व्यक्ति की आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक तरक्की, आत्मिक तरक्की पर निर्भर करती है। भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक स्थिति बिलकुल सुधर जाएंँगी यदि हम सिर्फ वैदिक धर्म का पालन भर करें।
बहुत सारी मान्यताएंँ जो आम जनमानस द्वारा नहीं बल्कि बुद्धजीवियों द्वारा प्रचलित की गई हैं। जिनमें से सबसे प्रचलित है - जाति। वेदांत ने जातिप्रथा का समर्थन करना तो छोड़िये, जाति को ही अवैध घोषित किया है। जाति व्यवस्था धार्मिक नहीं सामाजिक होती है।
सनातन धर्म के केन्द्रीय ग्रन्थ के इस श्लोक के द्वारा आचार्य प्रशांत के माध्यम से समाज-सुधर के लिए एक सरल प्रयास इस कोर्स के माध्यम से किया जा रहा है।
आत्मिक बल ही आंतरिक तरक्की का एक मात्र साधन निरालंब उपनिषद् के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है।
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