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लेख
[गाँधी जयंती विशेष] मत मानों उनके आदर्शों को, लेकिन उनको एक बार ठीक से पढ़ लो
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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मैनचेस्टर से जाकर पूछो कि गांधी का वहां क्या नाम था और क्या छवि थी। गांधी कहते थे कि यह सब व्यापारी हैं, सभी पैसे के भूखे हैं। इन्हें भारत से जो पैसा मिल रहा है, भारत को लूट-लूट कर के लंदन मोटा रहा है। मैं भारत की लूट रुकवाऊंगा। और उस लूट को रुकवाने के लिए ही उन्होंने यह सब रास्ते चुने, चाहे खादी हो या नमक सत्याग्रह हो।

एक साधारण व्यक्ति जो पहले दक्षिण अफ्रीका जाता है, और वहां कुछ बातें समझता है, सीखता है। तमाम उसकी सीमाएं और कोई बहुत नैसर्गिक प्रतिभा का धनी नहीं था। अधिकारियों के सामने खड़े हो जाते तो अपनी बात रखना मुश्किल हो जाता था। खुद ही बोलते हैं कि आवाज नहीं निकलती थी, आत्मविश्वास की इतनी कमी थी, ऐसा व्यक्तित्व था गांधी का। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में देखा कि कुछ अन्याय हो रहा है तो उसके खिलाफ खड़े हो गए। उनकी प्रैक्टिस अच्छी चल रही थी और फिर विदेश में ही उनका व्यवसाय भी काफी अच्छा चलने लगा, लोगों से सम्मान भी मिलने लगा।

इतना सब हासिल करने के बावजूद भी वे भारत लौट आते हैं और पहले कुछ साल बस चुपचाप समझने की कोशिश करते हैं कि यहां हो क्या रहा है और जब समझते हैं क्या हो रहा है, तो कहते हैं कि मैं अपना ये सूट, कोट पैंट पहन कर इन लोगों के पास जाऊं कैसे? बोले अब इनके पास अगर जाना ही है तो इन्हीं के जैसा हो कर जाऊंगा, दरिद्रनाथ की सेवा में लगना है तो कैसे मैं उसके सामने अंग्रेज बन के खड़ा हो जाऊं। ऐसे इंसान थे वे।

जरा आज से ठीक सौ साल पहले के भारत में जाना, 1922 के भारत में। और सौ साल पहले के ब्रिटेन को सोचना जहां कभी सूरज अस्त नहीं होता था, जिन्होंने जर्मनी को एक नहीं दो बार परास्त करा था। ऐसे गुलाम भारत में क्या कोई इंसान हिंसा के लिए यहां के दुर्बल, दरिद्र लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार कर सकता था? स्वयं भारतीय क्या तैयार थे इसके लिए?

भारत से जो कच्चा माल निर्यात होता था उसमें बहुत ज्यादा अनुपात में सब ब्रिटेन की टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए ही इस्तेमाल होता था। और उसकी जो एक्पोर्ट डेस्टिनेशन थी वो भारत थी। जैसे आज का अमेरिका है, उससे लगा लो दस गुना ज्यादा ताकतवर तब का ब्रिटेन था। अंग्रेजों को जबर्दस्त चोट दी थी गांधी ने।

ये तो विदेशी कपड़ों की होली जलाया करते थे। कोई हल्की चीज नहीं थी यह। मैनचेस्टर से जाकर पूछो कि गांधी का वहां क्या नाम था और क्या छवि थी।

गांधी कहते थे-

यह सब व्यापारी हैं, सभी पैसे के भूखे हैं। इन्हें भारत से जो पैसा मिल रहा है, भारत को लूट-लूट कर के लंदन मोटा रहा है। मैं भारत की लूट रुकवाऊंगा। और उस लूट को रुकवाने के लिए ही उन्होंने यह सब रास्ते चुने, चाहे खादी हो या नमक सत्याग्रह हो। जो उनके धुर्र विरोधी थे वो भी कभी यह नहीं कह पाए कि बंदा हल्का है, चर्चिल को कोफ्त थी गांधी से।

कभी गूगल करके राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस लंदन की देखिएगा वहां वो सारे बैठे हुए हैं सूट ही नहीं गर्म सूट पहनकर के और उनके बीच में बैठे एक नंगे आदमी ने बाकी सब में हीन भावना भर दी थी, ठंड नहीं लग रही और यह एक मोरल वेपन (नैतिक हथियार) था जिसका उन्होंने इस्तेमाल किया, जैसे कह रहे हों-

