प्रश्नकर्ता: जाति से ब्राह्मण हूँ और पंडिताई करता हूँ। आपको सुनने के बाद लगा कि मैं लोगों को भ्रमित कर रहा हूँ। मेरा वास्तविक कर्म क्या है?
आचार्य प्रशांत: सच्चे पंडित बन जाइए और सच्चे ब्राह्मण बन जाइए। आपके समक्ष जो ग्रन्थ है आज, वो साफ़ बताता है कि पंडित कौन और ब्राह्मण कौन। जाति से ब्राह्मण हैं, ऐसा आपने कहा, वास्तविक ब्राह्मण बन जाइए। काम पंडिताई का करते हैं, ऐसा आपने कहा, वास्तविक पंडित बन जाइए।
देखिए, क्या बता रहे हैं कृष्ण आपको।
हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पंडितों के से वचनों को कहता है; परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं, उनके लिए भी पंडितजन शोक नहीं करते। —श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय २, श्लोक ११
तो पंडित कौन? जो प्राणधारियों से आसक्ति रखे ही नहीं। जिनके प्राण हैं, उनको ले करके हर्षित-प्रफुल्लित ना हो जाए और जिनके प्राण जा रहे हैं, जाने वाले हैं, जा चुके हैं, उनको लेकर विषादग्रस्त ना हो जाए, सो पंडित। असली पंडित बन जाइए।
इसी तरह से गीता में ही अन्यत्र श्रीकृष्ण कहते हैं, “ब्राह्मण वो जो ब्रह्म में स्थापित हो गया हो।” असली ब्राह्मण बन जाइए। जाति वाला ब्राह्मण तो कोई ब्राह्मण होता ही नहीं। गर्भ से कोई कैसे ब्राह्मण पैदा होगा? गर्भ से तो माँस और मल पैदा होता है, उसकी क्या जाति?
आध्यात्मिक अर्थों में ब्राह्मण होना पड़ता है। सामाजिक अर्थों में ब्राह्मण पैदा होता है, सामाजिक अर्थों वाला ब्राह्मण किसी काम का नहीं।
वहाँ पर तो चंद लोगों पर जन्म से ही ठप्पा लग गया कि तुम ब्राह्मण हो और चंद लोगों पर दूसरे ठप्पे लग गए कि तुम इस जाति के, तुम इस जाति के, तुम उस जाति के। कुछ पर ये ठप्पा लग गया कि तुम्हारी कोई जाति ही नहीं, तुम वर्णव्यवस्था से बाहर के ही हो। कुछ पर ये ठप्पा लग गया कि तुम दूसरे ही धर्मों का पालन कर रहे हो, तुम धर्म व्यवस्था से ही बाहर के हो। वो सब बातें बेकार की हैं।
बार-बार कृष्ण ‘मुनि’ शब्द का प्रयोग कर रहे हैं दूसरे अध्याय में। जहाँ-जहाँ वो मुनि कह रहे हैं, उसे पढ़िएगा ब्राह्मण।
सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म को तत्व से जानने वाले ब्राह्मण का समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह जाता है। —श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय २, श्लोक ४६
तो ब्राह्मण कौन? जो वेदों का भी अतिक्रमण और उल्लंघन कर गया है, स्वयं कृष्ण कह रहे हैं ऐसा। ब्रह्म है अथाह, अपार जलाशय और वेद हैं छोटा जलाशय। जो साधारण ब्राह्मण घूम रहे होते हैं, वो छोटे जलाशय वाले हैं। श्रीकृष्ण कह रहे हैं, “असली ब्राह्मण वो जो छोटे जलाशय से अब ताल्लुक नहीं रखता, कोई प्रयोजन नहीं बचा उसका। वो अब सीधे ब्रह्म से सम्बन्ध रखता है। उसका नाम ब्राह्मण।”
तो ये लीजिए, पंडित और ब्राह्मण, दोनों बता दिए। ऐसे हैं हमारे सरकार!