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निरालम्ब उपनिषद् [नवीन प्रकाशन]

निरालम्ब उपनिषद् [नवीन प्रकाशन]

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पुस्तक का विवरण

भाषा
hindi
प्रिंट की लम्बाई
220

विवरण

वैदिक आध्यात्मिक साहित्य में उपनिषदों का स्थान शीर्ष है। इन्हें ही वेदान्त कहा गया है। ये कोई सामान्य, साधारण, मान्यता मूलक ग्रन्थ नहीं हैं, ये अतिविशिष्ट हैं। जैसे मन की सारी आध्यात्मिक यात्रा इन पर आकर रुक जानी हो, उसका अन्त हो जाना हो। इसलिए इनको कहा गया है वेदान्त।

यह निरालंब उपनिषद् शुक्ल यजुर्वेद से लिया गया है। निरालंब का अर्थ होता है — बिना अवलंब के, बिना सहारे के। नाम से ही स्पष्ट है कि यह उपनिषद् किसी ऐसे की बात करने जा रहा है जो किसी पर अवलंबित नहीं है, आश्रित नहीं है।

क्यों आवश्यक है निरालंब की बात करना? क्योंकि जहाँ अवलंबन है, जहाँ कोई दूसरा है वहीं दुख है। और जहाँ निरालंब है, वहीं पूर्णता है, वहीं आनन्द है। हमारी चाहत होती है उसी अवस्था को पा लेने की जहाँ अब कोई धोखा नहीं है, जहाँ पूर्ण विश्रांति है।

प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत ने निरालंब उपनिषद् के प्रत्येक श्लोक का सरल और उपयोगी अर्थ किया है।

अनुक्रमणिका

1. जब तुम पूर्ण तब दुनिया पूर्ण 2. झूठ की गोद से उठो, सत्य तो उपलब्ध है ही (श्लोक 1) 3. ब्रह्म क्या? ईश्वर क्या? (श्लोक 3-4) 4. कौन है सर्वशक्तिसम्पन्न? (श्लोक 4) 5. सबकी अंतिम चाहत (श्लोक 4) 6. हमारी झूठी इच्छाएँ!
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