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आनन्द [नवीन प्रकाशन]

आनन्द [नवीन प्रकाशन]

आत्मस्थ मन, सहज जीवन
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पुस्तक का विवरण

भाषा
hindi
प्रिंट की लम्बाई
220

विवरण

मनुष्य दुख के साथ जन्म लेता है, और जीवन की इस यात्रा में उसका दुख और बढ़ता ही जाता है। इस दुख को मिटाने के लिए वह सुख की ओर भागता है। सुख की आस में वह जो भी चीज़ इकट्ठा करता है, वो उसके दुख को और बढ़ा जाती है, क्योंकि सुख और दुख द्वैतात्मक स्थितियाँ हैं, एक-दूसरे के साथ चलती हैं।

आनन्द कोई द्वैतात्मक स्थिति नहीं होती, आनन्द है सुख-दुख के द्वैत से मुक्ति। आनन्द कोई खास स्थिति या अनुभव नहीं होती, बल्कि सारी स्थितियों और अनुभवों के प्रति उदासीनता को ही आनन्द कहते हैं। जब आनन्द है तो सुख में भी आनन्द है, दुख में भी आनन्द है।

आनन्द मनुष्य का स्वभाव है। जो आनन्दित है उसके लिए सुख की कोई होड़ नहीं है, दुख से कोई बैर नहीं है। जीवन के रण में जो भी स्थिति आएगी, उसको सबकुछ निर्विरोध स्वीकार है। ये जो निर्विरोध हो जाने की ताकत है, उसे ही आनन्द कहते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से आचार्य प्रशांत हमें सुख, दुख, खुशी, आनन्द जैसे शब्दों के वास्तविक अर्थों से अवगत कराते हैं और इनसे जुड़ी सभी प्रचलित भ्रांतियों का खंडन करते हैं। आप भी यदि सुख-दुख के द्वैत से निकलकर एक सहज और आनन्दपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं तो यह पुस्तक आपके लिए है।

अनुक्रमणिका

1. जीवन में दुख है ही क्यों? 2. दुख छूटता क्यों नहीं? 3. चुनौतियों का सामना कैसे? आनन्द और सुख में अन्तर 4. सर, हमारी खुशियों से आपको क्या तकलीफ़ है? 5. वो ख़ास खुशी - जो हम सब को चाहिए 6. आनन्द और सुख में अन्तर
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