अक्सर ही हमारे लक्ष्य वस्तु केंद्रित होते हैं। हमारा मन हमसे ही बाहर की किसी वस्तु को साधता है और फिर उसे पाने के लिए दौड़ पड़ता है।
इस दौड़-भाग में मन देखता ही नहीं कि उस वस्तु को पाने में जीवन का क्या हुआ और क्या हो सकता था।
क्योंकि मन सीमित होता है तो उसके लक्ष्य भी सीमित होते हैं।
इस सीमित मन को जीवन की उच्चतम संभावनाओं से कैसे अवगत कराया जाए?
इन छोटी इच्छाओं को ऊँचे लक्ष्य के लिए कैसे साधा जाए?
इन सवालों के सीधे व स्पष्ट उत्तर मिलते हैं आचार्य प्रशांत के इस आसान वीडियो कोर्स में। यह कोर्स श्वेताश्वेतर उपनिषद के अध्याय 3 पर आधारित है।
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