छः साल से पहले का शिशु पशु बराबर होता है और सोलह साल के बाद उसके मन पर पड़ी छाप को बदलना करीब करीब असंभव हो जाता है।
तो छः से पहले, न सोलह के बाद। हमारे पास वर्ष बचते हैं यही दस। अधिकांश लोगों का पूरा जीवन, उनका पूरा भाग्य, इन्हीं चंद वर्षों में निर्धारित हो जाता है। छः से सोलह की आयु। इसमें वो जैसा जी गया बच्चा, अब समझ लीजिए वो उम्र भर वैसा ही रहेगा।
माँ होना, बाप होना, क़रीब-क़रीब परमात्मा होने जैसा है। वो पूरी दुनिया चलाता है, सबका बाप है। आप भी, सबके नहीं पर बाप तो हो । तो कुछ तो परमात्मा का अंश आपमें होना चाहिए। कुछ तो आपके मन में, आचरण में परम तत्व की झलक होनी चाहिए। तभी आपका बच्चा एक स्वस्थ नौजवान या नवयुवती बन के निकलेगा। बच्चे का भला चाहते हों तो सर्वप्रथम अपना भला कीजिए।
आप स्वयं शांत होकर के, सुंदर होकर के, सहज होकर के अपने बच्चों के सामने जाएँ। इससे बढ़िया तोहफ़ा क्या हो सकता है! तो आज आप अपने बच्चों के लिए बड़ी अमूल्य भेंट लेकर के जा रहे हैं।
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