अभिभावक होना करीब-करीब भगवान होने के बराबर है। यदि हम खुद अँधेरे में जी रहे हैं तो बच्चे को हम और देंगे क्या अँधेरे के अलावा? और बच्चा स्वप्रकाशित होता है। हर बच्चे के भीतर एक भोलापन, एक निर्मलता, एक ज्योति होती है। पर हम अपना अंधकार उसके ऊपर भी लाद देते हैं और सोचते हम यही हैं कि हम इसका हित कर रहे हैं।
आप यदि एक बच्चे के अच्छे अभिभावक बनना चाहते हैं तो पहले अच्छा इंसान बनिए। जिन्हें रुचि हो और प्रेम हो कि मेरे घर में मेरा बच्चा है वो एक सुंदर, समग्र, सशक्त व्यक्ति बन करके उभरे उनके लिए ज़रूरी है कि वो ज़रा आत्म-निरीक्षण करें, अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को देखें और कहें कि यदि मैं ऐसा हूँ तो क्या मेरे माध्यम से कुछ भी सुंदर विकसित हो सकता है? जैसा कलाकार होता है, वैसी ही तो उसकी कलाकृति होती है। तो कृति की ओर ध्यान बाद में दें, कर्ता की ओर ध्यान पहले दें। आप यदि सम्भल गए, आप यदि जग गए तो आपको ख़्याल ही नहीं करना पड़ेगा, आपको परवाह ही नहीं करनी पड़ेगी और बच्चा फूल की तरह खिलकर निकलेगा।
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