अरे मैं भारतीय हूं और अकेला हूं, मेरे पास संख्या नहीं है, मेरे पास बल नहीं है, मेरे पास पैसा भी नहीं है लेकिन देखो मेरे सामने तुम सब लज्जाए बैठे हो।

कौन कह रहा है कि गांधी को तुम देवता या भगवान का दर्जा दे दो, लेकिन इंसान को इंसान की तरह तो देखो न। मरने के बाद उनके चरित्र का नाश कर रहे हो, ये बिलकुल शोभा नहीं देता। सौ उनमें खोट थी, कौन इंकार कर सकता है लेकिन उनसे कोई बेहतर अगर था तो वहां खड़ा हो जाता देशवासी उसके साथ चल देते गांधी, पर कोई खड़ा नहीं हुआ। गांधी को महात्मा इस देश ने बनाया है तो अगर हमें गांधी की प्रसिद्धि इत्यादि की समस्या है तो दोष देशवासियों को देना चाहिए, गांधी को नहीं।

देशवासियों को प्यार हो गया था गांधी से, वे स्वयं तो लोगों से मुहब्बत की भीख नहीं मांग रहे थे। लोगो को अच्छा लगता था 12 हड्डी का आदमी चला आ रहा है और तेजी से चल रहा है और चलता ही जा रहा है, रुकते ही नहीं। एक गांव से दूसरे गांव भाग रहा है, ये कर रहा है, वो कर रहा है। लोगों को बड़ा अच्छा लगा, दोष देना है तो देशवासियों को दो।

उन्होंने थोड़े ही कहा था मुझे महात्मा बोलो। वो भारतवासियों के लिए आमरण अनशन पर बैठे थे चर्चिल के खिलाफ। रविन्द्रनाथ थे जिन्होंने महात्मा की उपाधि दे दी थी उनको। क्या बापू भी उन्होंने खुद को ही बोल दिया था? क्या राष्ट्रपिता उन्होंने स्वयं को घोषित करा था? राष्ट्र पिता उन्हें सुभाष चंद्र बोस ने बोला था। अब आप ऐसे विवाद करते हो जैसे वो चाह रहे हों कि उन्हें महात्मा माना जाए, और हम कह रहे हैं, “नहीं, फरेब हुआ है। यह महात्मा नहीं है, और महात्मा बनकर बैठ गया है। वो कहां कह रहे हैं महात्मा बोलो?" लेकिन आज जो उनके ऊपर कीचड़ उछाला जा रहा है वह बहुत दुखदाई है। ऐसा नहीं होना चाहिए।

बिल्कुल गलत है। और वो कौन है जो गांधी पर कीचड़ उछाल रहे हैं, उनका अपना क्या स्थान है, किस स्तर के लोग हैं वो? गांधी से अगर किसी ने कुछ पूछा तो वे एकदम स्पष्ट सब बता दिया करते थे और उन्हीं बातों को लेकर आज तुम शोर मचाते हो। तुम्हारे जीवन के कितने राज हैं जो तुमने आज तक किसी के सामने प्रकट नहीं किए और जैसे उनको तुम बताते हो कि अरे वो तो दो लड़कियों को लेकर चलते थे, वृद्ध थे ऐसे पर देखो कितना हवसी बुड्ढा था, यह सब किसी भी तरह से शोभा नहीं देता। वो तो अपना जन सामान्य के बीच चल रहे हैं तो उनकी तस्वीरें भी खिंच रही हैं पर क्या तुम अपनी जिंदगी का भी कुछ बताओगे? वो कब प्रकट होगा?

देखो, कोई आवश्यकता नहीं है कि आप गांधी की विचारधारा पर चलें, बिल्कुल नहीं। उनकी बहुत सारी बातें हैं विशेषकर जो उनके आर्थिक क्षेत्र में सिद्धांत थे, वो अगर आज लागू कर दिए जाएं, तो उसके परिणाम बहुत भयानक हो जाएंगे, तो एक निष्पक्ष चिंतन होना चाहिए जो बातें ठीक नहीं है, उनको अस्वीकार कर दो और जो सही है, सराहनीय हैं, उन पर एक बार तो विचार करो, उसका असली मूल्य समझो। मत चलो उनके सिद्धांतों पर, मत मानो उनके आदर्शों को, लेकिन उनको एक बार ठीक से पढ़ लो, जान लो, वैसा कोई आदमी आज भी खड़ा हो जाए तो सबको बहुत अच्छा लगेगा, आसान नहीं होता गांधी बनना।

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