अर्जुन ने यहाँ जो ज्ञान बनाम कर्म का प्रश्न खड़ा कर दिया है इससे ज्ञान और कर्म के बीच में एक सेतु का निर्माण होता है जो अब कृष्ण करने जा रहे हैं। कृष्ण कुछ ऐसा करने जा रहे हैं जो दर्शन के क्षेत्र में अनूठा है। कृष्ण अर्जुन को बताने जा रहे हैं कि मैं जो तुम्हें कर्म समझा रहा हूँ वो ज्ञान से अलग नहीं है। और ऐसा कर्म जिसकी पृष्ठ भूमि में ज्ञान न हो वो कर्म किसी काम का नहीं है। आत्मज्ञान से ही फलित होता है निष्काम कर्म। तो जब कर्मयोग की बात हो तो उससे सबसे पहले ये समझिए कि आशय है निष्काम कर्म।
पहली चीज़ कृष्ण स्पष्ट करते हैं कि कर्मयोग का अर्थ है निष्काम कर्मयोग और नहीं कुछ भी कर्मयोग होता। कोई भी उल्टा-पुल्टा औंधा कर्म पकड़ लेने को कर्मयोग नहीं कहते हैं।
आचार्य प्रशांत संग हम जानेंगे निष्काम कर्म की सही परिभाषा।
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