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अष्टावक्र गीता भाष्य 2023 प्रकरण (1-2) [राष्ट्रीय बेस्टसेलर]

अष्टावक्र गीता भाष्य 2023 प्रकरण (1-2) [राष्ट्रीय बेस्टसेलर]

अध्याय १ और २ पर भाष्य
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पुस्तक का विवरण

भाषा
hindi
प्रिंट की लम्बाई
236

विवरण

अद्वैत वेदांत के उच्चतम ग्रंथों में है अष्टावक्र गीता। इसमें अद्वैत ज्ञान का निरूपण भी है, मुक्ति के चरणबद्ध उपाय भी हैं और एक ब्रह्मज्ञानी की बात भी है।

राजा जनक एक काबिल शासक हैं। जो सभी प्रकार से सम्पन्न और प्रसन्न हैं; पर फिर भी एक आंतरिक अपूर्णता सताती है। इसलिए समाधान के लिए ऋषि अष्टावक्र के पास जाते हैं, जिनकी उम्र मात्र ग्यारह वर्ष है।

राजा जनक का प्रश्न होता है — वैराग्य कैसे हो? मुक्ति कैसे मिले?

चूँकि ग्रंथ की शुरुआत ही तात्विक जिज्ञासा से होती है इसलिए अष्टावक्र की बात श्लोक दर श्लोक बहुत गहराई तक जाती है। अष्टावक्र का प्रत्येक श्लोक इतना सशक्त और सटीक होता है कि प्रथम अध्याय के अंत में ही राजा जनक मुक्त हो जाते हैं। इस पुस्तक में आचार्य प्रशांत ने प्रथम दो प्रकरण के प्रत्येक श्लोक की सरल व उपयोगी व्याख्या प्रस्तुत किया है।

प्रथम प्रकरण की विषयवस्तु

शिष्य एक संसारी है। इसलिए बात की शुरुआत होती है आचरण के तल से। फिर इसके पश्चात बात खुलती है आत्मज्ञान की।

अष्टावक्र आसक्ति को बंधन व निरपेक्ष दर्शन को मुक्ति का रहस्य बताते हैं।

द्वितीय प्रकरण की विषयवस्तु

राजा जनक अब मुक्त हो चुके हैं। प्रकरण की शुरुआत ही उनकी उद्घोषणा से होती है; "अहो! मुक्ति इतनी सहज थी, मैं अब तक समझ क्यों न सका?" राजा जनक स्वयं को बोध स्वरूप जानने लगे और स्वयं के शरीर और मन ऐसे देखने लगे जैसे वो कोई स्वतंत्र इकाई हों।

अनुक्रमणिका

1. संसार से आसक्ति ही दुख है (श्लोक 1.1-1.2) 2. देह नहीं, शुद्ध चैतन्य मात्र (श्लोक 1.3) 3. देह से पार्थक्य (श्लोक 1.4) 4. न तुम दृश्य हो, न दृष्टा हो (श्लोक 1.5) 5. मन के झमेलों में मत फँसो (श्लोक 1.6) 6. दृष्टा मात्र हो तुम! (श्लोक 1.7)
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