हर व्यक्ति के जीवन में डर एक बहुत अहम किरदार निभाता है। जीवन में जो कुछ भी हमें अपने आसपास दिखता है वह सीमित है। हम ख़ुद को जो समझते हैं वह भी सीमित है। इसलिए इन सीमाओं के किसी दिन खत्म हो जाने का या कुछ छिन जाने का डर हमें हमेशा लगा रहता है।
इतना ही नहीं, दुविधा तब और बढ़ जाती है जब हमारे भीतर बैठे इस डर के बीज को सामाजिक रंग मिलने लगता है -- समाज में इज़्ज़त खो जाने का डर, अपने दोस्तों से पिछड़ जाने का डर, सामाजिक पैमानों पर एक अच्छी नौकरी या अच्छा साथी न मिलने का डर। ऐसे न जाने कितने अनेकों रूपों में डर हमारे मन पर छाया रहता है और हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करने लगता है।
आचार्य प्रशांत संग इस आसान वीडियो कोर्स के माध्यम से अपने मन को बेहतर समझें और अपने भीतर बैठे डर के इस बीज को निकालकर बाहर फेकें।
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