बात आरंभ होती है मार्कंडेय पुराण से, उसमें आता है देवी महात्म्य नामक अंश, उसी का एक हिस्सा है। उसी देवी महात्म्य नामक हिस्से को श्रीदुर्गासप्तशती के नाम से भी जाना जाता है। ठीक है। यह जो दुर्गा सप्तशती है, इसका शाक्त संप्रदाय में समझ लीजिए कि लगभग उतना ही महत्व है जितना वेदांत में श्रीमद्भगवद्गीता का। तेरह अध्याय हैं सप्तशती में। नाम से ही स्पष्ट है कि सात सौ श्लोक होंगे। और जो तेरह अध्याय हैं, ये तीन चरित्रों में बांटे जा सकते हैं।
जो पहला चरित्र है, उसमें सिर्फ़ पहला अध्याय आएगा। उसमें मधु और कैटभ का संहार होता है। जो दूसरा चरित्र है, उसमें अध्याय क्रमांक दो से चार तक आते हैं, जिसमें महिषासुर का संहार होता है। और फिर जो तीसरा चरित्र है, उसमें पाँचवे अध्याय से लेकर के तेरहवें अध्याय तक सम्मिलित होते हैं, जिसमें शुंभ निशुंभ का संहार होता है। और संहार करने वाली भी जो तीन देवियाँ हैं, वो वास्तव में महाप्रकृति के तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रथम चरित्र में तमोगुणी महाकाली हैं, दूसरे चरित्र में रजोगुणी महालक्ष्मी हैं और तीसरे चरित्र में सतोगुणी महा सरस्वती हैं।
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