निर्भरता क्या है? स्वयं को मात्र शरीर मानना ही निर्भरता है। मन एवं शरीर डर में जीता है और जीवन की वास्तविकता से भागने के लिए दोहराओ खोजता है। इसी दोहराव से दुःख उठता है और उससे निवारण के लिए मन निर्भरताएँ खोज लेता है।
अधूरेपन का अनुभव, मन का व्यक्ति एवं वस्तु के प्रति आकर्षण, संबंधों पर निर्भरता अर्थाक खालीपन का आभास होते ही संसार पर निर्भर होने लगता है और दुःख का अनुभव करता है।
अध्यात्म व्यक्ति को वयस्कता का मार्ग प्रदान करता है और वयस्कता की पहली निशानी है ‘आत्मनिर्भता’। आज के इस युग में जहाँ पर हाथ में चौबीस घंटे संचार का माध्यम उपलब्ध है जो व्यक्ति को मानसिक रूप से जकड़े है।
व्यक्ति जो जीवन के उच्चतम शिखरों पर विराजमान हो सकता था वो आज गुलाम बना बैठा है। निरालम्ब उपनिषद् के माध्यम से आत्मनिर्भर जीवन जीने की कला ऋषियों द्वारा सुझाई गई है।
जो लोग कुशल नेतृत्व के साथ जीवन को ऊँचाई देना चाहते हैं, ये कोर्स उनके लिए है।
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