कामनाग्रस्त मन से ही जीव की उत्पत्ति होती है। विशुद्ध चैतन्य मन सभी कामनाओं को पूरा कर शांत चित्त हो चुका होता है। अपूर्णता से ही संसार की उत्पत्ति होती है। जीव का पूरा जीवन उस अपूर्णता की पूर्ती में ही लगा होता है और एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
अध्यात्म जीवन में सही कामना का चुनाव करने की सीख प्रदान करता है। निरालंब उपनिषद् के माध्यम से जीवन की क्षुद्रताओं से जीव को आज़ाद करके शून्यता एवं स्वच्छता की ओर मार्गदर्शित किया गया है।
आचार्य प्रशांत द्वारा आत्मनिर्भर दृष्टिकोण के चलते श्लोकों की सरल व्याख्या इस कोर्स में उपलब्ध कराई गई है।
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