क्या संस्कृति ने महिलाओं को दबाया है?
क्या लिंग भेद के कारण महिलाओं की स्थिति कमजोर है?
क्या पैट्रिआर्की के कारण महिलाएँ पीछे हैं?
हाँ, स्त्रियों का खूब शोषण हुआ है, खूब दमन हुआ है, इसमें कोई दो राय नहीं, पर ईमानदारी से स्त्रियों को ये भी स्वीकार करना पड़ेगा कि इस शोषण में उनकी अपनी सहभागिता और उनका अपना स्वार्थ भी रहा है।
मुआवज़ा मत माँगिए, हासिल करिए, कब्जा करिए; मुआवज़ा नहीं कब्जा, जीतो। सान्त्वना पुरस्कार नहीं चाहिए, प्रथम पुरस्कार चाहिए, आगे बढ़ो! पचास प्रतिशत की आबादी है और पचास प्रतिशत का हक़ है, हासिल करिए न! किसने रोका है आपको?
कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन पर कोई समझौता नहीं करना चाहिए, बस बात ख़त्म। इसके आगे फिर हमें जीवित ही नहीं पाओगे, कर लेना शोषण! फिर कोई नहीं कर सकता। शोषित भी वही होता है जिसमें कम-से-कम जीवित रहने का तो स्वार्थ हो। स्वार्थ छोड़िए, मुक्त हो जाएँगी।
थोड़ा तो, थोड़ा तो कष्ट झेलना पड़ेगा। कहीं तो विद्रोह करना पड़ेगा। विद्रोह का तो मतलब ही होता है कि कष्ट झेलो। तो कष्ट झेलने के लिए तैयार रहिए। स्वतंत्रता भीख में नहीं मिलती। अगर चाहिए तो लड़कर ले लो। ऐसे ही मिलती है। आपको सांत्वना नहीं साहस और बल चाहिए। वह बल आता है वेदांत से।
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