जीवन में लगातार कोशिश यही रहती है कि कहीं असफल ना कहलाएँ। कभी इस मापदंड पर तो कभी उस मापदंड पर मन खुद को तोलता ही रहता है: ऐसी गाड़ी, वैसा बंगला होगा तो सफल होगी ज़िन्दगी!
और ऐसा नहीं हुआ तो? खुद को असफल मान बैठते हैं हम। असफलता का भाव मन को कुंठित कर देता है। मन जितना खुद को छोटा समझता रहता है उतना ही वह बड़ी आकर्षक वस्तुओं से खुद को जोड़ना चाहता है।
"बड़ी गाड़ी होगी तो मैं भी बड़ा हो जाऊँगा"
"बड़ा बंगला होगा तो मैं भी बड़ा कहलाऊँगा"
वास्तव में क्या है सफलता?
जीवन की उच्चतम संभावना क्या है?
जानते हैं वेदों के ऋषियों से!
यह कोर्स उन सभी के लिए है जो जीवन में सफलता खोज रहे हैं और उस हर एक चीज़ से खुद को जोड़ना चाहते हैं जो उनको बड़ा बना दे।
समझें सफलता के वैदिक सूत्र आचार्य प्रशांत के साथ श्वेताश्वतर उपनिषद् के तृतीय अध्याय पर आधारित इस सरल वीडियो कोर्स में।
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