तुमसे बड़ा तुम्हारा कोई मित्र नहीं और तुमसे ही बड़ा तुम्हारा कोई शत्रु नहीं। तुम्हारी ज़िंदगी बनेगी या बिगड़ेगी, ये निर्भर किस पर करता है? तुम पर।
प्रार्थना करो कि जब भी ज़रा-सा भी संशय हो कि कुछ गलत हो रहा है तो तुम आलस्य, प्रमाद, धारणाओं व डर के बंधक ना बन जाओ, बल्कि ऊर्जा से और श्रद्धा से सत्य जानने के लिए उत्सुक रहो।
जानें सही कर्म व ध्यान की उचित विधि को आचार्य प्रशांत के साथ इस प्रवचनमाला में। यह प्रवचनमाला श्वेताश्वतर उपनिषद् के अध्याय 2 पर आधारित है।
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