मन लगातार सुख की चाह लिए दौड़ता है मगर हाथ आता है तो केवल दुःख और निराशा। मन की गति से तेज़, दूसरी कोई गति नहीं होती इसीलिए हम कल्पनाओं से खुद को हँसा भी सकते हैं, रुला भी सकते हैं और खुद को डरा भी सकते हैं। विचार हमको परेशान करते हैं और विचार ही मार्ग हो सकते हैं निर्विचार हो जाने का। इसीलिए बहुत ज़रूरी है सिर्फ़ उसका ध्यान जो आपको सहज, सरल, और मुक्त रखे।
जितनी बार आप मुक्ति को भूलेंगे, उतनी बार जीवन का दुःख आपको सताएगा। पलट-पलट कर दु:ख आते किसलिए हैं? दु:ख आते ही इसीलिए हैं ताकि आपको याद दिला दें कि जिसको याद रखना था उसको भूल गए। जिसको भुला देना था उसको सिर पर बैठाए हुए हैं। दु:ख से बड़ा मित्र आपका कोई नहीं।
कैसे जाने कि मन किधर की ओर जा रहा है?
किसको याद रखने की बात हो रही है?
मन को कैसे समझें की दुःख से दूर रहें?
पाएंँ इन प्रश्नों के उत्तर आचार्य प्रशांत के इस सरल कोर्स में।
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