मनुष्य ने पहियों के आविष्कार से लेकर अंतरिक्ष की खोज तक में जबरदस्त प्रगति की है। हमने प्रौद्योगिकी में असाधारण प्रगति देखी है जो हमें अपने घर के आराम से विश्व स्तर पर जोड़ती है। मानवता ने लगातार ऐसे आविष्कार किए जो नामुमकिन ही प्रतीत होते थे।
पर क्या बाहरी प्रगति से सच में हमारी आंतरिक बेचैनी कम हुई है? हर प्रकार के आराम और संसाधन होने के बाद भी क्या हम वास्तव से शांति से जीवन जी पाते हैं? क्या बेहतर संसाधनों से हमारी समझ वास्तव में गहराई है?
बाहरी प्रगति ने हमें बेहतर संसाधन तो दे दिए पर उनका सही इस्तेमाल हमने सीखा नहीं। ऐसा क्यों? क्योंकि हमारी आंतरिक प्रगति कभी हुई ही नहीं।
आंतरिक प्रगति से मन को स्थिर व चित्त को शांत बनाएँ।
आचार्य प्रशांत का यह सरल कोर्स "आंतरिक प्रगति के सूत्र" श्वेताश्वेतर उपनिषद् के अध्याय 4 के कुछ श्लोकों पर आधारित है।
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