अर्जुन की मनोव्यथा और कृष्ण का बोध जानना है, तो श्रीमद्भगवद्गीता के पास आना ही होगा। कृष्ण के ये शब्द अर्जुन के लिए हैं जो रण क्षेत्र में दुविधाओं से स्वयं को घिरा हुआ पाता है। एक तरफ़ अर्जुन के सामने धर्म है वहीं दूसरी तरफ़ उसके नाथ, रिश्तेदार, गुरुजनों का मोह है।
कुरुक्षेत्र के इस मैदान में श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ। अर्जुन युद्धभूमि में बेबस सा खड़ा है कि वह युद्ध करे कि न करे और कृष्ण उसे ज्ञान दे रहे हैं। कृष्ण के समक्ष एक ऐसा हठी शिष्य है जो सुनने को राज़ी नहीं है क्योंकि उसका मन भी किसी आम संसारी की तरह डर, संशय, लोभ और मोह से भरा हुआ है। श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्याय कृष्ण द्वारा हठी अर्जुन को मानने का प्रयास है।
हमारी स्थिति भी अर्जुन से कुछ अलग नहीं है। हमारे सामने भी चुनौतियाँ जब आती हैं तो सोते से हमें झकझोर देती हैं। अगर ठीक समय पर हमें कृष्ण का साथ न मिले तो इस कुरुक्षेत्र में जीत असंभव है। श्रीमद्भगवद्गीता के प्रकाश में अपने जीवन को एक नई दिशा दीजिए, आचार्य प्रशांत के साथ इस सरल कोर्स में।
अर्जुन की मनोव्यथा और कृष्ण का बोध जानना है, तो श्रीमद्भगवद्गीता के पास आना ही होगा। कृष्ण के ये शब्द अर्जुन के लिए हैं जो रण क्षेत्र में दुविधाओं से स्वयं...