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आत्मा, अहम् वृत्ति, और अहंकार में भेद जानें

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 26–30 पर आधारित
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1 घंटा 34 मिनट
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परिचय
संरचना

इन तीन को अलग-अलग जानना सीखिए — आत्मा, अहम्-वृत्ति, व्यक्तिगत अहंकार। वृत्ति में क्या होता है? सिर्फ़ ‘मैं’, आत्मा क्या है? विशुद्ध ‘मैं’, पूर्ण ‘मैं’; वृत्ति क्या है? अपूर्ण ‘मैं’, लेकिन वो ‘मैं’ जो अभी किसी से सम्पृक्त नहीं है, सिर्फ़ ‘मैं’, आई एम, ‘मैं’; और व्यक्तिगत अहंकार? ‘मैं देह हूँ’, ‘मी बॉडी’, ‘आई एम द् बॉडी’। इन तीनो का ये अंतर है इनकी परिभाषा साफ़ समझ लीजिए।
आत्मा क्या है? पूर्ण ‘मैं’, पूर्ण, शुद्ध, सत्य ‘मैं’ आत्मा है। अहम्-वृत्ति क्या है? अपूर्ण ‘मैं’ जो किसी से जुड़ा नहीं है पर जिसकी वृत्ति है, टेंडेंसी है जुड़ने की, लेकिन अभी जो जुड़ा नहीं है और व्यक्तिगत अहंकार क्या है? जो जुड़ गया है। मैं अर्जुन, मैं द्रौपदी का पति, मैं कृष्ण का सखा; ये क्या हैं? ये व्यक्तिगत अहंकार है।
कष्ट हमें सबसे ज़्यादा कौन देता है? व्यक्तिगत अहंकार। वास्तव में जो ये व्यक्तिगत अहंकार होता है ये जिन-जिन से जुड़ता है अगर आप उनसे जुड़ाव कम कर सकें, आप बस ‘मैं’ बोलना सीख लें बिना ‘मैं’ को किसी पर आश्रित करे, बिना ‘मैं’ को किसी से जोड़े, बिना तादात्म्य करे तो ये अहम्-वृत्ति बहुत जल्दी आत्मस्थ हो जाती है। इसीलिए आपका काम थोड़ा आसान हो जाता है, आपको आत्मा तक की पूरी यात्रा करनी भी नहीं है; आपको बस नेति-नेति की यात्रा करनी है।

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