विवरण
शुद्धतम रूप से गुरु बोध-मात्र है।
आत्मज्ञान, आत्मविचार ही आत्मबोध बन सकता है।
आत्मविचार में जब तुम अपनेआप को देखते हो, तभी संभव होता है गुरु का तुम्हारे लिए कुछ कर पाना।
जो स्वयं को देखने को राज़ी नहीं, गुरु उसके लिए कुछ नहीं कर पाएगा। गुरु ही प्रेरणा देता है आत्मविचार की, और आत्मविचार का आखिरी फल होता है आत्मबोध — यानि गुरु की प्राप्ति।
गुरु से ही आदि, गुरु पर ही अंत; गुरु ही है आत्मा अनंत।