अध्यात्म का विषय हो तो वहाँ सबसे पहले परमात्मा को कैसे पाएँ या आत्मा क्या होती है, ऐसे कई प्रश्नों का उठना स्वाभाविक है। परमात्मा को बाहरी विषय नहीं है बल्कि वह मनुष्य की उच्चतम सम्भावना का नाम है। अहंकार परायेपन में जीता है इसलिए उसे आत्मा से दूरी बनानी पड़ती है अर्थात् परम में लीन नहीं हो पाता है।
हम जीवन में हमेशा नए की मांग करते हैं परन्तु पुराने को त्यागने की नहीं। अहंकार हमेशा अतीत पर निर्भर रहता है या वर्तमान के सलोने खयालों पर। जिसके कारण जीवन कष्ट में बीतता है।
आचार्य प्रशांत द्वारा इस कोर्स के माध्यम से अपनी आदतों को चुनौती देकर एक ऊँचे जीवन में प्रवेश होने की शिक्षा उपलब्ध कराई गई है।
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