कौन है वानर? कौन है मगर? और कौन है उसकी पत्नी? निश्चित रूप से ये जंगल के पशुओं की बात तो नहीं हो रही है। ये तीनों तुम्हारे ही भीतर बैठे हुए हैं। ये तीनों आदमी के भीतर की प्राकृतिक वृत्तियों के प्रतिनिधि हैं।
पंचतंत्र पढ़ोगी तो देखोगी वहाँ तो वानर बार-बार मनुस्मृति का हवाला दे रहा है, मगर को समझाने के लिए संस्कृत में श्लोक उच्चारित कर रहा है। अब ज़ाहिर-सी बात है कि जंगल का मगर और जंगल का वानर संस्कृत तो नहीं पढ़ते।
तो कौन है ये वानर? कौन है ये मगर? ये तुम ही हो। ये हम सब हैं। हम सबके भीतर ये तीनों बैठे हुए हैं। वानर कब हो तुम? वानर तुम तब, जब तुम भूल जाओ कि किससे मित्रता कर रहे हो, जब तुम भूल जाओ कि आदमी का मन बड़ा खंडित होता है, बड़ा टुकड़ा-टुकड़ा होता है। सतह पर वो ज्ञान और सीख भले ग्रहण कर ले, नीचे-नीचे, भीतर-भीतर उसकी पुरानी पाशविक वृत्तियाँ कायम रहती हैं।
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