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भागवत पुराण

भागवत पुराण

पौराणिक कथाओं का वैदिक अर्थ
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भाषा
hindi
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172

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भागवत पुराण सभी १८ पुराणों में सर्वाधिक प्रचलित व सम्मानित पुराण है। इसके रचियता वेदव्यास माने जाते हैं, जिन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता की भी रचना की है।

इस पुराण में वेदों और उपनिषदों के गूढ़ सिध्दांतों को - जिन्हें सूत्रों के द्वारा भी कहना मुश्किल होता है - सरल कहानियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है। कथाओं में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाएँ, गोपियों और माता यशोदा संग उनकी नटखट शरारतें व उनके बालपन के अनेक प्रसंग वर्णित हैं, जिनमें चमत्कारों का बाहुल्य है।

सभी कहानियाँ मीठी व मनभावन हैं, पर इन कथाओं का मर्म मात्र उतना ही नहीं है जितना साधारण दृष्टि से दिखाई देता है। ये कथाएँ और प्रसंग सशक्त प्रतीक हैं, जो वेदान्त के गूढ़ रहस्यों और सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं।

परम्परागत रूप से बहुधा भागवत पुराण के मर्म को न समझकर, इन गूढ़ कथाओं का अधिकतर सतही अर्थ ही किया गया है। चमत्कारों आदि को तथ्यगत व भौतिक प्रामाणिकता दे दी गई है। फलस्वरूप विवेक और बोध पर चलने वाले लोग ग्रंथों से और दूर हुए हैं, और जनसाधारण भी पौराणिक साहित्य के वास्तविक उद्देश्य से वंचित-सा ही रह गया है। कथाएँ प्रचलित हो गई हैं, अर्थ छुपे रह गए हैं।

समझना ज़रूरी है कि वेदांत से परिचित हुए बिना पौराणिक कथाओं का सही अर्थ कर पाना असंभव है।

आचार्य प्रशांत ने इस पुस्तक में भागवत पुराण की चुनिंदा कथाओं की वेदांतसम्मत व्याख्या प्रस्तुत की है। 'भागवत पुराण' की यह व्याख्या आपके लिए एक अवसर है इन पौराणिक कहानियों को वेदांत की दृष्टि से देखने व उनके सच्चे व उदात्त अर्थों से परिचित होने का। लाभ लें।

अनुक्रमणिका

1. स्वयं से छिटका हुआ मन है परमात्मा 2. यशोदा का प्रेम 3. असली धन कैसा? 4. जहाँ गोवर्धन है, वहीं कृष्ण हैं 5. कृष्ण को जीवन में उतरने दीजिए 6. जो कृष्ण करें वो शुभ
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