आँखें फिर से खोलना || आचार्य प्रशांत, श्रीकृष्ण पर (2014)

Acharya Prashant

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आँखें फिर से खोलना || आचार्य प्रशांत, श्रीकृष्ण पर (2014)

आचार्य प्रशांत: यह प्रसंग गीता के छठवें अध्याय के अंतर्गत दिया है। अर्जुन ने योगभ्रष्ट के बारे में पूछा है। योगभ्रष्ट कौन है, उसके विषय में अर्जुन ने खुद ही स्पष्ट कर दिया है कि जो योग में श्रद्धा रखता है, पर उसमें संयम नहीं है। ऐसे को कहते हैं…

प्रश्नकर्ता: योगभ्रष्ट।

आचार्य: तो अर्जुन कृष्ण से पूछ रहे हैं कि, "ऐसा क्यों है?" इनकी योग में श्रद्धा है पर संयम नहीं है। ऐसे लोगों का क्या? निश्चित सी बात है, आपके मन में बात उठेगी कि ऐसा हो कैसे सकता है कि योगी है, श्रद्धा है, पर संयम नहीं है?

संयम को समझते हैं। संयम क्या है? गीता में ही कृष्ण ने संयम के बारे में कई बार कहा है। उसमें से एक उठाऊँगा, जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि संयम क्या है।

कृष्ण का वक्तव्य है कि — या निशा सर्वभूतानाम् तस्यां जागर्ति संयमी। यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने: ।।२.६९।।

इसी को उदाहरण की तरह लेते हैं। इससे सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। कृष्ण कहते हैं कि जब सबके लिए रात हो तब जो जगे सो संयमी। संयमी तब जगता है, जब सबके लिए रात होती है। यहीं से समझ लेते हैं बात को।

दिन का समय था, दिन था, कुछ था जो आपने देखा। कुछ था जो आपने देखा। क्यों? क्योंकि दिन में प्रकाश था। स्थितियाँ अनुकूल थीं, आप देख पाए। आँखें आपकी ही थीं। निश्चित सी बात है, आँखें आपकी ही थीं। अपनी आँखों से देखा परन्तु परिस्थितियाँ भी अनुकूल थीं। फिर रात आई, दिन में जो देखा था, जो समझा था, जो जाना था, वो अचानक हट गया। आप जग नहीं पाए, आप सो गए। आप संयमी नहीं हैं।

आप संयमी नहीं हैं। संयमी वो जो तब तक भी जागृत रह सके जब स्थितियाँ प्रतिकूल हों। "या निशा सर्वभूतानाम् तस्यां जागर्ति संयमी।" संयमी वो, जो रात में भी जगा रह सके। ठीक है?

तो अर्जुन पूछ रहे हैं, "ऐसों का क्या जो दिन के प्रकाश में जब परिस्थितियों का सहारा है तब तो जान लेते हैं, समझ लेते हैं, पर रात ढले उनकी पुरानी आदतें, उनके पुराने संस्कार उन पर दोबारा हावी हो जाते हैं?" तो उनका क्या होगा?

इसी को योगभ्रष्ट कहा जाता है। इसी स्थिति को कहा जाता है योगभ्रष्ट होना। जब बात समझ में तो आई है, पर समय उसको भुला दे रहा है। दिन में तो साफ-साफ दिखाई दिया, रात में फिर बहक गए। वो नहीं कर पाए जो कृष्ण ने कहा। ‘या निशा सर्वभूतानां’ कि सब सो गए हैं, सबके लिए रात है, तुम जगे रहो। वो नहीं कर पाए।

ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है योगभ्रष्ट, इसी के बारे में अर्जुन का कौतुहल है कि, "योगभ्रष्ट का क्या होगा?" कृष्ण कहते हैं कि, "योगभ्रष्ट ने जो जाना है, वो व्यर्थ नहीं जाएगा। वो हारा है पर वो दोबारा कोशिश करेगा, पूरे प्रयत्न से करेगा। पिछली हार उसका सबक बनेगी। वो सो तो जाएगा पर फिर जब दोबारा दिन आएगा और चेष्टा उठेगी उसके भीतर से, उसका आत्मबल और जगेगा। और ऐसे करते-करते वो अंततः पूर्ण योग में स्थापित हो जाएगा।" समझ में आई ये बात? तो योगभ्रष्ट भी प्रशंसनीय ही है। चलो शुरू तो किया है न। रात आई, फिसल गए कोई बात नहीं।

प्र: यहाँ पर रात का शाब्दिक अर्थ है या फिर?

आचार्य: समझो न! शाब्दिक अर्थ की बात नहीं हो रही है यहाँ पर। रात का अर्थ समझो, स्थितियाँ जब प्रतिकूल हैं। तुम्हें समझ में आया था, सहारा मिला था, सूरज की रौशनी मिली थी, सूरज चला गया तुम फिर बहक गए। कोई बात नहीं लेकिन, सूरज फिर आएगा और इस बार जब सूरज आएगा तो तुम और ध्यान के साथ सूरज में स्थापित होओगे। क्योंकि पिछली भूल सबक देगी तुमको।

और यही कृष्ण का संदेश आ गया अर्जुन को। क्यों दोबारा आएगा? उसको वो इन शब्दों में कहते हैं कि, "दूसरा जन्म होगा।" दूसरे जन्म से तात्पर्य है कि सुबह फिर होगी। हर सुबह एक नया जन्म होता है। इसको इसी तरह पढ़िए। बात समझ में आ रही है?

सवेरा फिर होगा, दोबारा मौका मिलेगा और जब दोबारा मौका मिलेगा तो अब बहकने की संभावना कम, कम और कम होती जाएगी। अंततः वो दिन भी आएगा कि पूरी रात बीत जाएगी पर तुम?

श्रोतागण: सोते नहीं रहोगे।

आचार्य: बहकोगे नहीं, चौकस रहोगे। समझ में आ रही है बात? फिर आगे वो कहते हैं कि योगभ्रष्ट को लेकिन फिर समय लगता है। एक रात फिसलता है, दो रात फिसलता है, तीन रात फिसलता है। आगे वो बात कर रहे हैं — योगी की दुनिया में समय की कोई विशेष आवश्यकता है ही नहीं। वहाँ ये है ही नहीं कि एक रात बीते और दूसरी रात बीते। समय नहीं चाहिए, क्षण भर में काम हो सकता है। ये भी कहा उन्होंने अर्जुन को। तो कोई अपने आप को ये बहाना ना दे कि, "अभी तो कई रातें हैं फिसलने के लिए, उसके बाद हम धीरे-धीरे सम्हलेंगे। अरे! योगभ्रष्ट होना, कोई बुरी बात थोड़े ही है!"

नहीं , ऐसा नहीं है। उसी साँस में कृष्ण ये भी कह रहें हैं कि काम तुरंत भी हो सकता है, और तुरंत ही कर। तुझे क्यों गँवानी हैं रातें? ठीक है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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