"नाहं कालस्य, अहमेव कालम्।" — उपनिषद् कहते हैं। तो जब समय मन है; काल, युग मन है, तो ये जितने हैं — सतयुग, द्वापरयुग, त्रेता सब कहाँ हो गये ये?
दो तरह की बातें हैं पुराने ग्रन्थों में: एक वो जिनका सीधे-सीधे मुक्ति से लेना-देना है, दूसरी वो जो विविध विषयों से ताल्लुक रखती हैं। आप बस उन बातों से सरोकार रखिए जिनका सम्बन्ध सीधे-सीधे मुक्ति से है और बाक़ी सब बातों की कोई प्रासंगिकता नहीं, कोई महत्व नहीं।
हमारे पास समय सीमित है। बहुत पुराना देश है, बहुत कुछ लिखा गया है। सबकुछ जो लिखा गया है उससे क्या सरोकार रखना! जीवन में जो श्रेष्ठतम है सिर्फ़ उससे मतलब रखिए, बाक़ी सबकी उपेक्षा करिए। और श्रेष्ठ से आशय है– वेदांत यानि की उपनिषद्। इस कोर्स के द्वारा हम जानेंगे कि समय से जीवन और मृत्यु का क्या रिश्ता है।
Can’t find the answer you’re looking for? Reach out to our support team.