अर्जुन परेशान बहुत है लेकिन प्रश्न वहाँ बिलकुल दूसरा है। क्या है वहाँ प्रश्न? "क्या ये लड़ाई लड़ने योग्य है?" और अपनी तरफ़ से अर्जुन को यही उत्तर मिल रहा है कि 'नहीं, क्या करोगे तुम अपने ही रक्त सम्बन्धियों को मारकर के?' कहते हैं अर्जुन कि 'इनको मारकर के सिंहासन पा भी लिया तो वो किस मूल्य का?' ये प्रश्न हैं अर्जुन के सामने ।
यही मत देखिए कि अर्जुन के सामने प्रश्न क्या है। ये देखना ज़्यादा महत्व का है कि अर्जुन के सामने कौन-सा प्रश्न नहीं है - जीतूंगा या नहीं जीतूंगा?
जो कृष्ण 'के साथ होते हैं उनको उस साथ का लाभ ये मिलता है कि कुछ फ़िज़ूल सवालों से ज़िंदगी आज़ाद हो जाती है। जिनमें ये एक प्रमुख सवाल है। हाय! मेरा क्या होगा? अर्जुन को ये चिंता बिलकुल - नहीं सता रही कि 'हाय! मेरा क्या होगा!' अर्जुन को तो बल्कि ये चिंता लग रही है कि 'मैंने मार दिया तो उनका क्या होगा?'
ये अंतर समझिए। सवाल सबकी ज़िन्दगी में होते हैं लेकिन किसी व्यक्ति के जीवन का स्तर क्या है, ये इससे प्रमाणित हो जाता है कि उसके जीवन के सवालों का स्तर क्या है।
आचार्य प्रशांत संग हम सीखेंगे और पढ़ेंगे श्रीमद्भगवद्गीता को इस कोर्स के माध्यम से।
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