दुख और अवसाद में जीना किसी को नहीं पसंद है। हम सब लगातार दुख और अवसाद से बचने के लिए कुछ न कुछ तरकीब खोज रहे होते हैं बिना ये जाने की ये दुख अचानक से कैसे निर्मित हो गया? जिस दुख को सुख से मिटाने जा रहे हैं क्या वह मिट पाएगा?
डिप्रेशन/अवसाद से लड़ पाना कठिन एवं अकल्पनीय लगता है? क्या इसके कारण रिश्ते बिगड़ते नज़र आ रहे हैं? क्या इसके कारण ज़िंदगी बोझिल लगती है? बात बन सकती है। आएंँ आचार्य प्रशांत के साथ और उभरें।
Can’t find the answer you’re looking for? Reach out to our support team.