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सुख-दुख क्या? स्वर्ग-नर्क क्या?

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निरालम्ब उपनिषद् के श्लोक 15, 16 व 17 पर आधारित
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2 घंटे 15 मिनट
हिन्दी
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सहयोग राशि: ₹199 ₹500
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परिचय
लाभ
संरचना

दुनिया में आज हर कोई सुख की तलाश में इधर से उधर भटक रहा है बिना यह जाने कि सुख क्या है। सुख की तलाश ही दुःख का मूल कारण है। दुःख उठता है मात्र अज्ञानता से। व्यक्ति की कमज़ोरी ही उसके दुःख का एकमात्र कारण है। सुख और दुःख दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं जो की सीधा नरक के द्वार ले जाते हैं।

आज अध्यात्मिक जगत आनन्द का नहीं बल्कि सुख का केंद्र बनता जा रहा है; नतीजा - भोगवाद की स्थिति।

आचार्य प्रशांत द्वारा इस कोर्स के माध्यम से सुख-दुःख नामक कचरे की सफाई की गई है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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