बुद्ध ने स्थिति, उत्पत्ति, विनाश, सत्, असत्, हीन, मध्यम, उत्कृष्ट आदि का उल्लेख लोक व्यवहार का अनुसरण करते हुए किया है, न कि इसलिए कि ये तत्वतः हैं ।।१।।
उपनिषदों से आरम्भ करके गीता से गुज़रते हुए, अगर सत्य की यात्रा करनी है तो ये असम्भव है कि बुद्ध से न गुज़रा जाए। वेदान्त की बात जितनी स्पष्टता से महात्मा बुद्ध के दर्शन में उभरकर आती है, उतनी स्पष्टता से शायद कहीं और नहीं। आज जब हम समझना चाहते हैं कि बुद्ध की बात क्या है, तो बुद्ध की बात को समझने के लिए जो सबसे अच्छा नाम है वो आचार्य नागार्जुन का नाम है।
आज भी तर्क की, लॉजिक की दुनिया में पूरे विश्व में आचार्य नागार्जुन का नाम बहुत-बहुत सम्मान से लिया जाता है। तर्क में अगर आचार्य नागार्जुन ने कोई बात बोल दी है तो उसको काटना सम्भव नहीं है क्योंकि आचार्य नागार्जुन ने कोई बात यूँही नहीं बोली, न अनुमान पर बोली, न अनुभव पर बोली, न परम्परा से बोली। उन्होंने जो बात बोली उसके पीछे पहले उन्होंने एक ठोस तार्किक आधार खड़ा किया और फिर कहा कि ये रही बात, अब इस बात में तुम कोई खोट निकाल सकते हो तो बता दो।
जो बौद्ध साहित्य है वो बहुत-बहुत विराट है, वो सनातनी साहित्य के ही समकक्ष है, और उसकी तार्किकता की तो कोई सीमा ही नहीं है। तो वो पूरी चर्चा तो अब हम धीरे-धीरे करते चलेंगे, हमारे पास कम-से-कम सत्तर अवसर आने हैं वो सारी बात करने के। इसीलिए हमने शून्यता सप्तति ली है, वो बात हम धीरे-धीरे लाएँगे।
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