अक्सर हम कर्तव्य के नाम पर किसी व्यक्ति या वस्तु की संगती निरंतर करने लग जाते हैं और उसे जीवन का केंद्र बना लेते हैं। कोई भी व्यक्ति या वस्तु जीवन में स्थायी नहीं हो सकता क्योंकि उसके छिन जाने पर घोर दुःख और तहस-नहस जीवन का अनुभव होता है। ऐसे में यह जानना अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि जीवन में किसको कितनी वरीयता देनी है।
इस कोर्स में आचार्य प्रशांत द्वारा निरालम्ब उपनिषद् के माध्यम से ‘जीवन का केंद्र कैसे चुनें’, इसके बारे में समझाया गया है।
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