चल रहा है; किसी नये सबएटॉमिक पार्टिकल के बारे में। उसके बारें में बोलने की कोशिश कर रहे हैं। तुम्हें कैसे पता? बोले, ‘हम ध्यानी हैं न!’ तो मैं कह तो रहा हूँ अगर ध्यान से यह सब बातें पता चलती हैं, तो आँख बन्द करो और ज़रा मेण्डलीफ का पूरा पीरियोडिक टेबल बता दो, चलो।

अगर पता चलता है तो आँख बन्द करके पीरियोडिक टेबल सुना दो हमको। हिक्ज़, बोसोन पर बाद में बात करना, तुम पीरियोडिक टेबल ही बता दो आँख बन्द करके। चल जाएगा पता, कितना भी बड़ा ध्यानी हो? ध्यान तुमको दुनिया के बारे में जानकारी नहीं दे देगा। ध्यान बिलकुल कोई दूसरी चीज़ होती है, और ध्यान क्या चीज़ होती है, जानना है तो मेरी बहुत किताबें हैं, देख लो, बहुत वीडियो हैं, देख लो।

ये नहीं होता कि उन्होंने ध्यान किया और अमेरिका में क्या चल रहा है, उनको पता चल गया। कह रहे हैं कि देखो, हम आँख बन्द करेंगे और अभी पता चल जाएगा कि व्हाइट हाउस में क्या हो रहा है। क्या हो रहा है? ‘वो बाइडेन का एक कुत्ता मर गया है, दूसरा दुखी है।’ ग़जब हो गया! आँख बन्द करके वहाँ का बता दिया सबकुछ!

नहीं होता ऐसा। और ध्यान तो फिर भी बहुत-बहुत ऊँची चीज़ है, तुमने तो न जाने किन-किन चीज़ों का नाम लिख दिया! ऐसे लोगों से बचना जो इस तरीक़े-की चीज़ों में लिप्त हों।

क्या आपको आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से लाभ हुआ है?
आपके योगदान से ही यह मिशन आगे बढ़ेगा।
योगदान दें
सभी लेख देखें