कोर्स के बारे में बताने से पहले आपको थोड़ा पीछे ले जाते हैं-
पिछला श्लोक समाप्त हुआ था ये कहने पर कि जो लोग कामनाओं के ही पीछे भागते हैं, वो अपना जीवन व्यर्थ गँवाते हैं। और इस श्लोक में शुरुआत में ही कह रहे हैं, ‘लेकिन’, ‘किन्तु’ से शुरुआत हो रही है, ‘लेकिन जो लोग सत्य में ही अनुरक्त, तृप्त और संतुष्ट हैं, उनके लिए तो कर्तव्य कर्म नहीं बचते।‘
जो कामनाओं में जिएगा उसको सज़ा ये मिलेगी कि उसे बहुत सारे कर्तव्य दे दिए जाएँगे। वो कर्तव्य हैं ही इसीलिए क्योंकि कामना अंधी है, तुम इधर-उधर ही न भाग जाओ बहुत ज़्यादा, छिटक न जाओ, बिलकुल फिसल न जाओ तो तुमको फिर कर्तव्य बताए जाते हैं।
तो व्यक्ति प्रकृति से आगे बढ़े ही क्यों? क्यों निष्कामता का पाठ अर्जुन को पढ़ा रहे हैं कृष्ण?
क्योंकि प्रकृति के भीतर परेशान है वो, और कोई बात नहीं है। तुम अगर प्रकृति के भीतर ही आनंदपूर्वक रह रहे हो तो मत निकलो बाहर। पर अर्जुन है न प्रकृति के भीतर, प्रकृति के भीतर क्या है? मोह है न, अर्जुन को खूब सारा मोह है। वो बैठा हुआ है प्रकृति में मोहग्रस्त, हालत खराब है। बहुत सारे कर्तव्य हैं अर्जुन के पास। अर्जुन को कर्तव्य नहीं निष्कामता चाहिए।
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