क्या ईश्वर और भाग्य हमें दुख देते हैं?
क्या आप मुश्किल हालात में स्वयं को डर में पाते हैं?
क्या अपने जीवन में आप चुनाव नहीं कर पाते?
ऊपर ऊपर से देखेंगे तो यह तीनों प्रश्न अलग अलग से दिखेंगे। मगर तीनों प्रश्न का संबंध आपसे है। आपके मन से। व्यक्ति के पास कुछ ऐसा होना चाहिए जिसे कुछ नहीं छू सकता दुनिया का। व्यक्ति के पास वही होना चाहिए जिसकी चर्चा श्रीकृष्ण अर्जुन से बार-बार कर रहे हैं — "पानी उसे भिगा नहीं सकता, धूप उसे सुखा नहीं सकती, आग उसे जला नहीं सकती, जन्म उसका होता नहीं, मृत्यु उसे मार नहीं सकती।" वो अगर नहीं है तो आप दुनिया के ही आश्रित-ग़ुलाम रहे आएंगे।
समझो कि कौन हो तुम, समझो कि कौन नहीं हो तुम। और शुरुआत करनी पड़ेगी ये समझने से कि क्या नहीं हो तुम। शुरुआत करनी पड़ेगी — ‘मैं क्या नहीं हूँ? कौन नहीं हूँ मैं?’ और फिर तुम पहुँच जाओगे — ‘कौन हूँ मैं?’, इस प्रश्न पर।
आइए प्रश्न करते हैं और जानते हैं सही संघर्ष कैसे किया जाए।
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