योग का अर्थ है भविष्य से पूर्ण मुक्ति । आज ही जो सामने संघर्ष है, वो इतना कठिन है कि अगर आप भविष्य का ख़्याल कर पा रहे हो तो निश्चित रूप से आपने आज के संघर्ष से कहीं-न-कहीं बेईमानी करी है, मुँह चुराया है; कोई चोरी करी होगी। आज जो कर सकते थे, उसको करने में कहीं कोताही करी होगी, तभी तो भविष्य को मन में, विचार में स्थान दे पाए। नहीं तो कहाँ से आ जाता? आज की लड़ाई ही इतनी भारी है, तुम्हें कल, परसो, नरसों की सोचने की फुर्सत कहाँ से मिली रे बाबा! योग है भविष्य का विलोप, मिट गया भविष्य - यही योग है। और जो योगस्थ है, वो कर्मसन्यस्थ भी हो गया।
कितना आसान हो जाता है गूढ़ शब्दों को जानना जब गुरु आपको समझाते हैं। ज्ञानयोग के 41 और 42 श्लोक में श्री कृष्ण अर्जुन को और क्या समझाते हैं जानेंगे इस सरल से कोर्स में।
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