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अष्टावक्र गीता भाष्य 2023 प्रकरण (3-6)

अष्टावक्र गीता भाष्य 2023 प्रकरण (3-6)

मुनि अष्टावक्र और राजा जनक संवाद
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पुस्तक का विवरण

भाषा
hindi
प्रिंट की लम्बाई
222

विवरण

आध्यात्मिक ग्रंथों में अष्टावक्र गीता का स्थान अद्वितीय है। इस अनुपम ग्रंथ को अद्वैत वेदान्त का सबसे शुद्ध ग्रंथ कहा जाता है। यह ग्रंथ मुमुक्षु राजा जनक और युवा ऋषि अष्टावक्र के मध्य हुए आत्मज्ञान विषयक संवाद का संकलन है।

प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत द्वारा प्रकरण तीन से छः के श्लोकों पर दिए विस्तृत और सरल व्याख्यानों को संकलित किया गया है।

पुस्तक में तीसरे प्रकरण में अहम् और जगत का सम्बन्ध बताने से हुई शुरुआत छठे प्रकरण तक आत्मा और जगत के सम्बन्ध की गहराई तक ले जाती है।

तीसरे प्रकरण में ऋषि अष्टावक्र कहते हैं कि जिस जगत ने तुमको गंदा किया, उसी जगत में तुम्हें सफ़ाई नहीं मिलने वाली। और छठे प्रकरण में ऋषि कहते हैं, "मैं महासागर के समान हूँ और यह दृश्यमान संसार लहरों के समान। यह ज्ञान है, इसका न त्याग करना है और न ग्रहण, बस इसके साथ एकरूप होना है।"

इस अति शुद्ध ग्रंथ पर आचार्य प्रशांत की व्याख्या ने इसे सब मुमुक्षुओं के लिए सरल और ग्राह्य बना दिया है।

अनुक्रमणिका

1. जिससे बन्धन मिले हों, वो मुक्ति नहीं देगा (श्लोक 3.1) 2. जो जैसा है, उसे वैसा ही देखो (श्लोक 3.2) 3. तुम जगत से नहीं, जगत तुमसे है (श्लोक 3.3) 4. क्यों चुनते हो अंधेरे से और अंधेरे की ओर जाना? (श्लोक 3.4) 5. जब सबकुछ जान लेने के बाद भी आसक्त हो (श्लोक 3.5) 6. आत्म-अवलोकन अनिवार्य है (श्लोक 3.6)
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