चिड़ियों के दल में से एक चिड़िया शाम को अपने घोसले में लौटकर ना आए, वह बात बहुत असामान्य हो जाएगी न। और करा क्या है उसने? बस इतना करा है कि प्रकृति का नियम तोड़ा है, कह रही है प्रकृति के चलाए नहीं चलेंगे। कोई और चीज़ जो हमें बुला रही है, हम उसके चलाए चलेंगे। हम तो श्रीकृष्ण के चलाए चलेंगे। प्रकृति के दोहराव को, वृत्त को तोड़ने का अभ्यास बार–बार करना होगा।
प्रकृति में दोहराव जबरदस्त होता है इसलिए श्रीकृष्ण बार–बार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अभ्यास करो। "जिसकी इन्द्रियाँ विधयों से संयत वो स्थितप्रज्ञ है।” इस बात को कम-से-कम पाँच श्लोकों में दोहराकर कह चुके हैं। कभी दृष्टांत बदलते हैं, कभी निरूपक बदलते हैं, कभी उसी शब्द का कोई पर्यायवाची प्रयुक्त हो जाता है। इशारा लेकिन एक ही तरफ़ को करना है। हम पचास तरीकों से झूठ की तरफ़ भागते हैं इसीलिए पचास अलग-अलग तरीकों से हमको सच की तरफ़ वापस लाना पड़ता है। वो तरीके अलग-अलग होते हैं, उन सब तरीकों का उद्देश्य एक ही होता है – आपको खींच करके वापस ले आना।
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