Here is the comprehensive list of articles published by prestigious top media houses and renowned national dailies, based on Acharya Prashant's teachings.
दैनिक जागरण11 जनवरी 2024
शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है
दैनिक जागरण के इस लेख में आचार्य प्रशांत ने स्वामी विवेकानंद के विचारों को उद्धृत करते हुए बल और शक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला है। वे बताते हैं कि स्वस्थ और मजबूत शरीर जीवन के लिए आवश्यक है और इसे बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। लेख में स्वामी विवेकानंद के अभ्यास और शारीरिक फिटनेस के प्रति समर्पण का उल्लेख है, जो यह सिखाते हैं कि हमारा शरीर एक महत्वपूर्ण साधन है और इसे मजबूत और स्वस्थ बनाए रखना जीवन का सार है। आचार्य प्रशांत ने बल, शक्ति, और स्वास्थ्य को जीवन की महत्वपूर्ण धरोहर बताते हुए, निर्बलता को मृत्यु के समान बताया है।
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अमर उजाला10 जनवरी 2024
कोई अमीर, कोई गरीब क्यों पैदा होता है?
आचार्य प्रशांत ने अमर उजाला में लिखा है कि प्रकृति में न्याय-अन्याय जैसा कुछ नहीं होता। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे शेर हिरण को खा जाता है और बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, इसमें न्याय कहाँ है? प्रकृति में केवल एक व्यवस्था है, एक विधि है। वहां न्याय खोजना मूर्खता है। आचार्य प्रशांत ने प्रकृति की इस सत्यता को समझाने का प्रयास किया है कि यह केवल नियमों और संतुलन पर आधारित है, न कि हमारी मानवीय धारणाओं पर।
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लोकदेश6 जनवरी 2024
आंसू अगर सच्चे हैं तो भीतर आनंद ही आनंद है
आचार्य प्रशांत ने लोकदेश में लिखा है कि जैसे किसी ने कलेजा भींच रखा हो, और फिर जरा तुम तनाव मुक्त हो जाओ, जरा तुम आश्वस्त और स्वतंत्र अनुभव करो। आंसू अगर सच्चे हों तो भीतर आनंद ही आनंद है। उन्होंने यह बताने का प्रयास किया है कि वास्तविक भावनाएं और सच्ची भावुकता ही हमें आंतरिक शांति और सुख प्रदान कर सकती हैं। सच्चे आंसू एक ऐसी स्थिति को दर्शाते हैं जहां दिल हल्का होता है और मन को गहरा संतोष मिलता है।
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दैनिक जागरण26 दिसंबर 2023
जीवन में दुख आएगा भी जाएगा भी
आचार्य प्रशांत ने दैनिक जागरण में लिखा है कि जीवन में दुःख आएगा, और यह भी सत्य है कि दुःख चला जाएगा। वे कहते हैं कि जब तुम्हारे जीवन में दुःख आएगा, तो तुम्हारा रोना स्वाभाविक होगा, लेकिन जब दुःख चला जाएगा, तब भी तुम रो सकते हो। इसका मतलब यह है कि पहले आँसू दुःख के होते हैं और दूसरे आँसू दुःख से मुक्ति के होते हैं।
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आजतक24 नवंबर 2023
मुसीबतों को छोटा करने के लिए कम करनी होंगी जरूरतें
साहित्य आज तक के मंच पर आचार्य प्रशांत ने कहा कि जो दुनिया कर रही है, आपको करने के लिए कह रही है उसे परखो। परखने का अपना अधिकार कभी नहीं छोड़ना चाहिए। आचार्य प्रशांत ने युवाओं के बारे कहा,'युवा चाहते हैं कि जिंदगी का ऊंचे से ऊंचा इस्तेमाल करें, लेकिन उन्हें कहीं भी आदर्श नहीं दिख रहे होते हैं।
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आजतक24 नवंबर 2023
आजतक के मंच से युवाओं को सन्देश
साहित्य आजतक 2023' में शुक्रवार को लेखक और अद्वैत शिक्षक आचार्य प्रशांत ने 'आओ जीना सीखें...' सेशन में बेबाकी से अपने विचार रखे। आचार्य प्रशांत ने युवाओं को अच्छी और खुशहाल जिंदगी जीने के कई अहम मंत्र दिए।
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News2412 नवंबर 2023
जब मन रौशन हुआ तब दिवाली जानिए
News 24 के मंच पर आचार्य प्रशांत ने कहा कि देखों, त्यौहार तो एक ही होता है और त्यौहार की रोशनी भी एक ही होती है। तो इनके अनुसार, दिवाली का मतलब जब मन रौशन हुआ तब दिवाली जानो।
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TV9 भारतवर्ष12 नवंबर 2023
दिवाली मनाने से पहले उसका मर्म जानें
आचार्य प्रशांत ने TV9 के इस लेख में कहा कि अगर त्योहार आया है तो हम खुशी मनाएंगे खुशी मनाने की कोई वजह होनी चाहिए। खुशी मनाने की कोई पात्रता होनी चाहिए त्योहार को तो मैं ऐसा कहा करता हूं कि जैसे साल के अंत में, जब साल भर की पढ़ाई का परिणाम घोषित हो रहा हो वो दिन। उस दिन खुशी मनाने का हकदार सिर्फ वही जिसने साल भर मेहनत करी हो।
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राजस्थान पत्रिका9 नवंबर 2023
राम की कोई घर वापसी नहीं होती, आप की राम वापसी होती है
आचार्य प्रशांत ने पत्रिका के इस लेख में कहा कि त्यौहार का मतलब होता है- ‘आप राम की ओर वापस गए।’ त्यौहार का मतलब होता है कि अंधेरे को रोशनी की सुध आ गई और अंधेरा जब रोशनी की तरफ मिटता है तभी उसके कदम बढ़ते हैं। दिवाली राम की कोई घर वापसी नहीं होती, आप की राम वापसी होती है।
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The PioneerNovember 7, 2023
Acharya Prashant stresses on inner celebration of Deepawali
During the Geeta Deepotsav programme held at Gautam Buddha University in Greater Noida on Monday, Acharya Prashant dwelt on the outer and inner celebration of Deepawali. He emphasized that while outer celebration is important, it is devoid of any meaning if one's life is not illuminated by the inner light of wisdom. 'Superficial celebrations in the name of religion, devoid of spiritual depth, do not lead to genuine fulfillment,' he said, adding that without inner transformation, Deepawali celebration is meaningless.