अहम् एक तड़प है, वह शांत नहीं बैठ सकती। उसे नाचना है, उसका यह नृत्य तड़प का नृत्य होता है, और मन है अहम् की गति। मन हमेशा चलनशील तो दिखाई देगा पर पहुँचता वह कहीं नहीं है। उसको बस एक बात पता है, वह जहाँ भी है, जैसा भी है, संतुष्ट नहीं है। तो संयोगवश जिधर को मौका मिल जाता है वह उधर को ही गति करने लग जाता है। इस कोर्स में विषय पर गहराई से चर्चा की गई है।
क्या प्रकृति के सारे गुण अहम पर भी लागू होते हैं? तामसिक, राजसिक और सात्विक अहंकार पर विस्तार में चर्चा होगी।
आगे चर्चा होगी इस विषय पर कि संसार में आए हैं तो बोझ तो उठाना ही पड़ेगा ही। संसार एक व्यायाम-शाला है। अध्यात्म है बोझ उठाने की कला। सही बोझ का चुनाव, गलत बोझ का त्याग। क्या करने योग्य है? क्या छोड़ने योग्य है? इसी का नाम है अध्यात्म। इस पर भी विस्तार से चर्चा होगी।
कुछ जरूरी प्रश्न हैं जो हर साधक के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं:
संसार का निर्माण कैसे हुआ?
मन निरंतर क्यों चलता रहता है?
गुरु कृपा क्या होती है?
पाएंँ इन प्रश्नों के उत्तर आचार्य प्रशांत के इस सरल कोर्स में।
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